भारत में सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन में आई छह फीसदी की कमी

भारत में सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur Dioxide)  उत्सर्जन में 2018 के मुकाबले 2019 में करीब छह फीसदी की उल्लेखनीय कमी आई है। बीते चार साल में सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन में आई यह सबसे बड़ी कमी है।

Sulfur Dioxide

सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur Dioxide) उत्सर्जन सीमा निर्धारित करने के पांच साल बाद, भारत सरकार ने गैर-अनुपालन वाले थर्मल पावर स्टेशनों को बंद करने का फैसला किया है।

भारत में सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur Dioxide)  उत्सर्जन में 2018 के मुकाबले 2019 में करीब छह फीसदी की उल्लेखनीय कमी आई है। बीते चार साल में सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन में आई यह सबसे बड़ी कमी है। एक रिपोर्ट में यह कहा गया। हालांकि, उत्सर्जन में कमी के बावजूद भारत लगातार पांचवे साल सबसे ज्यादा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश बना हुआ है।

‘ग्रीनपीस इंडिया’ और ‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एजर्नी ऐंड क्लीन एयर’ (सीआरईए) के विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट 6 अक्टूबर को जारी हुई। बता दें कि सल्फर डाइऑक्साइड विषैला वायु प्रदूषक होता है जो मस्तिष्काघात, ह्रदयरोग, फेफड़ों का कैंसर और असमय मौत की जोखिम बढ़ाता है।

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रिपोर्ट में कहा गया, “भारत में 2019 हुआ मानवजनित एसओटू उत्सर्जन वैश्विक उत्सर्जन का 21 फीसदी था और यह दूसरे सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देश रूस के मुकाबले दोगुना है।” इसमें कहा गया कि चीन सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाला तीसरा देश है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur Dioxide) का सर्वाधिक उत्सर्जन सिंगरौली, नेवेली, सीपत, मुंद्रा, कोरबा, बोंडा, तमनार, तालचेर, झारसुगुडा, कच्छ, सूरत, चेन्नई, रामगुंडम, चंद्रपुर, विशाखापत्तन और कोराडी स्थित थर्मल पॉवर संयंत्रों से होता है। रिपोर्ट में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उन्नति करने के लिए भारत की प्रशंसा भी की गई।

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ग्रीनपीस इंडिया के ‘क्लाइमेट कैंपेनर’ अविनाश चंचल ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता भले बढ़ी हो लेकिन वायु गुणवत्ता अब भी सुरक्षित नहीं है।

उन्होंने कहा, “भारत में, देखा जा सकता है कि कोयले के इस्तेमाल में कमी लाकर वायु गुणवत्ता तथा सेहत को किसी प्रकार प्रभावित किया जा सकता है। 2019 में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाई गई, कोयले पर निर्भरता घटाई गई जिसके परिणामस्वरूप हमने वायु गुणवत्ता में सुधार देखा। लेकिन हमारी वायु अब भी सुरक्षित नहीं है।”

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रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि समय सीमा को 2022 तक बढ़ा दिया गया था, लेकिन जून 2020 तक अधिकांश बिजली संयंत्र मानकों के अनुपालन के बिना काम कर रहे हैं। सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur Dioxide) उत्सर्जन सीमा निर्धारित करने के पांच साल बाद, भारत सरकार ने गैर-अनुपालन वाले थर्मल पावर स्टेशनों को बंद करने का फैसला किया है और वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए 4,400 करोड़ रुपये का आवंटन भी किया है।

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