झारखंड: कुपोषण मिटाने के लिए महिलाओं ने शुरू की ये नई पहल, मिली आर्थिक आजादी

झारखंड (Jharkhand) के नक्सल प्रभावित पश्चिमी सिंहभूम की महिलाओं ने अपनी लगन की दम पर एक छोटी सी कोशिश से शुरुआत की और अब उसके बड़े परिणाम सामने आने लगे हैं।

Jharkhand Women

महिलाएं कर रहीं कृषि कार्य

देशभर में चल रही महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत झारखंड (Jharkhand) की 3 लाख से ज्यादा महिलाएं किसानी के काम में लगी हुई हैं। इसमें प्रशिक्षण प्राप्त कर वह कम लागत में कृषि कार्य और खेती के हुनर से अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।

एक पुरानी कहावत है कि अगर महिलाएं ठान लें तो अपनी हिम्मत से हर कठिन काम को पूरा कर सकती हैं। दुनिया की ऐसी कोई ताकत नहीं है जो महिलाओं के संकल्प को डिगा सके।

“सिर्फ सच” आज एक ऐसी ही स्टोरी आपके सामने लेकर आया है, जिसमें महिलाओं के समूह ने वो काम कर दिखाया, जो आज लोगों को प्रेरणा दे रहा है।

झारखंड (Jharkhand) के नक्सल प्रभावित पश्चिमी सिंहभूम की महिलाओं ने अपनी लगन की दम पर एक छोटी सी कोशिश से शुरुआत की और अब उसके बड़े परिणाम सामने आने लगे हैं।

देशभर में चल रही महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत झारखंड (Jharkhand) की 3 लाख से ज्यादा महिलाएं किसानी के काम में लगी हुई हैं। इसमें प्रशिक्षण प्राप्त कर वह कम लागत में कृषि कार्य और खेती के हुनर से अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।

इसका असर झारखंड (Jharkhand) के पश्चिमी सिंहभूम जिले के कई क्षेत्रों में दिखाई दे रहा है। बता दें कि इस क्षेत्र में गरीबी की वजह से लोग माल भात खाने के लिए मजबूर थे लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा किचन गार्डन की शुरुआत करने से हरी साग सब्जियों का उत्पादन होने लगा है, जिससे कुपोषण को दूर करने में बड़ी सफलता मिली है।

यह पहला फेज था, जब महिलाओं द्वारा किचन गार्डन की शुरुआत की गई और देखते ही देखते महिलाएं वृहद रूप से कृषि कार्य में रुचि दिखाते हुए अपने बंजर पड़े खेतों का इस्तेमाल कृषि कार्य में करने लगीं।

इसका परिणाम ये हुआ कि आज इस क्षेत्र में महिलाएं, पुरुषों से ज्यादा आय कमा रही हैं और आत्मनिर्भर झारखंड (Jharkhand) और भारत के साथ-साथ खुद अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में योगदान दे रही हैं।

क्षेत्र की जुझारू महिला भद्रावती की उम्र 60 वर्ष है और वह कहती हैं कि अब रोज साग सब्जी बनाने के लिए सोचना नहीं पड़ता है। सुबह-शाम खेत से ही ताजी सब्जी तोड़ ले जाते हैं। पहले यह सब्जी खानेभर के लिए लगाती थीं लेकिन अब अच्छी पैदावार हो जाती है, तो बाजार में बेच आते हैं। इससे कम से कम 400 से 500 रुपए कमा लेती हैं। इस तरह उनकी मासिक आमदनी 15 से 18 हजार है। जिसे कृषि संबंधित चीजों को बेचकर ही कमाया जा रहा है।

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इन महिलाओं ने खेतों का नाम पोषण बागान दिया है। यहां पर 10 से 20 तरह की हरी साग सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है। इसमें पालक, गंधारी का हरा साग, गंधारी का लाल साग, सरसों, बैगन , टमाटर, बीन , सीम , भिंडी , झींगा, परवल लौकी, बरबटी आदि शामिल है।

भद्रावती बताती हैं कि पहले हरी साग सब्जियों के लिए तरसते थे लेकिन फिर समय बदल गया। हमने इसकी शुरुआत की तो हमारे किचन से उठने वाली सुगंध से पड़ोसियों ने भी अपने अपने घरों में किचन गार्डन की शुरुआत की और जब हमने अपने खेतों में इसे बड़ा रूप दिया तो हमारे साथ गांव की अन्य महिलाओं ने भी आगे आकर अपने खेतों में कृषि कार्य को शुरू किया। देखते ही देखते हमारे जिले की लगभग सभी महिलाएं इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं और कृषि को मुख्य रोजगार का साधन मानते हुए इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।

इन महिलाओं का झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा सहयोग किया जा रहा है। जिसमें कई सखी मंडल द्वारा महिला किसानों के सशक्तिकरण हेतु समय-समय पर प्रशिक्षण प्रदान करते हुए आर्थिक सहयोग मुहैया करवाया जा रहा है।

इसका परिणाम यह है कि महिलाएं आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं। ऐसा ही प्रयास झारखंड के अन्य जिलों में भी महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है। ये झारखंड को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का पहला कदम है। इस प्रयास में झारखंड सरकार भी साथ दे रही है।

बता दें कि कृषि कार्य में पटवन की समस्याओं को दूर करने के लिए हालही में राज्य सरकार ने सोलर पंप सेट देने का आह्वान किया है जिसका दूरगामी परिणाम जल्द ही सामने दिखने लगेगा।

महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत हर महिला किसान अपने खेत में साढे 7 मीटर चौड़े और 9 मीटर लंबे एक मॉडल के रूप में यह पोषण वाटिका बनाती है, इसमें 8 प्रकार का वेट बनाया जाता है। इस वेट में अलग-अलग तरह की साग सब्जियां उगाई जाती हैं।

अगर आपको हर दूसरे-तीसरे घर में हरी भरी मौसमी जैविक सात सब्जियों से भरे किचन गार्डन देखने हैं तो झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के दो ब्लॉक पटमदा और पोटाम प्रखंड के 80 गांव में जरूर देखना चाहिए। यहां के 70 फीसदी घरों में छोटी-छोटी क्यारियों में कई तरह के साग और सब्जियां देखने को मिलती हैं, यहां की बोलचाल की भाषा में इसे पुष्टि बागान अर्थात पोषण बागान भी कहते हैं।

बता दें कि पश्चिमी सिंहभूम जिले से लगभग 40 किलोमीटर दूर पटमदा और गोदाम ब्लॉक में लगभग 14 सौ से अधिक पोषण बागान लगे हैं, जिसमें 80 गांव शामिल हैं। यहां की महिलाएं कोई भी रासायनिक खाद अपने उत्पादकों में नहीं इस्तेमाल करती हैं और ना ही कीटनाशक दवाइयों का।

पश्चिमी सिंहभूम जिले की महिलाओं के प्रयास को देखते ही देखते राज्य में लगभग 2000 से अधिक पोषण वाटिकाएं लगाई जा चुकी हैं। झारखंड लाइवलीहुड प्रमोशन की महिलाओं द्वारा सरकार द्वारा चलाए जा रहे आंगनबाड़ी केंद्रों में भी पोषण वाटिका लगाई गई हैं। यहां इस पोषण वाटिका से उत्पन्न होने वाले साग सब्जियों का इस्तेमाल छोटे-छोटे नन्हे बच्चों के खाने में किया जा रहा है। इससे बच्चों में कुपोषण खत्म हो रहा है।

पटमदा बस्ती में रहने वाली सखी मंडल की सक्रिय सदस्य मोनिका महतो का कहना है कि हर बैठक में सभी को हरी सब्जियों और मौसमी फल खाने के फायदे बताए जाते हैं। अब बहुत सारी दीदी पपीता, ,अमरूद, गाजर ,खीरा, सब लगाती हैं और खाती भी हैं।

मोनिका ने बताया कि कई दीदी तो अपने बच्चों की फीस भी यही हरी सब्जी बेचकर भरती हैं। पहले हमारे यहां बच्चे बहुत कमजोर दिखते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है।

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