तेजी से दौड़ रहा विकास का पहिया, सुस्त पड़ रही नक्सलवाद की रफ्तार

नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास की रफ्तार तेज करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न सामाजिक और आर्थिक उपायों का सकारात्मक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। आंकड़े इसकी गवाही देते हैं।

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नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को सड़क मार्ग से जोड़ने की योजना।

आजादी के 7 दशक बाद भी देश के ऐसे कई इलाके हैं जो अब भी विकास की रेस में कहीं पीछे छूट गए हैं। खासतौर से नक्सल प्रभावित राज्यों के वो इलाके जहां नक्सली सक्रिय हैं। इन क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। लक्ष्य है नक्सल प्रभावित इन क्षेत्रों में सड़क और पुलों का निर्माण ताकि यहां विकास का पहिया तेजी से दौड़ सके।

ज्यादातर नक्सल प्रभावित इलाके घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरे हैं। लिहाजा, वहां ना तो समुचित सड़कें हैं और ना ही उन तक रेल कनेक्टिविटी है। ऐसे में, इन क्षेत्रों के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए रोड कनेक्टिविटी को बेहतर करना सबसे जरूरी शर्त बन जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए विशेष केंद्रीय सहायता (SCA) के तहत केंद्र सरकार सबसे अधिक नक्सल प्रभावित जिलों में सार्वजनिक आधारभूत ढांचों को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रही है। यह योजना तीन सालों यानी 2017-18 से 2019-20 तक के लिए है। इसके लिए 3000 करोड़ का बजट रखा गया है।

नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क निर्माण योजना के पहले पार्ट में कुल 5422 किमी सड़क निर्माण का प्रस्ताव है। जिसमें से 4809 किलोमीटर सड़क का निर्माण हो चुका है। इसमें बिहार में 674 किलोमीटर की सड़क का निर्माण भी शामिल है। इसके बाद, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रोड कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट का भी है। इसके तहत बिहार में 1050 किलोमीटर की सड़क समेत कुल 5412 किलोमीटर की सडक का निर्माण होना है।

नक्सल प्रभावित इन इलाकों में विकास की रफ्तार तेज करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न सामाजिक और आर्थिक उपायों का सकारात्मक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। केंद्र सरकार की विकासपरक नीतियों का ही असर है कि 2015 में जहां सबसे अधिक नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 156 थी, वहीं 2019 में ये घट कर महज 90 रह गई है। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए बनाई गई नीतियां कारगर साबित हो रही हैं। साथ ही, इन इलाकों में विकास कार्यों के बढ़ने के साथ ही नक्सलियों की जड़ें और कमजोर होती चली जाएंगी। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब लाल आतंक का दंश झेल रहे इन क्षेत्रों में हर तरफ शांति और समृद्धि होगी।

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