छत्तीसगढ़: नक्सली इलाके में रहकर शुरू से की पढ़ाई, अब डॉक्टर बन कर रहे यहां के लोगों की सेवा

झारखंड की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले का चांदो इलाका एक दौर में नक्सल आतंक से जूझ रहा था। यहां नक्सलियों (Naxals) की दहशत की वजह से विकास का कोई काम नहीं हो पाता था।

Naxal

नक्सलियों (Naxal) के साए में रहे कंदरी निवासी विजय कुमार मिंज के छोटे बेटे शांति नंदन मिंज की इच्छा डॉक्टर बनकर गांव के लोगों की सेवा करने की थी।

झारखंड की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले का चांदो इलाका एक दौर में नक्सल (Naxal) आतंक से जूझ रहा था। यहां नक्सलियों की दहशत की वजह से विकास का कोई काम नहीं हो पाता था। लेकिन लाल आतंक के साए में रहे इस इलाके में सरकार और प्रशासन के प्रयासों से अब विकास हो रहा है, जिसकी वजह से यहां शिक्षा के क्षेत्र में भी बेहतरी आई है। यहां के युवा सफलता की इबारत लिख रहे हैं। कामयाबी की ऐसी ही एक दास्तान है डॉ. शांति नंदन मिंज की।

Naxal

नक्सलियों (Naxal) के साए में रहे कंदरी निवासी विजय कुमार मिंज के छोटे बेटे शांति नंदन मिंज की इच्छा डॉक्टर बनकर गांव के लोगों की सेवा करने की थी। वह 25 साल की उम्र में अपनी लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर एमबीबीएस डॉक्टर बन चुके हैं। नक्सल प्रभावित चांदो के कंदरी गांव में रहने वाले किसान का बेटा डॉक्टर बना तो किसान पिता ने कलक्टर से आग्रह किया कि गांव के लोगों की सेवा का मौका उनके बेटे को मिलना चाहिए। पिता के आग्रह को कलक्टर भी ठुकरा न सके और उनके निर्देश पर चांदो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उसकी पदस्थापना कर दी गई। शांति नंदन मिंज की सफलता की कहानी में कई मुश्किल पड़ाव हैं, जिन्हें पार कर वे इस मुकाम पर पहुंचे हैं।

खपरैल मकान में रहकर गुजर-बसर करने वाले कृषक पिता विजय कुमार मिंज की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिला इस मुकाम तक पहुंचा सकें। लेकिन गांव के इस होनहार युवक ने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और एमबीबीएस की डिग्री हासिल करके गांव ही नहीं पूरे जिले का मान बढ़ाया। शांति नंदन कक्षा 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद शिक्षाकर्मी वर्ग तीन के लिए चयननित हुए थे। लेकिन वह शिक्षाकर्मी की नौकरी करके अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहते थे। पिता ने बेटे के जज्बे को देखा तो वे भी उसकी जिद्द के आगे हार मान गए और हरसंभव पुत्र का हौसला बढ़ाया।

पढ़ें: लोहरदगा से हार्डकोर PLFI नक्सली धराया, असलहा और विस्फोटक बरामद

शांति नंदन मिंज ने आठवीं कक्षा तक बलरामपुर जिले के शासकीय स्कूल में पढ़ाई करने के बाद अम्बिकापुर के सेंट जेवियर स्कूल में हायर सेकेंडरी स्कूल तक शिक्षा ली। छत्तीसगढ़ पीएमटी के बाद नीट की परीक्षा पास करके उन्होंने जगदलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल से एमबीबीएस किया। खेती-किसानी में परिजनों का हाथ बटाने वाले शांति नंदन अब डॉक्टर बन चुके हैं। बता दें कि पहले भी शांति नंदन ने सीजी पीएमटी में क्वालीफाई किया था, परंतु आर्थिक स्थिति कमजोर होने और दिन-रात माता-पिता के द्वारा खेतों में की जाने वाली मेहनत को देखते हुए वे एमबीबीएस में दाखिला नहीं ले पाए।

इनके बड़े भाई रामसागर मिंज पिता के साथ खेती-किसानी में हाथ बंटाते हैं। बहन सालोमिना बलरामपुर में प्राइवेट जॉब करती हैं। जगदलपुर मेडिकल कॉलेज से पास आउट होने के बाद शांति नंदन को नियुक्ति के लिए जिला कलेक्टर ने जब अपने कार्यालय में बुलाया तो उसके साथ पिता विजय कुमार भी गए थे। उनकी नियुक्ति रघुनाथपुर स्वास्थ्य केंद्र में करने की तैयारी थी, जिसके लिए आदेश जारी किया जाना था। साथ पिता ने इस पर कलेक्टर से आग्रह किया कि उनका घर कंदरी में है, वे चाहते हैं कि उनका बेटा क्षेत्र के अस्पताल में रहकर लोगों की सेवा करे। इस पर कलेक्टर ने चांदो अस्पताल में प्रथम पदस्थापना के लिए आदेश जारी करने को कहा।

पढ़ें: भारत-पाकिस्तान संबंध 2019: जंग-ए-मैदान से पैगाम-ए-अमन तक का सफर

सीएमएचओ बलरामपुर ने इसके लिए आदेश भी जारी कर दिया है। आदेश जारी होने के बाद 20 दिसंबर को डॉ. शांति नंदन ने चांदो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ज्वाइन कर सेवा देना शुरू कर दिया है। चांदो में 10 साल पहले 30 बेड का अस्पताल बना था। यहां पहली बार कोई एमबीबीएस डॉक्टर नियुक्त हुआ है। खेती-किसानी करके परिवार का गुजारा करने वाले किसान के पुत्र के डॉक्टर बनने से गांव के लोगों में भी खुशी है। पहले, अस्पताल में एमबीबीएस डॉक्टर नहीं होने से क्षेत्र के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था।  प्राथमिक इलाज के लिए इन्हें बलरामपुर, अम्बिकापुर, रामानुजगंज, झारखंड, उत्तरप्रदेश जाना पड़ता था। एमबीबीएस चिकित्सक की नियुक्ति के बाद नक्सली (Naxal) इलाके चांदो के अस्पताल में इलाज के साथ पोस्टमार्टम की भी सुविधा स्थानीय स्तर पर मिलेगी।

चांदो स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ किए गए डॉ शांति नंदन मिंज व उनके पिता विजय कुमार का क्षेत्रवासियों ने घर पहुंचकर अभिनंदन किया। डॉ शांति नंदन मिंज मिसाल हैं नक्सल प्रभावित क्षेत्र के उन युवाओं के लिए जो अपने सपनों को जीना चाहते हैं। साथ ही उन युवाओं के लिए भी जो गुमराह हो गए हैं। बता दें कि बलरामपुर-रामानुजगंज की सीमाएं उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश से सटी हुई हैं। झारखंड और मध्यप्रदेश के नक्सलियों (Naxal) के लिए यह सीमा सेफ जोन की तरह है। यही वजह है कि यह इलाका नक्सलवाद की चपेट में रहा है। पहाड़ी और घनी जंगली इलाकों में घनदाट पर्वत श्रेणी जिले के एक बड़े हिस्से को कवर करता है। यही वजह है कि नक्सली (Naxal) इस इलाके में अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं।

पढ़ें: निशाने पर थी पुलिस पर गई बच्ची की जान, नक्सलियों ने बिछाई बारुदी सुरंग

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें