Chhattisgarh: कृषि के क्षेत्र में लगातार हो रहा विकास, अब प्राकृतिक खेती के लिए शुरू होगा पायलट प्रोजेक्ट

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में कृषि के क्षेत्र में भी लगातार विकास हो रहा है। राज्य में प्राकृतिक खेती की शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हो सकती है। राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष अजय सिंह ने कृषि विभाग और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को ऐसा करने का सुझाव दिया है।

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योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने सुझाव दिया कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में इस तकनीकि की उपयोगिता का परीक्षण कर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, गौठान गतिविधि एवं अन्य योजनाओं की मदद से पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाए।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में कृषि के क्षेत्र में भी लगातार विकास हो रहा है। राज्य में प्राकृतिक खेती की शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हो सकती है। राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष अजय सिंह ने कृषि विभाग और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को ऐसा करने का सुझाव दिया है। दरअसल, योजना आयोग में 5 नवंबर को प्राकृतिक खेती की उपयोगिता और संभावना पर एक कार्यशाला हुई।

इस कार्यशाला में आंध्र प्रदेश की रायतु साधिकारा संस्था के अध्यक्ष टी. विजय कुमार ने बताया कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में यह पद्धति किसानों के लिए उपयोगी हो सकती है। उनका कहना था कि प्राकृतिक खेती की इस पद्धति से धान की उत्पादकता में 9 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। वहीं लागत में लगभग 20 प्रतिशत की कमी भी आएगी। इससे किसानों की आय बढ़ेगी।

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राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष अजय सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना से गोबर खरीद कर वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। इससे प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। इस दौरान मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा ने कहा, प्राकृतिक खेती की सफलता की संभावना किसानों की सामुदायिक भागीदारी से संभव हो सकती है।

टी. विजयकुमार ने अधिकारियों को बताया, प्राकृतिक खेती शुरू होने के बाद सरकार को फर्टिलाइजर, बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी की बचत होगी। किसानों को फर्टिलाइजर व पेस्टीसाइड पर खर्च करने की जरूरत नहीं होगी। किसानों की आय में वृद्धि होगी। पानी की जरूरत भी कम होगी और किसान एक से अधिक फसल ले सकेंगे।

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इस कार्यशाला में यह बताया गया कि प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश में उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। इस तकनीक में मुख्यतः गोबर, गौमूत्र तथा प्राकृतिक रूप से खाद (जीवामृत, बीजामृत) का उपयोग कृषि कार्य में किया जाता है। जिससे रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी आने से कृषि की लागत में कमी आती है।

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योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने सुझाव दिया कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में इस तकनीकि की उपयोगिता का परीक्षण कर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, गौठान गतिविधि एवं अन्य योजनाओं की मदद से पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाए। वहीं, कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. एम गीता ने इसकी कार्ययोजना तैयार करने और इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू करने पर सहमति जताई है।

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