Chhattisgarh: नक्सलियों के गढ़ में खोले जाएंगे सुरक्षाबलों के कैंप, मिलेगी विकास को गति

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ लड़ाई जोरों पर है। नक्सलियों (Naxals) की नकेल कसने के लिए सुरक्षाबल मुस्तैद हैं। अब नक्सलियों के गढ़ में विकास पर जोर दिया जा रहा है।

Naxalites

सांकेतिक तस्वीर।

नक्सली (Naxalites) सरकार द्वारा इलाके में किए जा रहे विकास कार्यों का विरोध करते हैं और उसे नुकसान पहुंचाते हैं। यही वजह है कि अब निर्माण कार्य की सुरक्षा के लिए जवान मुस्तैद रहेंगे।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ लड़ाई जोरों पर है। नक्सलियों (Naxals) की नकेल कसने के लिए सुरक्षाबल मुस्तैद हैं। अब नक्सलियों के गढ़ में विकास पर जोर दिया जा रहा है। इसी कड़ी में अब सुरक्षाबलों की निगरानी में जगह-जगह सड़कें व पुल बनाए जाएंगे। इस तरह नक्सली निर्माण का विरोध नहीं कर पाएंगे।

बता दें कि नक्सली सरकार द्वारा इलाके में किए जा रहे विकास कार्यों का विरोध करते हैं और उसे नुकसान पहुंचाते हैं। यही वजह है कि अब निर्माण कार्य की सुरक्षा के लिए जवान मुस्तैद रहेंगे। सड़क बनने के बाद लोगों की लगातार आवाजाही से आईईडी लगाना भी नक्सलियों (Naxals) के लिए आसान नहीं होगा।

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वहीं, सुदूर इलाकों में सुरक्षाबलों की पहुंच बढ़ेगी। नक्सल मोर्चे पर सरकार की तैयारी बीजापुर, दोरनापाल और अरनपुर से जगरगुंडा को जोड़ने की है। इस बीच में सड़क व पुल-पुलिया के कई काम चल रहे हैं, लेकिन नक्सलियों के कारण काम प्रभावित होता है। कोर एरिया होने के कारण लोग भी नक्सलियों (Naxalites) के प्रभाव में हैं। इन इलाकों से पुलिस और सुरक्षाबल भी दूर हैं।

सड़कें व पुल-पुलिया बनने से वे इन इलाकों तक आसानी से पहुंच सकेंगे। लोगों को शौचालय, राशन, आवास, जन धन खातों में पैसे जैसी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं। सड़कें बनेंगी तो लोग विकास से जुड़ेंगे। बाकी योजनाएं भी लोगों तक पहुंच पाएंगी। इस तरह नक्सलियों के खिलाफ सरकार दोहरी लड़ाई में सरकार व पुलिस मजबूत होगी। साथ ही जंगलों के बीच में सुरक्षाबलों के कैंप खोले जाएंगे।

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जंगलों में कैंप होने की स्थिति में ऑपरेशन के दौरान जवानों के लांचिंग पैड ज्यादा होंगे। उनके लिए जरूरी हथियार या मदद भी आसानी से पहुंच पाएगी। इसीलिए सीएम भूपेश बघेल ने एक बार फिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पूर्व में स्वीकृत सीआरपीएफ की 7 बटालियन उपलब्ध कराने की मांग की है, जिससे नक्सलियों के खिलाफ चल रही लड़ाई को निर्णायक मुकाम तक पहुंचाया जा सके।

बता दें कि फिलहाल बस्तर में केंद्रीय सुरक्षा बलों की 45 बटालियनें तैनात हैं जिसमें प्रदेश की फोर्स यानी सीएएफ, एसटीएफ और डीआरजी जवान भी हैं। नक्सलियों (Naxalites) से लड़ाई अब कोर एरिया में सिमटती जा रही है। इसमें बासागुड़ा, भेज्जी, दोरनापाल, किष्टाराम और जगरगुंडा का हिस्सा है।

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साथ ही महाराष्ट्र बॉर्डर से लगे छोटे डोंगर, ओरछा, बांदे का हिस्सा है, जहां नक्सलियों के ट्रेनिंग कैंप और बटालियन हैं। नक्सलियों के खिलाफ इस लड़ाई में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व ग्रुप (डीआरजी) की बड़ी भूमिका है। कभी नक्सलियों के साथ रहे ये लड़ाके अब पुलिस की ओर से आर-पार की लड़ाई में शामिल हैं। यही वजह है कि ये नक्सलियों की हर चाल से वाकिफ हैं।

हालांकि सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि किसी एक सूचना पर नक्सलियों (Naxalites) का पीछा करते हुए जवान जंगल के काफी अंदर चले जाते हैं। यहां उन्हें तत्काल मदद मिलने का कोई जरिया नहीं होता। ऐसे में जंगल के भीतर कैंप खुलने से उसका लांचिंग पैड की तरह इस्तेमाल किया जा सकेगा।

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एक वजह यह भी है कि नक्सली कैंप खुलने का विरोध करते हैं। हालांकि कई ऐसे भी इलाके हैं, जहां के स्थानीय लोगों ने कैंप खोलने की मांग भी की है। इस दिशा में भी पुलिस कोशिश कर रही है।

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बता दें कि स्टेट को-ऑर्डिनेशन कमिटी की मीटिंग में बस्तर में आक्रामक पुलिसिंग की रणनीति बनाई गई है। यानी जिस तरह शहरों में पुलिस चोरी, लूट जैसे अपराध में धरपकड़ करती है या आरोपियों के साथ बर्ताव करती है, उसी तरह बस्तर में भी नक्सल से जुड़े अपराध के अलावा बाकी आपराधिक मामलों में भी सख्ती होगी।

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