बिहार: शिक्षा के जरिए खत्म हो रहा नक्सलवाद का अंधेरा, कई बच्चों ने पास की मैट्रिक की परीक्षा

इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी पीढ़ियों में पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की है। ये बच्चे साइबर कैफे की सहायता से आगे की पढ़ाई की व्यवस्था कर रहे हैं।

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सांकेतिक तस्वीर

कहते हैं कि बदलाव की शुरुआत कहीं से भी की जा सकती है। इसी कड़ी में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों ने पढ़ने की ठानी है और वह अब मैट्रिक पास करके इंटर के फॉर्म भरने की लाइन में हैं।

बिहार का औरंगाबाद एक नक्सल (Naxal) प्रभावित क्षेत्र है। यहां अक्सर नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ की खबरें सामने आती हैं। कई बार तो लोग घर से बाहर निकलने से पहले भी सौ बार सोचते हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता होता कि वो शाम तक अपने घर वापस लौटेंगे, या किसी नक्सली (Naxal) का शिकार बन जाएंगे। ऐसे माहौल में यहां के बच्चों का जीवन किसी अंधेरी कोठरी में रहने वाले कैदी से कम नहीं है। यहां शिक्षा का अभाव है और बच्चों का जीवन स्तर बहुत निम्न स्तरीय है।

कहते हैं कि बदलाव की शुरुआत कहीं से भी की जा सकती है। इसी कड़ी में इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बच्चों ने पढ़ने की ठानी है और वह अब मैट्रिक पास करके इंटर के फॉर्म भरने की लाइन में हैं।

औरंगाबाद के मदनपुर थाना क्षेत्र के दक्षिणी इलाके में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जो अब तक नक्सलियों के डर के साए में जी रहे थे। जुड़ाही, पिछुलिया, चिलमी, जमुनिया, धोबीबाग, मुंशी बिगहा और शिवननगर गांव के बच्‍चों ने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली है और अब वह इंटर में नामांकन कराने के लिए कोशिश कर रहे हैं।

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इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी पीढ़ियों में पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की है। ये बच्चे साइबर कैफे की सहायता से आगे की पढ़ाई की व्यवस्था कर रहे हैं। इनमें से कई बच्चे टीचर बनकर बाकी बच्चों का भविष्य संवारना चाहते हैं ।
इलाके की पुलिस भी बच्चों को प्रोत्साहित कर रही है। मदनपुर थाना परिसर में कुछ बच्चों को हालही में सम्मानित किया गया है। इन बच्चों को कलम, कॉपी समेत अन्य सामान दिया गया है।

इस मामले में एसपी अभियान राजेश कुमार सिंह ने मीडिया से बात की और कहा कि बच्चों की शिक्षा से यहां नक्सलवाद में कमी आएगी। नक्सली इलाकों में शिक्षा के अभाव की वजह से ही बच्चे नक्सली बन जाते हैं।

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