
यहां की हवा में बारूद की महक फैली थी और इलाके के लोग लाल आतंक के साए में जीने को मजबूर थे। लेकिन आज यहां की हवा में केसर (Saffron) की महक फैल रही है।
बिहार (Bihar) के गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड के इस गांव में कभी गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थी। यहां के जंगलों में नक्सली संगठन एवं पुलिस के बीच आए दिन जमकर मुठभेड़ (Naxal Encounter) होती थी। यहां की हवा में बारूद की महक फैली थी और इलाके के लोग लाल आतंक के साए में जीने को मजबूर थे। लेकिन आज यहां की हवा में केसर (Saffron) की महक फैल रही है।
हम बात कर रहे हैं प्रखंड के दिवनिया पंचायत के चांदो गांव की। गांव के अनुसूचित जाति परिवार से आने वाले कमल देव मांझी ने केसर की खेती कर एक नई शुरुआत की है। केसर के फूलों को देख वहां से गुजरने वाले भी रुक जाते हैं। दूसरे जगह के किसान भी यहां पहुंचकर कमल देव मांझी से इसकी खेती की जानकारी लेने लगे हैं।
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दरअसल, कमल देव मांझी को चतरा के एक किसान से खेती की प्रेरणा मिली। कमल देव मांझी बताते हैं कि केसर (Saffron) की खेती से हमलोगों का कोई वास्ता नहीं था। इसके बारे में जानते तक नहीं थे। लेकिन संयोग से एक बार वे झारखंड के चतरा जिले में अपने एक रिश्तेदार के यहां गए हुए थे और वहां पर केसर की खेती देखी थी।
उन्होंने रिश्तेदार से बातचीत की। उन्होंने कहा कि यह पलवल केसर है। इसकी खेती आप भी कीजिए। कमलदेव को उस किसान ने केसर का बीज उपलब्ध कराया। उसे लेकर अपने घर पहुंचे और इसकी खेती शुरू की। आज नतीजा सामने है। कमल देव बताते हैं कि अपने घर के पीछे ढाई कट्ठा जमीन पर केसर की खेती की है। बहुत अच्छी फसल हुई है।
उसके फूल को तोड़ कर घर में सुखाते हैं एवं उसे एक पैकेट में भरकर रख रहे हैं। हालांकि, दुख की बात यह है कि केसर (Saffron) का बाजार भाव क्या है इसकी जानकारी ही नहीं है। फिलहाल, केसर के फूलों को तोड़कर कमल देव और उनकी पत्नी जयंती देवी सहेज कर रख रहे हैं कि आने वाले दिनों में इसे बिक्री कर दो पैसे की आमदनी कर पाएंगे।
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बता दें कि केसर (Saffron) पेट संबंधी बीमारियों के इलाज में बहुत फायदेमंद होता है। पेट में मरोड़, गैस, एसिडिटी आदि बीमारियों से परेशान रहने पर केसर से राहत मिलती है। इसका इस्तेमाल खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए भी किया जाता है केसर का उपयोग ब्यूटी प्रोडक्शन और मेडिसिन में भी लोग करते हैं।
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