नक्सल प्रभावित बस्तर की पहली आईआईटियन सावित्री की कहानी

सावित्री बस्तर की ऐसी पहली छात्रा हैं, जिन्होंने आईआईटी क्रैक किया। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में गरीबी और संसाधनों के अभाव का सामना करते हुए अनपढ़ माता-पिता की इस बेटी ने इतिहास रच दिया।

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संसाधन की कमी को दरकिनार कर सावित्री ने यह साबित कर दिया कि इंसान अगर ठान ले तो वह कुछ भी संभव कर सकता है। बस्तर के छोटे से गांव कुरंदी के आदिवासी किसान की बेटी सावित्री कश्यप ने देश की सबसे कठिन परीक्षा में से एक आईआईटी की प्रवेश-परीक्षा पास कर एक मिसाल पेश किया। सावित्री बस्तर की ऐसी पहली छात्रा हैं, जिन्होंने आईआईटी क्रैक किया। उन्हें 2016 की जेईई एडवांस में 1135 वां रैंक हासिल हुआ था। उन्होंने देश के सबसे बड़े तकनीकी संस्थान आईआईटी में पढ़ाई करने का गौरव हासिल किया। वह इंजीनियर बनकर देश की सेवा करना चाहती हैं।

सावित्री ने एक प्रतियोगिता परीक्षा के जरिए “प्रयास” आवासीय विद्यालय, परचनपाल में एडमिशन लिया था। वहीं पर उनके सपनों को पर लगे। शिक्षकों का प्रयास और सावित्री की कड़ी मेहनत रंग लाई। “प्रयास-प्रोग्राम” छत्तीसगढ़ सरकार के ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट की ओर से चलाया जा रहा एक कोचिंग-इनिशिएटिव है जो आदिवासी बच्चों को प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करवाता है। सावित्री शुरू से ही पढ़ाई में अच्छी थीं। उन्होंने 10वीं में भी टॉप किया था।

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आईआईटी क्रैक करने वाली बस्तर की सावित्री

सावित्री के पिता महादेव खेती-बाड़ी कर घर चलाते हैं। उनकी मां रामवती भी घर के काम के अलावा खेती में अपने पति का हाथ बंटाती हैं। सावित्री जब भी घर पर होती हैं, घर के कामों में सहयोग करती हैं। वह मां के साथ लकड़ी चुनने भी जाती हैं और पिता के साथ खेतों में भी काम करती हैं। उनकी मां ने कभी स्कूल नहीं देखा, वह अनपढ़ हैं। पिता ने बस तीसरी तक पढ़ाई की है। पर इन दोनों ने शिक्षा के महत्व को समझा। बेटे और बेटी में फर्क किए बिना सभी बच्चों को पढ़ाया। उनकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। घर में माता-पिता और सावित्री के आलावा बहनें राजमनी, रामेश्वरी, सुकलवती, पदमा और भाई सावन हैं। सुकलवती ने डीएड तो पदमा ने आईटीआई किया है। बाकी भाई-बहन भी पढ़ाई कर रहे हैं।

सावित्री ने भले ही जेईई एडवांस पास कर लिया हो, पर उनके माता-पिता को इस परीक्षा के मायने तक नहीं पता। उनके पिता ने बताया कि उन्हें मालूम है कि उनकी बेटी ने कोई परीक्षा पास की है। पर वह किसकी परीक्षा है और उससे क्या होगा, वे नहीं जानते। उनकी बेटी जो चाहे, जितनी चाहे पढ़ाई करे। जब तक उनकी हैसियत होगी वे उसे पढ़ाएंगे।

सावित्री अपनी इस कामयाबी को महज एक शुरुआत मानती हैं। वह कहती हैं कि उन्हें अभी आगे जाना है, कई और मंजिलें हैं जो तय करनी हैं। सावित्री ने अपने सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत की। अशिक्षित माता-पिता ने भी आईआईटी का मतलब जाने बगैर बेटी का मनोबल बढ़ाया। उन्हें सरकार की फ्री-कोचिंग सुविधा का भी फायदा मिला। अब इंजीनियर बन कर सावित्री अपना, परिवार का और बस्तर का भविष्य संवारेंगी।

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