केजरीवाल 2.0

Arvind Kejriwal 2016-17 तक जिस बागी तेवर में दिखते थे, वह तेवर अब गायब हो चुका है। आंदोलनकारी की पहचान से आगे अब वो व्यवस्थावादी राजेनेता बन गए हैं।

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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) एक मंझे हुए राजनेता बन गए हैं।

दिल्ली के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मजबूत दावा ठोक रहे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) देश की राजनीति में एक विशिष्ट और अनूठी जगह रखते हैं। पिछले चार दशकों में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) जैसा सेल्फ मेड पॉलिटिशियन होने और एक कामयाब क्षेत्रीय दल गठित करने का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। इससे पहले लोहिया युग, आपात काल और अगड़े-पिछड़ों की राजनीति के उपज की तरह मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadava) और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadava) हमारे सामने आए थे। वह 70 के दशक की बात है। ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) ने अपने बल पर टीएमसी बनाई लेकिन वह पहले से ही कांग्रेस की एक जुझारू नेता की अपनी छवि बना चुकी थीं। मायावती (Mayawati) को कांशीराम की छत्रछाया और राजनीतिक विरासत का लाभ मिला। और अखिलेश, तेजस्वी, चौटाला बंधु, स्टालिन, नवीन पटनायक इत्यादि की गिनती राजनीतिक वंशजों की श्रेणी में होगी।

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आंदोलनकारी अरविंद केजरीवाल अब मंझे हुए राजनेता बन गए हैं।

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपनी पहचान तो अन्ना आंदोलन के कंधों पर चढ़कर बनाई पर आम आदमी पार्टी (Aam Adami Party) अपने दम-खम पर बनाई और आगे बढ़ाई। दिल्ली में 2013 और फिर 2015 में चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाने का प्रयास किया और कुछ कामयाब भी हुए। लेकिन पहले पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों में और फिर 2019 के आम चुनावों में हारने के बाद वह और उनकी पार्टी फिर दिल्ली में सिमट कर रह गए हैं।

इन पांच 6 वर्षों की यात्रा में केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपनी राजनीतिक शख्सियत और छवि में पूरे 360 डिग्री का परिवर्तन कर लिया है। 2013 से 2016-17 तक का क्रांतिकारी, बागी और ताजी हवा के झोंके जैसा अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अब एक व्यवस्थावादी, व्यावहारिक और कुछ हद तक ज्यादातर अन्य नेताओं जैसा ही बोरिंग और बासी हो गया है। जाने-माने पत्रकार और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के सहयोगी रह चुके आशुतोष (Ashutosh) ने लिखा है- कल का एनार्किस्ट अब एक प्रैग्मेटिक पॉलिटिशियन बन गया है।

कभी राजनीति में सनसनी का दूसरा नाम बन चुके केजरीवाल अब संजीदा दिखने के प्रयास में रहते हैं। मुकेश अंबानी से लेकर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ कभी-कभी तो अनर्गल की सीमा तक 24 घंटे आग उगलने वाला ज्वालामुखी अब शांत, शीतल और जिम्मेदार बनने की फिराक में रहता है।

कई प्रेक्षकों की नजर में केजरीवाल (Arvind Kejriwal), छोटे मोदी (Narendra Modi) हैं। बात चाहे पार्टी में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को ठिकाने लगाने की हो या फिर प्रचार-प्रसार की, केजरीवाल (Arvind Kejriwal) मोदी (Narendra Modi) से उन्नीस नहीं पड़ते। लेकिन केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अब नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से सीधे टकराव से बचते हैं। विवादास्पद मुद्दों पर भी कोई स्पष्ट पोजिशन नहीं लेते। चाहे बात CAA और NRC की हो या JNU और जामिया की, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अब ऐसी किसी चर्चा में नहीं फंसना चाहते जिससे वह मुस्लिम परस्त या वामपंथियों के साथ मुखर रूप से खड़े दिखें। उनका फंडा स्पष्ट है, क्यों फंसें वह राष्ट्रवाद बनाम सेक्युलरवाद की चर्चा में? बीजेपी (BJP) विरोधियों के लिए तो वह दिल्ली में अकेले विश्वसनीय और जिताऊ विकल्प की तरह स्थापित हो ही चुके हैं। ये वोटबैंक तो उनकी जेब में है ही। क्यों उस दक्षिणपंथी कॉन्स्टिट्यूएंसी को भी वह अपने से दूर जाने दें जो राष्ट्रीय स्तर पर तो मोदी भक्त हो सकती है पर दिल्ली के संदर्भ में राज्य सरकार के कामकाज और अपेक्षाकृत कम भ्रष्टाचार वाले संवेदनशील प्रशासन के मुद्दे पर केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के साथ है।

इसमें कोई शक नहीं है कि केजरीवाल (Arvind Kejriwal) आज गरीब, दलित, अल्पसंख्यकों और मध्यम वर्ग के भी एक बड़े पक्ष का समर्थन अपने पक्ष में करने में कामयाब हुए हैं। बात चाहे सरकारी स्कूलों के स्तर में सुधार की हो या स्वास्थ्य समेत अन्य जन सुविधाओं की या बिजली-पानी के बिलों में भारी कटौती की। सभी मोर्चों पर केजरीवाल दिल्ली में अपने विरोधियों पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। दिल्ली की राजनीति में उनका ना कोई सानी है, ना ही कोई विकल्प। ऐसे टीना फैक्टर की मैसेजिंग करने में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और उनकी सोशल मीडिया सेना खासी कामयाब दिखती है। निष्कर्ष स्पष्ट है, आने वाले दिनों में कोई राजनीतिक अजूबा ही अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) द्वारा बिछाई गई जीती हुई बिसात को शिकस्त में बदल सकता है। साथ ही, यह भी स्पष्ट है कि 2013 में नवीनता और ताजगी लिए जो केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भारतीय राजनीति को हमेशा के लिए बदल देने का विश्वास दिला जनता की नजरों में चढ़े थे, उनमें और 2020 के अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) में जमीन आसमान का फर्क है।

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