कर्नल सुशील तंवर की कहानी ‘Twenty-20’

पूरे मैच के दौरान उनकी निगाहे जाकिर को ढूंढ रही थीं लेकिन वो नदारद था। उनके दिमाग में अजीब से ख्याल आ रहे थे। शायद बीमार तो नहीं हो गया या फिर नूरपुरा वालों ने उसे मुखबिर करार दे कर अलग तो नहीं कर दिया।

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सांकेतिक तस्वीर

कश्मीर, खासकर दक्षिणी कश्मीर में पुलिस और सेना के जवानों पर पत्थरबाजी आम बात रही है। स्थानीय लड़के इस पत्थरबाजी को ‘ट्वेंटी-ट्वेंटी’ का नाम देते हैं। कारण, जितना आम पत्थरबाजी है वहां, उतना ही आम है वहां क्रिकेट। फिर तो, क्रिकेट के जरिए स्थानीय युवाओं को मुख्यधारा में लाया जा सकता है। उन्हें आतंकी तंजीमों से दूर रखने में क्रिकेट बहुत मददगार साबित हो सकता है। कर्नल राय ने भी ऐसी ही कोशिश की। इस कोशिश का जो हासिल था वो बेहद चौंकाने वाला था…

“तुम सबको पता है ना कि कल का दिन कितना अहम है। पूरा कश्मीर कल बंद रहेगा। ऐसे में अलगाववादी तत्व मौके का फायदा उठा कर हमेशा की तरह हिंसा भड़काने की कोशिश करेंगे।”

82 राष्ट्रीय राइफल्स के कमान अधिकारी कर्नल अभिमन्यु राय की कड़क आवाज फोन पर गूंज रही थी। फोन के दूसरी तरफ इन निर्देशों को ध्यान से सुन रहे सभी कंपनी कमांडरों के लिए उनका हर लफ्ज़ बेशकीमती था।

“इसलिए हमारे जवानों को बहुत एहतियात के साथ काम करना होगा। मैंने पुलिस और सीआरपीएफ को पहले ही आगाह कर दिया है। लोगों पर काबू पाने की पहली जिम्मेदारी उनकी होगी। लेकिन अगर हालात बिगड़ने की आशंका हो तो हमें उनकी मदद के लिए तैयार रहना है।”

कर्नल राय ने फोन रखा और अपने छोटे खूबसूरत से आशियाने की बालकनी में आ कर पसर गए। बड़ा सुकून मिलता था उन्हें उस बालकनी में। कुछ खिले हुए फूल और कुछ किताबें। दूर नजर आते बर्फ से ढंके पहाड़ और इन सब के दरमियान लहराते खेत और घने बागान। वहां बैठ कर वो अक्सर सोचते कि काश ऐसा सुकून पूरे इलाके में होता। पर वो ये भी जानते थे कि इस ख्याल को असलियत का जामा पहनाना कितना मुश्किल था।

दक्षिण कश्मीर में बसा त्राल कट्टरपंथियों का गढ़ माना जाता था। तकरीबन सौ से ज्यादा गांवों से बना हुआ ये इलाका सैलानियों के लिए भले ही अद्भुत हो सकता था, लेकिन सुरक्षा बलों के लिए अत्यंत दुर्गम था। हालांकि, विडंबना ये थी कि बाकी कश्मीर वादी की तरह यहां के भी जितने नौजवान आतंकी दलों में शामिल हुए थे, उससे कहीं ज्यादा युवक भारतीय सेना और पुलिस में कार्यरत थे।

उस रात कर्नल राय को आने वाले कल की फिक्र थी। पिछले दो सालों में ऐसे कई मौके आए थे जब बंद और हड़ताल की आड़ में उनकी जिम्मेदारी के इलाके में हिंसा और पत्थरबाजी हुई थी। लेकिन पिछले कुछ महीनों में पुलिस और सुरक्षाबलों ने भी नए-नए तरीके ईजाद कर हालात पर काफी काबू पा लिया था।

अगले दिन भी खुदा की मेहरबानी से त्राल में अमन कायम रहा। कहीं भी कुछ खास गड़बड़ नहीं हुई। सिवाय नूरपूरा के। नूरपुरा नेशनल हाईवे से चंद किलोमीटर दूर था। पिछले कुछ सालों में वहां पर हालात कुछ ज्यादा ही खराब हो गए थे। यहां के चंद लड़के अलग-अलग आतंकवादी तंजीमों में शामिल हो गए थे और जब उनमें से कुछ मारे गए तो फिर एक सिलसिला शुरू हो गया। नूरपुरा का कोई नौजवान आतंकी किसी मुठभेड़ में मारा जाता तो उसके जनाजे पर भड़काऊ तकरीरें और नारेबाजी होती। जोश में आई भीड़ सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करती। एक दो लड़के किसी आतंकी दल में शामिल हो जाते। फिर उनमें से कोई मारा जाता और यही सिलसिला चलता रहता।

नूरपुरा गांव और नेशनल हाईवे के बीच 82 राष्ट्रीय राइफल्स की डेल्टा कंपनी तैनात थी, जिसके कंपनी कमांडर थे मेजर रोहित फर्नांडिस। नूरपुरा के बेकाबू हालात से परेशान रोहित ने जब कर्नल राय को आज फिर हुई पत्थरबाजी के बारे में बताया तो कर्नल ने उसको धीरज रखने की सलाह दी और मन ही मन तय किया अब उनको इस बारे में कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे।

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कर्नल सुशील तंवर

अगले ही हफ्ते उन्होंने नूरपुरा में पूरा दिन गुजारने का प्लान बना डाला। वो अपने साथ त्राल के एसपी इरशाद अहमद को भी ले जाना चाहते थे। इरशाद के साथ उनके बहुत दोस्ताना ताल्लुक थे। लेकिन नूरपुरा में जाने की योजना सुन कर इरशाद भी थोड़ा सकपका गया था।

“क्या फायदा होगा सर? वो लातों के भूत हैं। हम जाएंगे तो फिजूल में उन्हें एक मौका और मिलेगा। बस हो जाएगा ट्वेंटी-ट्वेंटी शुरू।”

ट्वेंटी-ट्वेंटी से इरशाद का मतलब पत्थरबाजी से था। कश्मीर में क्रिकेट का इस कदर जुनून था कि रोजमर्रा की जिंदगी में भी क्रिकेट की बोलचाल ने अपना स्थान बना लिया था। और क्रिकेट के शौकीन नौजवान लड़कों ने पत्थरबाजी को नया नाम दे दिया था – ‘ट्वेंटी ट्वेंटी’। पत्थर बरसाना भी तो उनके लिए एक गेम ही था। कम समय में भरपूर रोमांच, बिलकुल क्रिकेट की तरह।

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“कुछ तो करना पड़ेगा न इरशाद भाई। हर हफ्ते ही नूरपुरा में तमाशा होता है। चलो लोगों से मिलते हैं, बात करते हैं, कुछ तो हल निकलेगा।”

“कुछ नहीं निकलेगा सर। नए लड़कों को मजा आता है इसमें। वो अपने गांव के बुजुर्गों की भी नहीं सुनते। और खास कर पुलिस वालों पर पत्थर मार कर ये अपनी खुंदक निकालते हैं। चलने दो ऐसे ही। इसी बहाने थोड़ी बहुत गर्मी निकल जाती है इनकी।”

इरशाद के सोचने का तरीका कर्नल राय से थोड़ा मुख्तलिफ था। लेकिन दोनों के बीच कमाल का तालमेल था। अगले हफ्ते सोचे हुए कार्यक्रम के मुताबिक उन्होंने नूरपुरा का दौरा किया। वहां के सरपंच और मौलवी समेत कुछ खास लोगों से मुलाकात भी की लेकिन वहां की आम जनता के चेहरों पर छाई बेरुखी उनसे छुपी न रही। वापसी में कर्नल राय ने मेजर रोहित से वहां के नौजवानों को मशरूफ रखने के लिए कुछ खेल-कूद के कार्यक्रम आयोजित करने को कहा।

“सर। यहां तो लड़के सिर्फ क्रिकेट के शौकीन हैं।”

“तो ठीक है। एक क्रिकेट का टूर्नामेंट ही कराते हैं। मैं और इरशाद फाइनल मैच देखने आएंगे। कोशिश करेंगे कि कुछ और वीआईपी मेहमान भी आएं। तुम अपनी तैयारी करो।”

अगले कुछ दिनों में मेजर रोहित ने क्रिकेट मैच आयोजित करने के लिए जी-जान लगा दी। फिर भी कुल मिलाकर चार टीमें ही तैयार हो पाईं और उनमें से भी दो स्थानीय स्पोर्ट्स क्लब वाली टीमें थीं, जो वैसे भी जगह-जगह जाकर मैच खेलती थीं। पहले तो वो फौज के किसी भी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हिचकिचाए थे। लेकिन जब रोहित ने उन्हें क्रिकेट का पूरा सामान तोहफे में देने की पेशकश की तो दोनों क्लब एकदम तैयार हो गए थे।

बस उन्हीं चार टीमों के साथ जैसे-तैसे टूर्नामेंट भी करा दिया गया। फाइनल में नूरपुरा लायंस ने त्राल टाइगर्स को हरा कर ट्रॉफी जीत ली। कर्नल राय खुद फाइनल के दौरान मौजूद थे। यूं तो टूर्नामेंट कुछ खास रोचक नहीं था, पर एक खिलाड़ी ने अपने प्रदर्शन से सबको अचंभित कर दिया था।

वह था नूरपुरा का जाकिर अहमद वानी। सिर्फ 18 साल के जाकिर की फाइनल में बैटिंग और बॉलिंग देख कर कर्नल राय भी खासे प्रभावित हुए थे। फाइनल में ‘मैन ऑफ द मैच’ का पुरस्कार देते वक्त उन्होंने उसे शाबाशी दे कर और भी ज्यादा मेहनत करने का सुझाव दिया था। लेकिन मैदान से वापस आते वक्त उन्हें रोहित का चेहरा कुछ उखड़ा-उखड़ा लग रहा था।

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“वेल डन रोहित! नई पीढ़ी के साथ क्रिकेट के माध्यम से जुड़ने की ये अच्छी कोशिश है। “

“थैंक यू सर।”

“तुम कुछ परेशान लग रहे हो, क्या सोच रहे हो? स्पीक अप रोहित।”

“सॉरी सर। मुझे नहीं लगता कि ये मैच कराने से कुछ खास हासिल होगा। यहां के नौजवानों के दिलो-दिमाग में जो जहर भर दिया गया है वो इतनी जल्दी और ऐसे तो खत्म नहीं होगा सर।”

“आपने देखा न कि दोनों टीमों ने कैसे हरे चांद तारे वाली ड्रेस पहनी थी। जैसे कि पाकिस्तान की टीम हो। “

“कम ऑन रोहित। हरे रंग पर सिर्फ पाकिस्तान का हक तो नहीं है न।”

“नो सर। पर ये लोग सब जानबूझकर करते हैं। एक खास पैगाम देने के लिए। और वो जो मैन ऑफ द मैच था जाकिर वानी।

“हां। द बॉय इस रियली टैलेंटेड। वो कम से कम आईपीएल तो खेल ही सकता है अगर सही मौका मिले तो।”

“वो तो है सर। लेकिन जब आपने पूछा कि सबसे पसंदीदा खिलाड़ी कौन है तो उसने कैसे आंखे निकाल कर शाहिद अफरीदी बोल दिया। अफरीदी को तो रिटायर हुए कई साल हो गए सर। और ऐसा कोई खास करियर भी नहीं था। वो कोहली या तेंदुलकर नहीं बोल सकता था क्या? लेकिन उसने जानबूझकर शाहिद अफरीदी बोला। दिस इज़ द प्रॉब्लम सर।”

मेजर रोहित फर्नांडिस के भावुक आवेग को सुन कर कर्नल राय के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई।

“रिलैक्स माय बॉय। मैं समझ रहा हूं कि तुम क्या कहना चाहते हो। लेकिन ऐसे हर छोटी-छोटी बात में कोई इशारा ढूंढोगे तो मायूसी ही हाथ लगेगी।”

“रोहित। जब मर्ज दिल का हो तो इलाज गुर्दे का नहीं किया जाता। हम शायद इतने सालों से यही गलती कर रहे हैं।”

“और रही बात उस स्टार क्रिकेटर जाकिर की। उसका ज़रा ध्यान रखो। बहुत प्रतिभाशाली है। कुछ मदद करनी पड़े तो कर देना।”

“वैसे शाहिद अफरीदी की बैटिंग मुझे भी बहुत पसंद थी। बिलकुल टाइम वेस्ट नहीं करता था। हिट आउट ऑर गेट आउट।”

अपने कमांडिंग ऑफिसर की बात सुनकर मेजर रोहित फर्नांडिस भी मुस्कुरा दिया था। बहरहाल, उस टूर्नामेंट के बाद भी नूरपुरा में पत्थरबाजी में कोई कमी नहीं आई थी। कभी सरकार के खिलाफ तो कभी मारे गए आतंकियों के जनाजे पर और कभी यूं ही जुम्मे की नमाज के बाद वहां के युवाओं के लिए ट्वेंटी-ट्वेंटी यानी पत्थरबाजी जिंदगी का हिस्सा बन गया था।

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ऐसे में पुलिस के पास इन नौजवानों की धरपकड़ के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। पंद्रह अगस्त के दिन भी जब नूरपुरा में पत्थरबाजी हुई तो पुलिस ने उसमें मुल्लविस कई युवकों को गिरफ्तार किया और उनमें से एक था जाकिर वानी।

उस दिन शाम को मेजर रोहित ने अपनी रिपोर्ट देते वक्त बातों-बातों में जाकिर के भी पकड़े जाने का जिक्र किया तो कर्नल राय ने उसकी मदद करने का मन बना लिया। वैसे इतनी सारी गिरफ्तारियों के बीच सिर्फ जाकिर के लिए उनके दिल में इतनी दया शायद इसलिए उमड़ आई थी क्योंकि उन्हें अब तक उस दिन फाइनल में जाकिर का प्रदर्शन याद था। उसी रात उन्होंने इरशाद से बात की।

“सुनो भाई। वो नूरपुरा थाने में जाकिर वानी नाम का लड़का भी पकड़ा गया है। एसएचओ को बोल कर उसे रिहा करा दो।”

“क्या हुआ सर/ कुछ खास मसला है क्या उसका? आज तक तो आपने ऐसी कोई गुजारिश नहीं की।”

“अरे कुछ नहीं। वो बड़े कमाल का खिलाड़ी है। देखा नहीं था उस दिन फाइनल में। एक बार किसी कानूनी झमेले में फंस गया तो उसका मुस्तकबिल बिगड़ जाएगा।”

ये सुन कर इरशाद से रहा नहीं गया।

“कमाल तो आप हो सर। ऐसे कितने लड़के कश्मीर के गली कूचों में भरे हुए हैं। जितनी फिक्र आपको है उतनी अगर उसको होती तो सड़कों पर निकलने की बजाय घर में आराम से बैठा होता।”

“और ये खिलाड़ी लोग ज्यादा जोश दिखाते हैं। पता है सर। एक और लड़का पकड़ा गया है, साकिब अहमद। उसे सब गिलेस्पी कहते हैं। वो ऑस्ट्रेलिया वाला फास्ट बॉलर। वो उसी की तरह तेज बॉलिंग करता है और बड़ी तेज पत्थर मारता है।”

“एक और है, इरफान। वो खब्बे हाथ से तिरछा होकर पत्थर फेंकता है। निशाना भी सटीक है। जडेजा के थ्रो की तरह। इसलिए उसे सब जड्डू बोलते हैं। ऐसे ही कई सूरमा और भी हैं। किस-किस को समझाएंगे सर?”

“अच्छा अच्छा ठीक है। अभी तो इसको रिहा करवाओ। साथ में जो तीन लड़के हैं, उन्हें भी छोड़ देना। अकेला रिहा होगा तो लोग शक करेंगे।” कर्नल राय को जाकिर की सच में फिक्र थी।

उसी रात को पुलिस ने जाकिर और साथ में तीन चार लड़कों को महज चेतावनी देकर छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद कर्नल राय को एक अनजान नंबर से फोन आया था।

“गुड मॉर्निंग सर। मैं ज़ाकिर, जाकिर वानी… नूरपुरा से…आपका शुक्रिया अदा करने के लिए फोन किया।”

“अरे जाकिर, कैसे हो? प्रैक्टिस कैसी चल रही है तुम्हारी? और शुक्रिया किस बात का बच्चे?”

“सर, वो थाने के मुंशी ने बताया कि उस दिन आपने मुझे छुड़वाया। मुझ से ज्यादा मेरे घरवालों को तसल्ली हुई।”

“सुनो जाकिर, तुम अभी बहुत कमउम्र हो। आगे पूरी जिंदगी पड़ी है। मुझे लगा इन चक्करों में फंस गए तो बुरी तरह उलझ जाओगे।”

“थैंक्यू सर। लेकिन पुलिस ने जितने लोगों को पकड़ा वो सभी तो कम उम्र के ही थे। सभी के आगे पूरी जिंदगी पड़ी है। सिर्फ मैं ही क्यों?”

“अरे! तुमने मुझे शुक्रिया अदा करने के लिए फोन किया है या बहस करने के लिए जाकिर?” कर्नल राय के ये कहते ही जाकिर थोड़ा झेंप गया था।

“जब त्राल शहर आओगे तो ज़रूर मिलना। उस दिन तुम्हारा गेम देख कर बहुत अच्छा लगा था।”

“जी सर, कोशिश करूंगा।”

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कर्नल राय ने तो उसे यूं ही मिलने की पेशकश कर दी थी। उन्होंने सोचा भी न था कि जाकिर उनके किले नुमा सुरक्षित परिसर में आने की जहमत करेगा। इसलिए जब कुछ दिनों बाद उन्हें मुख्य द्वार के इंचार्ज से संदेश आया कि कोई जाकिर वानी नाम का लड़का उनसे मिलने नूरपुरा से आया है तो वो अचंभित हो गए थे।

“गुड मॉर्निंग सर! वो आज यहां तहसील ऑफिस में कुछ काम था तो सोचा आपसे मुलाकात कर लूं।”

“अच्छा किया जाकिर, आते रहा करो। प्रैक्टिस कैसी चल रही है?”

“ठीक चल रही है सर, लेकिन सर्दियां भी आने को हैं। एक बार बर्फबारी शुरू हो गई तो फिर कहां खेलेंगे?”

“वो तो है… लेकिन अभी तो दो-तीन महीने हैं। तब तक जम कर खेलो। तुम सच में बहुत अच्छा कर सकते हो।”

कर्नल राय उसको प्रोत्साहित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे। लेकिन जाकिर के चेहरे पर जैसे कोई भाव उमड़ ही नहीं रहे थे।

“क्या हुआ जाकिर… चुप क्यों हो?”

“माफ कीजिए सर… कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं। त्राल डिग्री कॉलेज का एक लड़का था, मुद्दसिर… हमसे दो साल सीनियर…बहुत अच्छा क्रिकेटर था।”

“था मतलब… अभी कहां है वो?”

“मर गया सर… दरअसल, मार दिया गया। उसके मोहल्ले में एनकाउंटर हुआ था। वो अपने घर से बाहर निकला था बाकी लड़कों के साथ। फौज की गोली लगी और शहीद हो गया।”

अब कर्नल राय चुपचाप सुन रहे थे।

“सब यही कहते थे। बहुत अच्छा खेलता है। आईपीएल तो खेल सकता है। स्टेट की टीम में तो आ ही जाएगा। इंडिया की टीम में भी आ सकता है। जैसे आप मुझे बोल रहे हो…और हुआ क्या? करियर शुरू होने से पहले ही जिंदगी खत्म हो गई। क्या पता मेरा भी यही हाल हो…”

“देखो जाकिर, जो हुआ बड़ा दुखद हुआ… और क्यों हुआ इस बारे में मेरा नजरिया मुख्तलिफ है। लेकिन किसी एक हादसे को लेकर तुम अपनी जिंदगी को उस पैमाने में नहीं तोल सकते न। ये सब भूल जाओ और अपने गेम पर ध्यान दो। और हां, पढ़ाई भी करते रहना। बहुत अच्छे प्लेयर हो लेकिन सचिन तेंदुलकर नहीं हो।”

कर्नल राय के नर्म लहजे से जाकिर थोड़ा सामान्य हो गया था। उस दिन उन्होंने काफी देर तक बातें की। जाते-जाते जाकिर ने कर्नल राय को एक गुजारिश भी की थी।

“सर। वो हमारे ग्राउंड की हालत बहुत खराब है। आपके पास तो डोजर रोलर जैसी सब मशीनें हैं। अगर वहां थोड़ा काम हो जाता तो खेलने में आसानी रहती।”

“हो जाएगा। तुम बेफिक्र होकर घर जाओ।”

“और सर, एक गुजारिश और है। किसी को ये न पता लगे कि मैंने आपसे कह कर ये मदद करवाई है। लोग बहुत गलत मतलब निकालते हैं। खामख्वाह मुझे और घर वालों को परेशानी होगी।”

“अरे चिंता मत करो। मैं यहां के लोगों की फितरत खूब समझता हूं।”

इसके कुछ दिनों बाद ही सेना की एक टुकड़ी ने नूरपुरा के ग्राउंड की मरम्मत कर दी। वहां के लड़के खुश तो हुए लेकिन खुलेआम फौज का शुक्रिया अदा करने कोई सामने नहीं आया।

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हां, ये ज़रूर हुआ कि मैदान की हालत अच्छी होने के बाद खेलने वाले लड़कों की तादाद थोड़ी बढ़ गई। हालांकि, इसके बावजूद पत्थरबाजी और प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले युवकों की संख्या में कुछ कमी नहीं आई। फिर एक दिन अचानक जाकिर कर्नल राय से मिलने त्राल आया और इस बार मसला कुछ संगीन था।

“सर, वो हमारे गांव का एक लड़का है बुरहान। कुछ साल पहले हिजबुल मुजाहिदीन में चल गया था और अब तंजीम में बड़ा कमांडर है। वो गांव के कुछ लड़कों को हिजबुल की मदद करने के लिए उत्साहित कर रहा है। मुझे भी बोला कि मोटरसाइकिल पर पुलवामा जाओ और एक साथी के पास कुछ अमानत रखी है जिसे लेकर आना है। मैं डर गया सर, आप ही बताओ क्या करूं?”

ये सुन कर कर्नल राय बहुत असमंजस में पड़ गए। ये बड़ा सुनहरा मौका था हिजबुल जैसे गोपनीय आतंकवादी संगठन के बारे में जानकारी हासिल करने का। उन्होंने सोचा कि अगर वो जाकिर का सही इस्तेमाल करें तो उसके सहारे बुरहान तक पहुंचा जा सकता था।

लेकिन फिर उन्होंने मन ही मन खुद को दुत्कारा। कहां वो जाकिर के लिए क्रिकेट के ख्वाब बुन रहे थे और कहां मौका मिलते ही उसे आतंकवादी तंजीम में शामिल करके अपने हथियार की तरह इस्तेमाल करने का ख्याल दिमाग में पाल बैठे। ये तो इंसानियत का तकाजा न था। और इसलिए कर्नल राय ने ठान लिया कि वो जाकिर को आतंकवाद के दलदल में नहीं फंसने देंगे। उन्हें नहीं पता था कि जाकिर क्रिकेट की दुनिया में कितना सफल हो पाएगा, लेकिन वो कम से कम उसको एक अच्छी और महफूज जिंदगी बसर करने में तो मदद कर ही सकते थे।

उन्होंने जाकिर को सलाह दी कि वो ऐसा कोई काम न करे और खुद को बुरहान और उसके बाकी साथियों से दूर रखे। चूंकि सर्दियां नजदीक थीं इसलिए वो चाहते थे कि जाकिर दो तीन महीने के लिए जम्मू चला जाए। वहां क्रिकेट भी खेल सकेगा और गांव के असामाजिक तत्वों से भी दूर रहेगा।

“लेकिन सर। जम्मू में कहां रहूंगा और कहां खेलूंगा? मैं तो वहां किसी को भी नहीं जानता…”

“उसकी तुम चिंता मत करो। कोई घर किराए पर ले लेंगे। थोड़ा बहुत खर्चा होगा। हम उसका भार उठा लेंगे। वहां दो तीन स्पोर्ट्स क्लब हैं। उनसे मैं बात कर लूंगा।”

जाकिर खुशी-खुशी तैयार हो गया। उसके लिए तो यह एक सुनहरा मौका था। न कुछ खर्चा, न कुछ बंदोबस्त करने की जिम्मेदारी।

“शुक्रिया सर, आपके बहुत एहसान हैं मुझ पर। मेरे घर वाले भी हमेशा आपके लिए ही दुआ करते हैं।”

“शुक्रिया कैसा जाकिर… तुम लोग खुशहाल रहो… बस हमारी यही कोशिश है।”

“सर एक और गुजारिश है। अगर आप बुरा न मानें तो…”

“हां, हां बोलो…कुछ जरूरत है क्या?”

“सर। प्लीज किसी को बताना नहीं कि आप मेरे लिए ये सब कर रहे हैं। खास कर ये कि मुझे जम्मू भी भेज रहे है। यहां लोग तरह-तरह की बातें बनाते हैं। कश्मीर में तो मुखबिरी की तोहमत जानलेवा होती है।”

“मुझे पता है। तुम बेफिक्र रहो और अपने गेम पर ध्यान दो।”

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वैसे तो कर्नल साहब काम-काज में बहुत मशरूफ रहते थे। राष्ट्रीय राइफल्स की यूनिट की कमान संभालना और इतने संवेदनशील इलाके की देखभाल करने की जिम्मेदारी जो थी। आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन और स्थानीय प्रशासन के साथ तालमेल करने में उनका ज्यादातर वक्त निकल जाता था।

लेकिन फिर भी उन्होंने जाकिर के जम्मू में खेलने का बंदोबस्त कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें सच में यकीन था कि उसको क्रिकेट को संजीदगी से लेना चाहिए और उम्मीद भी थी कि एक दिन जाकिर ज़रूर राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाएगा।

सर्दियां शुरू होते ही जाकिर जम्मू चला गया। उसके वहां जाने के बाद कर्नल साहब की कभी-कभार ही उससे बात होती। वैसे भी वो यही चाहते थे कि वो वादी की गड़बड़ से दूर जाकर अपना पूरा ध्यान खेलने पर लगाए।

यूं भी कश्मीर में हालात का कोई भरोसा नहीं था। हिंसा का दौर उसी तरह कायम था और नई पीढ़ी में भी किसी बहकावे में आकर हथियार उठाना एक आकर्षण सा बन गया था। बाकी की कसर पत्थरबाजी ने पूरी कर दी थी।

तीन चार महीने बाद जाकिर ने कर्नल राय को इत्तिला दी कि चूंकि सर्दियां खत्म हो गई हैं, तो इसलिए वो जल्दी ही वापस आ जाएगा।

“अच्छा है… जब तुम आओगे तो हम फिर एक मैच का आयोजन करेंगे। हम भी देखें कि तुम्हारे खेल में कितना निखार आया है?”

“जी सर, पहुंचते ही राब्ता करूंगा।”

बस फिर क्या था, उन्होंने दो हफ्ते बाद त्राल टाइगर्स और नtरपुरा लायंस के बीच मैच कराने की तैयारी शुरू करवा दी। मेजर फर्नांडिस ने कर्नल साहब को आश्वासन दिया कि इस बार मैच को देखने के लिए पिछली बार से ज्यादा लोग आएंगे। अच्छे-खासे इनाम की घोषणा की गई और दोनों टीमें अपनी अपनी तैयारी में जुट गईं।

वापस आने के बाद कर्नल राय की जाकिर से मुलाकात तो न हो सकी, हालांकि फोन पर जरूर उसने उनके साथ थोड़ी देर गुफ्तगू की थी। मैच का दिन भी आ गया। उस ट्वेंटी-ट्वेंटी मुकाबले को देखने के लिए अच्छी खासी भीड़ भी उमड़ी। कर्नल राय और एसपी इरशाद समेत कई अफसर भी मौजूद थे। बड़ा रोमांचक मैच हुआ जिसमें त्राल टाइगर्स ने आखिरी ओवर में जीत हासिल की। बड़े उत्साह और उमंग का माहौल था लेकिन कर्नल राय जरा परेशान थे।

पूरे मैच के दौरान उनकी निगाहे जाकिर को ढूंढ रही थीं लेकिन वो नदारद था। उनके दिमाग में अजीब से ख्याल आ रहे थे। शायद बीमार तो नहीं हो गया या फिर नूरपुरा वालों ने उसे मुखबिर करार दे कर अलग तो नहीं कर दिया… जो भी कारण हो वो फोन तो कर ही सकता था… वगैरह-वगैरह।

लेकिन क्योंकि अपनी इस कश्मकश का सीधा किसी से जिक्र करना अनुचित होता तो इसलिए उन्होंने मैच खत्म होने के बाद ही इस बात की तफ्तीश करना ठीक समझा। उस शाम इरशाद जब उनके पास आया तो कर्नल राय उसी बारे में सोच रहे थे।

“कर्नल साहब, आप कहीं वो नूरपुरा वाले जाकिर के बारे में तो नहीं सोच रहे?”

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“हां, आज मैच खेलने भी नहीं आया वो। पता नहीं क्या हुआ है। अगर वो खेल रहा होता तो त्राल टाइगर्स बिलकुल नहीं जीत पाते।”

“अब वो कोई मैच नहीं खेलेगा सर, कल रात को ही बुरहान के साथ हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया। आज शाम को उसके घर वालों ने थाने में ये बताया है।”

कर्नल राय ये सुनते ही एकदम सकपका गए थे ।

“और सर, ये भी पता चला है कि पिछले कई महीनों से वो इस ग्रुप के लिए काम कर रहा था। सुना है सर्दियों में हिजबुल के कुछ आतंकी जम्मू चले गए थे तो उस शातिर दिमाग ने वहां भी उनकी मदद की थी।”

कर्नल राय की आंखों के सामने जाकिर का मासूम चेहरा छा गया था। वो बस इतना ही बोल पाए थे,

“बहुत अच्छा खिलाड़ी था पर गलत टीम में चला गया। अब उसकी जिंदगी की इनिंग्स हमारे हाथों ही खत्म होने वाली है… बहुत जल्द। “

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