कर्नल सुशील तंवर की कहानी ‘ये मंज़िल नहीं आसान’

कर्नल शर्मा ने ये जिम्मेदारी स्वाति के सिर पर थोप दी। साथ में तीन लोगों की एक टीम भी उसके हवाले कर दी। वैसे उनके हिसाब से ये सब जरूरी तो था पर उतना नहीं जितना कि फील्ड में आतंकवादियों का एनकाउंटर करना।

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सांकेतिक तस्वीर

कर्नल सुशील तंवर की कहानी ‘ये मंज़िल नहीं आसान’। दरअसल, हर शुरुआत अपने-आप में बहुत सारी जद्दोजहद लेकर आती है। बहुत सही दुश्वारियां साथ आती हैं। कर कदम एक इम्तिहान सा होता है, लेकिन अगर नीयत साफ हो और इरादे बुलंद तो देर-सबेर मंज़िल दिख ही जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ कैप्टन स्वाति नायर के साथ…

जम्मू हवाई अड्डे पर आपका स्वागत है। अब आप अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सकते हैं। जम्मू हवाईअड्डा सैनिक विमानतल है। सुरक्षा कारणों से यहां पर फोटो खींचना माना है।

दिल्ली से जम्मू आ रही एयर इंडिया की फ्लाइट एआई- 820 पर ये सूचना होते ही भगदड़ मच गई थी। एक घंटे से चुपचाप सिकुड़े बैठे यात्रियों में जैसे अचानक किसी ने जान फूंक दी और वो सब एक दूसरे से पहले नीचे उतरने की होड़ में लग गए थे।

इस लापरवाह भाग-दौड़ के शोर से अब तक कोने वाली खिड़की के साथ सिर लगा कर चुपचाप सो रही उस नौजवान लड़की ने एक पल के लिए अपनी आंखें खोली और फिर मन ही मन भीड़ को कोसना शुरू कर दिया।

पता नहीं इतनी जल्दी उतर कर कहां जाएंगे। फ्लाइट को रोडवेज की बस बना दिया है जाहिलों ने।

अफरा-तफरी करते लोगों पर वो चुपचाप बैठी गुस्सा कर ही रही थी कि अचानक उसकी नजर थोड़ी दूर खड़े एक अधेड़ उम्र के यात्री पर पड़ी जो अपने मोबाइल से बाहर के नजारों की तस्वीरें खींच रहा था।

‘एक्सक्यूज मी। आप यहां फोटो क्यूं खींच रहे है। अभी अनाउंसमेंट हुई थी ना। सुना नहीं आपने?’

उस आदमी ने पलट कर एक नजर उस लड़की को देखा और वो फिर से बेपरवाह हो कर फोटो लेने में जुट गया।

‘हेलो मिस्टर। मैं आपसे ही बात कर रही हूं। प्लीज़।’

‘ओ मैडम जी। अपना काम करो। आपकी फोटो तो नहीं निकाल रहा हूं ना। परेशान मत करो।’

इतनी सी देर में माहौल को गरम होते देख विमान की एयर होस्टेस जल्दी से उनके नजदीक आ गई थी।

‘कैन आई हेल्प यू?’

‘जी हां। आप इनको समझाएं कि फोटो ना निकालें। और अपने फोन से यहां की सारी फोटोज़ भी डिलीट करें।’

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कर्नल सुशील तंवर

अचानक ही सब का ध्यान अपनी ओर होता देख कर वो यात्री थोड़ा झेंप सा गया था और हिचकिचाते हुए उसने फोटो खींचना बंद कर दिया।

विमान से उतरते वक्त जब एयर होस्टेस ने उस लड़की को नमस्ते के साथ अलविदा कहा तो उसकी आंखों में आदर और आभार साफ झलक रहा था।

जम्मू एयरपोर्ट पर अच्छी-खासी भीड़ थी। छोटा सा तो एयरपोर्ट है वहां का। किसी रेलवे स्टेशन जैसा ही लगता है।

वो अपना सामान उठा कर बाहर निकली ही थी कि उसे एक जानी पहचानी शक्ल दिखाई दी।

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‘जय हिन्द साहिब। आइए गाड़ी उधर पार्किंग में है।’

वर्दी में आए उस फौजी हवलदार को एक लड़की के सामने सैल्यूट करते देख आसपास के लोग पल भर को रुक गए थे।

उनका सकपकाना वाजिब ही था। आखिर उस नौजवान लड़की को देख कर भला कौन अंदाज़ा लगा सकता था कि वो भारतीय सेना में एक अफसर है।

कैप्टन स्वाति नायर। मिलिट्री इंटेलिजेंस।

कुछ दिनों की छुट्टियां बिताने के बाद वो आज वापस अपनी यूनिट ज्वॉइन कर रही थी।

चार महीने पहले ही उसकी इंटेलिजेंस यूनिट में पोस्टिंग हुई थी। एकेडमी की ट्रेनिंग खत्म होने के बाद पहली यूनिट। फौजी अफसर की पहली यूनिट पहले प्यार जैसी होती है। हमेशा अज़ीज़।

स्वाति ने ट्रेनिंग के दौरान बहुत अव्वल दर्जे का प्रदर्शन किया था। आदर्श अफसर बनने का सपना था उसका। और देश की सेवा में अपने कर्तव्य को निभाने का भरपूर ज़ज़्बा।

इन्हीं उम्मीदों और हसरतों के साथ वो यूनिट में आयी थी। यूनिट जम्मू से कुछ किलोमीटर दूर नगरोटा में स्थित थी। और उसके कमान अधिकारी थे कर्नल प्रभात शर्मा।

कर्नल शर्मा का अंदाज़ निराला था। उनको समझना वाकई मुश्किल था। वो मेहनती थे। असरदार थे। और थोड़े सनकी भी थे। जब उनको स्वाति की पोस्टिंग के बारे में पता लगा तो उन्होंने दिल्ली हेडक्वार्टर में झट से फोन लगाया था।

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वो नहीं चाहते थे कि इस आतंक ग्रस्त इलाक़े के मुश्किल हालात में कोई महिला अधिकारी उनकी यूनिट में आए। उनका मानना था कि पूरी यूनिट में सिर्फ एक महिला अफसर होने से दिक्कतें आ सकती हैं। उसके रहने का इंतजाम करना। यूनिट के जवानों और अफसरों के साथ इकलौती महिला अधिकारी का तालमेल बिठाना। इन प्रशासनिक दुविधाओं जैसे पेचीदा मसलों में वो नहीं पड़ना चाहते थे।

लेकिन हैडक्वार्टर ने उनकी गुजारिश को नजरंदाज कर दिया और स्वाति की पोस्टिंग रद्द नहीं की गई। और इसी तरह कैप्टन स्वाति पहुंच गई कर्नल शर्मा की कमान में।

यूं तो स्वाति को यूनिट में पूरा आदर मिला लेकिन काम के नाम पर मिला छोटे-छोटे प्रशासनिक कार्यों की जिम्मेदारी। मसलन, अफसर मेस की देखभाल। आने जाने वालों का बंदोबस्त। छोटी-मोटी कागज़ी कार्यवाही। मानो सब ने ये पहले से ही तय कर लिया हो कि महिला अफसरों को मुश्किल और जोखिम भरे कामों से दूर ही रखा जाना चाहिए।

हर रोज़ थक-हार कर स्वाति जब अपने छोटे से कमरे में वापस आती तो उसको अपने दिन भर में किए काम फालतू लगते। उसकी दिली ख्वाहिश थी कि वो कुछ रोचक काम करे। मुश्किल इलाकों में जा कर आतंकियों के खिलाफ किसी ऑपरेशन में हिस्सा ले।

और इसके अलावा पूरी यूनिट में अकेले महिला अफसर होने की अलग जिम्मेदारी भी तो थी। ऐसा लगता था मानो हर वक्त उस की परीक्षा हो रही हो। हर कदम पर उसे परखा जा रहा हो। जैसे सबको बस उसकी एक गलती का इंतजार हो ताकि वो कह सकें कि फौज की दुर्गम ज़िन्दगी में महिलाओं का कोई स्थान नहीं है।

कभी-कभी तो उसे लगता कि शायद वो कुछ ज्यादा ही सोच रही थी। हो सकता है कि सभी नए अफसर शुरू-शुरू में ऐसे ही असहज महसूस करते हों।

लेकिन जो भी हो रहा था वो बड़ा मुश्किल था। और इसलिए चार महीने के बाद जब उसे दो हफ्तों की छुट्टी मिली तो घर जाने के ख्याल से ही जैसे उसकी जान में जान आ गई थी।

उसके पापा भी फौज से सेवानिवृत्त हुए थे। घर पर सेना के बारे में बातें होना लाज़िमी था लेकिन स्वाति की मुश्किलों को उन्होंने ये कह कर नजरअंदाज कर दिया कि हर अफसर को शुरू-शुरू में इसी तरह सब मुश्किल लगता है।

उनके ज़माने में तो फौज मे लड़कियों का आना भी सोच से परे था और शायद इसलिए उनके लिए स्वाति की बातों को समझना जरा मुश्किल था।

लेकिन उसकी छोटी बहन कविता ज़रूर भांप गई थी कि कुछ गड़बड़ है।

‘सब ठीक तो है ना अक्का। ऐसा लग रहा है कि तू खुश नहीं है आर्मी में जा कर।’

‘कुछ ऐसा ही समझ। यार, इतना आसान नहीं है जितना हम सोचते हैं। हर वक्त एक अजीब सी टेंशन है। और ये शायद खुद को साबित करने की हसरत का नतीजा है।’

‘तू भी चाहती है ना आर्मी अफसर बनना। मेरी मान तो एक बार और सोच ले। ये जो तू आजाद पंछी की तरह घूमती है ना। जहां जाना हो चले गए। जो पहनना हो पहन लिया। जैसे बात करनी हो कर ली। सेना में आते ही ये सब खत्म हो जाएगा। बाकी तेरी मर्ज़ी।’

‘लेकिन इस सब के बावजूद एक बात तो है यार। आज भी जब वर्दी पहनती हूं ना तब खुद पर बड़ा गर्व होता है और ये सारी शिकायतें गायब हो जाती हैं।’

‘बहुत कन्फ्यूज्ड लग रही हूं ना मैं।’

‘चल छोड़ ये सब फौज की फालतू बातें। मैं शायद कुछ ज्यादा ही दिमाग लगा रही हूं। अब कम से कम दो हफ्ते तो तेरे साथ मस्ती करना बनता है।’

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बस इसी तरह स्वाति की छुट्टियां कब खत्म हो गईं ये पता ही नहीं लगा।

यूनिट पहुंच कर फिर वही दिनचर्या शुरू हो गई। पूरे दिन मशरूफ रहना और शाम को ताज़्जुब करना कि पूरे दिन आखिर किया क्या।

फिर एक दिन सुबह-सुबह कर्नल शर्मा ने उसे बुलाया और कोर हेडक्वार्टर मे ब्रीफिंग की तैयारी करने को कहा।

‘देखो। प्रेजेंटेशन तो मैंने तैयार कर ली है। तुम बस मेरे इशारे पर स्लाइड्स को बढ़ाते रहना। कुछ गड़बड़ नहीं होनी चाहिए।’

‘और तुम एक बार पूरी प्रेजेंटेशन जरूर देख लेना। कल ठीक दस बजे हमें वहां पहुंचना है।’

छोटा काम ही सही लेकिन कुछ तो अहम था। बस यही सोच कर स्वाति पूरे उत्साह के साथ तैयार हो गई थी।

अगले दिन ब्रीफिंग बहुत अच्छी चल रही थी जब कमांडर साहिब ने कर्नल शर्मा को दो-चार इलाक़े नक्शे पर दिखाने को कहा। उनका मानना था कि पॉवरपॉइंट पर किसी जगह का ठीक से अंदाज़ा नहीं होता।

कर्नल शर्मा थोड़े सकपकाए ज़रूर थे। और उनकी नजर दीवार पर लगे बड़े से नक्शे में वो सब जगह तलाश कर ही रही थी कि स्वाति ने लेजर प्वाइंटर से उन इलाकों की निशानदेही करके उनकी दुविधा दूर कर दी।

ब्रीफिंग अच्छी तरह संपन्न हुई और कमांडर साहिब ने भी जाते वक्त अपनी खुशी का इजहार किया।

‘वेल डन।’

स्वाति के लिए कर्नल शर्मा का ये शाबाशी देना बहुत मायने रखता था। उसने थोड़ा सोचा और फिर हिम्मत करते हुए कर्नल साहिब को जवाब दिया।

‘थैंक यू सर। दरअसल, मुझे लगता है कि अगर इस तरह की ब्रीफिंग में हम नक्शे की बजाय सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल करेंगे तो अपनी बात समझाने में आसानी रहेगी।’

‘ओके। अगली बार सोचेंगे।’

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कर्नल शर्मा ने दो टूक जवाब दिया था। उन्हें स्वाति के सुझाव में कुछ खास दिलचस्पी नहीं थी। एक तो जुम्मा-चुम्मा चार दिन की नौकरी वाली ने उन पर अनचाहा प्रस्ताव दे मारा था और दूसरे किसी भी तरह की टेक्नोलॉजी उनके लिए मानो काला अक्षर भैंस बराबर थी। उनके ऑफिस में कंप्यूटर भी तो किसी शो पीस की तरह ही रखा हुआ था। यहां तक कि उसे रोज़ चालू करने की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने क्लर्क को थमाई हुई थी। वाकई उनकी समझ फेसबुक और वॉट्सऐप तक ही सीमित थी।

वो ऐसे दौर की शुरुआत थी जब सोशल मीडिया तेज़ी से इंसानी जिंदगी पर अपनी पकड़ बना रहा था। जहां ट्विटर और टेलीग्राम जैसे साधन लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम कर रहे थे वहीं दुनिया भर में इनका इस्तेमाल आतंक और अराजकता फैलाने के लिए भी किया जा रहा था। जम्मू और कश्मीर भी इस नई तकनीक के प्रभाव से अछूता नहीं था।

खासकर यहां असामाजिक तत्व झूठी खबरें फैलाकर लोगों को भड़काने के लिए और आतंकवादी संगठन अपनी कारस्तानियों को अंजाम देने के लिए सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल कर रहे थे।

पाकिस्तान में बैठे कई आला दर्जे के आतंकियों ने भी जम्मू कश्मीर में मौजूद अपने साथियों से मेल-मिलाप के लिए यही जरिया अपना लिया था।

ऐसे में सुरक्षा बलों के लिए इस पहलू पर तवज्जो देना खास जरूरी हो गया था।

कर्नल शर्मा ने ये जिम्मेदारी स्वाति के सिर पर थोप दी। साथ में तीन लोगों की एक टीम भी उसके हवाले कर दी। वैसे उनके हिसाब से ये सब जरूरी तो था पर उतना नहीं जितना कि फील्ड में आतंकवादियों का एनकाउंटर करना। पुराने जमाने के शर्मा साहिब के लिए इस दौर की नई तकनीक को समझ पाना मानसिक रूप से जरा मुश्किल था।

मगर स्वाति के लिए ये एक सही मौका था। एक ऐसी चुनौती जिसकी उसे बेसब्री से तलाश थी। जैसे लंबे इंतजार के बाद एक नई जिंदगी मिल गई हो। उसने अपने-आप को पूरे जी जान से इसी काम में झोंक दिया।

उसकी टीम में शामिल सिपाही कुछ खास पढ़े-लिखे नही थे लेकिन स्वाति ने जल्द ही उनको भी फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म से अवगत करा दिया। शुरू-शुरू में उसे थोड़ी मुश्किल जरूर हुई लेकिन फिर उनकी टीम ने सोशल मीडिया से खबरें निकालने और छानबीन करने में महारत हासिल कर ली।

अब तो ये आलम था कि कर्नल शर्मा को अधिकतर घटनाओं की पहली जानकारी स्वाति की टीम से मुहैया होती। कहते हैं इंटेलिजेंस के क्षेत्र में खबर की अहमियत उसकी रफ्तार पर निर्भर करती है। आला कमांडरों को उभरते हालात से सबसे पहले अवगत कराने में उनकी यूनिट अब सबसे अव्वल थी।

वैसे तो कर्नल शर्मा के लिए इतना ही बहुत था लेकिन स्वाति के लिए ये बस एक शुरुआत थी। वो अक्सर अपनी टीम को समझाती कि टेक्नोलॉजी व‌ सोशल मीडिया के और भी ज्यादा इस्तेमाल से वो खबरों के अलावा भी काफी कुछ पता कर सकते हैं। बस जरूरत है तो लगन, दिमागी सजगता और तकनीकी कुशलता की।

इसी मेहनत का नतीजा था कि पूरी टीम को यूनिट में बहुत सम्मान मिलने लगा। खासकर स्वाति को। यूनिट के ज्यादातर जवान और अफसर कैप्टन स्वाति के काम और तौर-तरीकों से अच्छा खासा प्रभावित थे।

हां ,हमेशा की तरह कुछ लोग अभी तक फौज में महिलाओं की मौजूदगी से राजी नहीं थे। कभी-कभार स्वाति को उनके कटाक्ष का सामना ज़रूर करना पड़ता।

उसी साल अक्टूबर में जम्मू के नजदीक एक बड़ा आयोजन होना था। जम्मू के पुराने किले बाहु फोर्ट के पास एक शहीद स्मारक का उद्घाटन था जिसमें सभी उच्च अधिकारियों को शरीक होना था।

जाहिर था कि आतंकवादियों की नजर भी इस कार्यक्रम पर थी। अगर वो इसमें बाधा पहुंचाने में सफल हो जाते तो सुरक्षाबलों की साख को एक बड़ा झटका दे सकते थे।

कार्यक्रम की सुरक्षा की जिम्मेदारी कर्नल शर्मा और उनकी यूनिट पर थी। इस बंदोबस्त में पुलिस से तालमेल और आस-पास के इलाकों की निगरानी के अलावा सुरक्षा बलों की तैनाती जैसे कई महत्वपूर्ण पहलू शामिल थे।

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उनकी पूरी यूनिट इन्हीं तैयारियों में मशरूफ थी। जैसे-जैसे आयोजन का दिन नजदीक आ रहा था वैसे-वैसे आला अफसरों की बेचैनी भी बढ़ रही थी।

हर तरफ सुरक्षा बलों का पहरा बढ़ा दिया गया था। आने-जाने वाली गाड़ियों की तलाशी भी ली जा रही थी।

कार्यक्रम से एक दिन पहले स्वाति ने देर रात कर्नल शर्मा से अचानक एक गुजारिश की।

‘सर। ये बाहु फोर्ट के पीछे जो कालका कॉलोनी है ना। हमें यहां तलाशी करवानी चाहिए। और वहां थोड़ी नफरी भी तैनात करनी चाहिए।’

‘क्यों कोई खबर है क्या तुम्हारे पास? तुमने देखा भी है वो इलाका? धारावी से कुछ कम नहीं है वो। वहां इतने घर हैं कि तीन दिन तक भी तलाशी खत्म नहीं होगी।’

‘मुझे पता है सर। कोई पुख्ता खबर तो नहीं है लेकिन आज ही दो लोगों ने फेसबुक पर अपनी फोटो डाली है जिसमें उनकी लोकेशन कालका कॉलोनी है। पीछे बाहु फोर्ट भी नजर आ रहा है। ये दोनों कुलगाम कश्मीर से हैं और हमेशा आतंकियों के पक्ष में ही बात करते हैं। हम काफी दिनों से इनको सोशल मीडिया पर ट्रैक कर रहे हैं। हो सकता है उन्हें कुछ पता हो। हो सकता है कि मेरा अंदाजा गलत हो सर पर फिर भी मेरे ख्याल से यहां सुरक्षाबलों की थोड़ी हरकत दिखाना जरूरी है।’

‘देखो, तुम्हारी बात से मैं कुछ खास मुतमईन नही हुआ हूं लेकिन चलो फिर भी पुलिस और आर्मी का वहां एक जॉइंट ऑपरेशन करवाता हूं। आखिर ये इतना बड़ा कार्यक्रम है कि हम किसी को कोई मौका नहीं दे सकते।’

खैर, उस इलाके की तलाशी में तो आतंकियों का कोई सुराग नहीं मिला लेकिन शहीद स्मारक का आयोजन बड़ी धूम-धाम से सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। राज्य के गवर्नर समेत कई उच्च अधिकारियों ने हिस्सा लिया।

और कर्नल शर्मा ने चैन की सांस ली। आला अफसरों ने उनको सुरक्षा बंदोबस्त के लिए मुबारकबाद जो दी थी।

जैसे-जैसे वक्त बीत रहा था वैसे-वैसे स्वाति के दिमाग में नई-नई तरकीबें इजाद हो रही थीं। नई टेक्नोलॉजी के कारण खबर हासिल करने के बेशुमार रास्ते खुल गए थे और स्वाति इन सब को आजमाना चाहती थी। कभी वो आतंकवादियों के मोबाइल फोन को बग करने का सोचती तो कभी उनके समर्थकों के कॉल रिकॉर्ड का विश्लेषण करती। ऐसा नहीं था कि इन सभी तरकीबों से उन्हें हर बार सफलता मिली हो लेकिन उसकी इस तकनीकी सोच से उसकी देखा-देखी यूनिट के बाकी लोग भी जरूर इसी तरह के नए-नए तरीके इख्तियार करने लगे थे। किसी की शिनाख्त करने से लेकर किसी को ट्रैक करने जैसी कई कार्रवाइयों में स्वाति की टीम से मदद ली जाती। उनके इसी महत्व को देखते हुए उसकी टीम की संख्या भी अब चार से बढ़ कर दस हो गई थी।और साथ में उन्हें कुछ नए कंप्यूटर और उपकरण भी मिल गए थे।

तकरीबन एक महीने बाद स्वाति को कर्नल शर्मा ने दफ्तर में बुलाया।

स्वाति के अंदर आते ही उन्होंने उसकी तरफ एक फाइल सरकाई।

‘पता है ये क्या है?’
‘नो सर।’

‘पिछले हफ्ते श्रीनगर में जैश-ए-मोहम्मद का एक कुख्यात कमांडर पकड़ा गया। कारी यासिर।’

‘ये उसकी इंटेरोगेशन रिपोर्ट है। उसने ये बताया है कि उन्होंने बाहु फोर्ट वाले कार्यक्रम के दौरान हमला करने की योजना बनाई थी। और वो कालका कॉलोनी में ही रुके थे। लेकिन ऐन वक्त पर हमारे सर्च ऑपरेशन से वो इधर-उधर बिखर गए और अपनी योजना को अंजाम नहीं दे पाए।’

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‘गुड जॉब स्वाति। तुम अगर जोर ना देती तो शायद गड़बड़ हो जाती।’

‘थैंक्यू सर। वैसे इट वाज़ जस्ट ए गेस।’

‘मुझे पता है। बट इट वर्क्ड। एक और बात स्वाति। जब तुम्हारी पोस्टिंग आई थी तो मैंने उसको रद्द कराने की कोशिश की थी। मुझे हमारी यूनिट में किसी महिला अधिकारी का आना कुछ मुनासिब नहीं लग रहा था। लेकिन मुझे खुशी है कि तुमने मुझे गलत साबित किया । पर याद रखना कि अभी तो शुरुआत है। ये सफर बहुत लंबा है। और दुश्वार भी। गुड लक एंड कीप अप द हाई स्पिरिट्स।’

स्वाति उनके दफ्तर से बाहर निकल कर कुछ ही कदम चली थी कि उसे सामने से आते हुए मेजर चतुर्वेदी ने टोक दिया।

‘हां भई । लगता है आज फिर से शाबाशी बटोर लाई हो सीओ से। यार तुम्हारा अच्छा है। यहां बैठ कर कंप्यूटर पर नाम कमाए जाओ और वहां जंगल छान-छान कर हमारे घुटनों की ग्रीस खत्म हो गई है।’

ये सुनकर स्वाति बस मुस्करा दी थी। और इस मुस्कुराहट में खुशी की बजाय नजरअंदाजी साफ झलक रही थी।

अब तक वो समझ चुकी थी कि इस कभी न खत्म होने वाली जंग में उसे खुद को किसी के सामने हर पल साबित करने की कोई जरूरत नहीं है।

वो अपने काम से खुश थी। उसकी यूनिट को उस पर गर्व था और उसके लिए बस यही मायने रखता था।

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