Independence Day Special: कर्नल सुशील तंवर की कहानी ‘हम क्या चाहते’

अफ़ज़ल बारामुला डिग्री कॉलेज में बीए फर्स्ट ईयर का छात्र था। कई बार दोस्तों के साथ पत्थरबाज़ी में शरीक होता था। मज़ा आता था उसको दोस्तों के साथ नारे लगाने में और पत्थर फेंकने में। पर ये सब करने की वजह शायद उसको खुद मालूम नहीं थी।

Indian Army, Independence Day

कर्नल सुशील तंवर की कहानी ‘हम क्या चाहते’। बारामुला में पोस्टिंग के दौरान यूं तो विमल को अलग-अलग लोगों के फोन आते रहते थे। लेकिन 14 अगस्त की देर जो कॉल आई वो अलग थी। उसके बाद कुछ ऐसा हुआ, जिसकी कल्पना विमल ने शायद ही की थी। आखिर किसने किया था कॉल और रात के करीब 12 बजे विमल को जगाने का मकसद क्या था?

साल 2011 में अप्रैल के महीने में मेजर विमल को एक लंबे इंतज़ार के बाद कश्मीर में पोस्टिंग का हुक्म मिला। वैसे तो वो सिर्फ तीन साल पहले ही कश्मीर से दिल्ली पोस्टिंग आया था लेकिन दिल्ली के बेरुखे मौसम और सरकारी दफ्तरों की कागज़ी लड़ाई से परेशान विमल को वापस कश्मीर जाने की बहुत तमन्ना थी।

जैसा कि सेना में अक्सर कहा जाता है, “You can take an army man out of Kashmir but you can not take Kashmir out of an army man”… यानी आप एक फौजी को कश्मीर से बाहर निकाल सकते हैं लेकिन एक फौजी के भीतर से कश्मीर को नहीं निकाल सकते।

आखिरकार, मेजर विमल का इंतज़ार खत्म हुआ और वो कश्मीर में तीसरी बार पोस्टिंग पर आ पहुंचा निहायत ही खूबसूरत शहर बारामुला।

उन दिनों कश्मीर के हालात थोड़ा सुधर रहे थे। बहुत मेहनत और कुर्बानियों के बाद सुरक्षा बलों ने हालात पर काबू पा लिया था। वैसे तो कुछ आतंकवादी फिर भी सक्रिय थे लेकिन वो सब एनकाउंटर के डर से छुप-छुप कर रहते थे। पर उनके कुछ समर्थक कोई न कोई हरकत करने की कोशिश करते रहते थे। सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण वो कुछ ख़ास नुकसान तो नहीं कर पा रहे थे लेकिन इंटरनेट पर इंडिया और इंडियन आर्मी के खिलाफ उल जुलूल इल्जाम लगाने, दीवारों पर ‘गो इंडिया गो बैक’ और ‘हम क्या चाहते आजादी’ जैसे नारे लिखने और छिटपुट पत्थरबाज़ी करने जैसी बुज़दिलाना हरकतों की वो हमेशा कोशिश करते रहते थे।

और 15 अगस्त का दिन तो वैसे भी बहुत ख़ास था। आतंकवादी भी अपनी छाप छोड़ने के लिए कोई मौका तलाश कर रहे थे। मेजर विमल की यूनिट स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में मशगूल थी। सुरक्षा प्रबंधों के साथ-साथ लोगों की मदद करने की मुहिम भी ज़ारी थी। स्वास्थ्य शिविर, खेलों का आयोजन, वृक्षारोपण जैसे काम फ़ौज वैसे तो आम तौर पर करती रहती थी, लेकिन 15 अगस्त के उपलक्ष्य में ऐसे और कई कार्यक्रमों का आयोजन भी तेज़ी पकड़ रहा था।

Indian Army, Independence Day
कर्नल सुशील तंवर

‘अवाम और जवान, अमन है मुकाम’ के सिद्धांत को मानो अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था विमल और उसके साथियों ने।

जैसे ही 15 अगस्त की तारीख नजदीक आई तो सुरक्षा पर भी ख़ास तवज्जो दिया जाने लग। विमल थोड़ा असहज था। पूरे शहर की सुरक्षा की जिम्मेदारी जो थी उसके पास। कुछ अनहोनी घटना होने का शक हमेशा उसके दिल और दिमाग पर छाया रहता था।

14 अगस्त की रात थी। आने वाले कल की बेचैनी के कारण विमल की आंखों की नींद पता नहीं कहां गुम हो गयी थी। रात के तक़रीबन 11:30 बजे थे जब विमल के मोबाइल फ़ोन पर घंटी बजी। कोई अंजान सा नंबर था।

विमल को अक्सर इस तरह से फ़ोन आते थे। शहर के हर चौक पर अपना मोबाइल नंबर जो चिपकाया हुआ था ‘इंडियन आर्मी हेल्पलाइन’ के बतौर ताकि जिसको सहायता की ज़रूरत हो वो बेहिचक मदद मांग सके।

अपने मोबाइल को साइलेंट मोड पर रख कर सोने की आज़ादी भारतीय सेना के अफसरों को कतई नहीं थी।

“साहिब, मैं अफजल बोल रहा हूं। आप मुझे नहीं जानते लेकिन बहुत ज़रूरी काम है। आप मुझ से पुराने पुल पर मिल सकते हैं। अभी जल्दी से जल्दी। .प्लीज…”
घबराहट भरी आवाज़ सुन कर विमल असमंजस में पड़ गया, “ये इतनी रात गए कौन अफ़ज़ल मिलना चाहता है? और क्यों? कोई साजिश तो नहीं है हमें फंसाने की?”

इससे पहले कि विमल कुछ और पूछता फ़ोन कट गया था। विमल के जेहन में कई सवाल थे। वैसे वो मोबाइल नंबर तो बारामुला का ही था लेकिन अभी विमल के पास उसको ट्रेस करने का वक़्त नहीं था।

खैर, विमल चंद सैनिकों की टुकड़ी लेकर फ़ौरन पुराने पुल के पास पहुंच गया। पूरी एहतियात बरतना बहुत ज़रूरी था। इसलिए, आस-पास की चौकियों को अलर्ट कर दिया था विमल ने। पुल के बिल्कुल नजदीक ही छुप कर बैठ गए थे विमल के सिपाही और दूरबीन से पूरे इलाके का मुआयना करने लगे थे। उनको पुल के बीचो-बीच खड़े एक नौजवान की धुंधली सी तस्वीर नज़र आ रही थी।

विमल ने अपने साथियों को कवर देने को कहा और सावधानी से उसकी ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगा।

“सलाम वालेकुम जनाब। मैं अफ़ज़ल हूं। पुराने बारामुला शहर का रहने वाला। वो जलाल साहिब मोहल्ला है न साहिब, बस वहीं घर है मेरा। बहुत ज़रूरी बात करनी थी, इसलिए कॉल किया।”

“अच्छा, पर ऐसी क्या बात है जो आधी रात को हमें इस सुनसान जगह बुलाया है”, विमल ने अफ़ज़ल के कंधे पर अपनी दाहिनी भुजा रखते हुए बेहद नरमी से पूछा और साथ ही बड़ी होशियारी से ये जायजा भी ले लिया कि कहीं अफ़ज़ल ने अपने फिरन के अंदर कोई हथियार तो नहीं छुपा रखा है।

“चिंता मत करो साहिब, बस आपको एक जगह दिखानी है। पास में ही है। आप भरोसा रखिए साहिब।”
उसकी आवाज़ में एक अजीब सा विश्वास था।

ये भी पढ़ें: नया सवेरा: कर्नल सुशील तंवर की कहानी

और विमल के जवाब का इंतज़ार किए बगैर अफ़ज़ल दो कदम आगे बढ़ गया था। “चलें साहिब?”
“हां… हां चलो। लेकिन उस तरफ से नहीं। इधर से आओ।” ये कह कर विमल दूर खड़ी अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया।
“साहिब वो खानपुरा वाली सड़क पर जाना है।”

बस तीन चार किलोमीटर दूर था खानपुरा। बारामूला शहर के बाहर की तरफ। वहां पहुंचते ही अफ़ज़ल ने एक पगडंडी की ओर इशारा किया और उस तरफ बढ़ने ही लगा था कि विमल ने उसे रोक लिया।

“कहां जा रहे हो अफ़ज़ल? इस इलाक़े में ऐसे आंख बंद कर तुम्हारे पीछे-पीछे चलना मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।”
“माफ़ करना साहिब, वो जो पहाड़ी है ना। बस वहां पर ही जाना है। मैं आपको रास्ता दिखाता हूं। बाकी आप बेहतर जानते हो।”

विमल के लिए 15 अगस्त की सुरक्षा सबसे ज़रूरी थी। यही सोच कर वो अफजल का सब कहा मान रहा था। अपने सिपाहियों को ध्यान से बढ़ने की हिदायत देते हुए उसने अफ़ज़ल को आगे चलने का इशारा किया। अफ़ज़ल एक छोटी सी पगडंडी पर पहाड़ी का रास्ता दिखाता गया और उनकी टोली धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयी।

तकरीबन आधे घंटे की चढाई के बाद वो सब पहाड़ी पर पहुंच गए। चारों तरफ घुप्प अंधेरा था। कंटीली झाड़ियों और बड़े-बड़े पत्थरों के बीच से होते हुए अफ़ज़ल पहाड़ी के एक कोने में जा कर खड़ा हो गया। और विमल को अपनी तरफ आने का इशारा करने लगा।

यूं तो मेजर विमल बहुत शांत किस्म का इंसान था लेकिन अब उसका सब्र भी जवाब देने लगा था। खिसियाता हुआ वो अफ़ज़ल के करीब आ पहुंचा। अफ़ज़ल पहाड़ी के बिलकुल आखिरी कोने में खड़ा था। विमल वहां पहुंचा तो उसकी आंखें खुली रह गईं। नीचे पूरा बारामुला शहर साफ़ नज़र आ रहा था और नज़दीक ही नज़र आ रहा था रोशनी से टिमटिमाता हुआ बारामुला का नया स्टेडियम।

अब अफज़ल को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं थी। वहां पहुंचते ही विमल समझ गया था कि यहां से छिप कर स्टेडियम पर हमला करना कितना आसान है।

अफ़ज़ल ने जैसे ही झाड़ियों की तरफ इशारा किया तो कुछ सिपाही किसी खरगोश की तरह उन जंगली झाड़ियों की तलाशी में जुट गए। जल्द ही उनको वहां छुपाया हुआ हथियारों का बड़ा जखीरा मिल गया था। रॉकेट लॉन्चर, राइफल और ग्रेनेड जो बड़ी होशियारी के साथ छुपाए हुए थे। इतने सारे हथियार 15 अगस्त के जश्न को तबाह करने के लिए काफी थे।

विमल को बहुत हैरानी हो रही थे कि उनके तमाम बंदोबस्त और एहतियात के बावजूद आतंकवादी यहां तक पहुंचने में कामयाब हो गए थे। अफ़ज़ल ने बताया कि ये जख़ीरा कुछ आतंकवादियों ने इकठ्ठा किया है। वो उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था। मोहल्ले के कुछ लड़कों के साथ वो भी शामिल हुआ था इन हथियारों को यहां तक लाने में। मुश्ताक़ लम्बरदार ने भेजा था उनको दूर जंगल से सामान उठाकर यहां लाने के लिए। हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा सामान यहां तक पहुंचाने में पूरे तीन महीने लगे थे।

विमल अफ़ज़ल के बारे में कुछ नहीं जानता था। उसे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि इतनी देर रात वो फ़ौज की मदद क्यों कर रहा था।
लेकिन ज्यादा देर नहीं लगी ये राज़ खुलने में।

अफ़ज़ल बारामुला डिग्री कॉलेज में बीए फर्स्ट ईयर का छात्र था। कई बार दोस्तों के साथ पत्थरबाज़ी में शरीक होता था। मज़ा आता था उसको दोस्तों के साथ नारे लगाने में और पत्थर फेंकने में। पर ये सब करने की वजह शायद उसको खुद मालूम नहीं थी।

फिर पिछले महीने उसकी छोटी बहन नगमा जब स्कूल से लौटी तो खुशी से चहक रही थी। सातवीं कक्षा में पढ़ती थी वो। उस दिन उनके स्कूल में कुछ सिपाही आए थे और ढेर सारी पेंसिल, नोटबुक, चॉकलेट वगैरह बच्चों को दे गए थे। वो स्कूल में कुछ कंप्यूटर भी लगाने वाले थे। अफ़ज़ल को थोड़ा अजीब लगा कि जिस फ़ौज पर उसने गालियां और पत्थर बरसाए थे उसी फ़ौज के कारण नगमा उसको इतनी ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल की बातें बता रही है।

फिर कुछ दिन बाद उनके मोहल्ले में एक मेडिकल कैंप लगा जहां फ़ौज और हेल्थ डिपार्टमेंट ने मिल कर लोगों का फ्री इलाज किया और दवाइयां बांटीं। उस दिन लोगों की भीड़ देख कर अफ़ज़ल ये सोचने पर मजबूर हो गया कि लोगों का असली मददगार कौन है।

पिछले हफ्ते अफ़ज़ल ने सुना था कि स्पोर्ट्स स्टेडियम में सरकार इंडिपेंडेंस डे का फंक्शन आयोजित कर रही है। नगमा 15 अगस्त को लेकर बहुत उत्साहित थी। स्कूल के बच्चों के साथ वो भी समारोह में भाग ले रही थी।

ये भी पढ़ें: कर्नल सुशील तंवर की कहानी ‘मुजाहिद’

अफ़ज़ल को जब ये पता लगा तो उसने तय किया कि उसको अब कुछ करना चाहिए। इसलिए उसने विमल को फ़ोन किया था।
और इस तरह आतंकवादियों की एक बड़ी साजिश नाकाम हो गयी।

पूरी कहानी सुनने के बाद विमल अफ़ज़ल को कुछ कहने की कोशिश करता उससे पहले ही अफ़ज़ल वापस अपने घर की ओर चला पड़ा था।

15 अगस्त का समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया गया। स्टेडियम में तिरंगा बड़ी शान से फहराया गया। रंग-बिरंगे सांस्कृतिक प्रोग्राम को भी लोगों ने बहुत पसंद किया। शायद पिछले कुछ सालों में यह सबसे शानदार समारोह था।

मंच पर बैठे हुए मेजर विमल को भी बहुत ख़ुशी थी। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन फिर भी चौकन्ना रहना जरूरी था।
तभी उसके निगाहें लोगों की भीड़ में बैठे एक जाने-पहचाने चेहरे पर जा टिकी।
अफ़ज़ल भी स्टेडियम में आया था।
मुस्कुराता हुआ अफ़ज़ल।
वो बहुत खुश लग रहा था।
आखिरकार, आज उसे आज़ादी का असली मायने पता लग गया था।

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें