जयंती विशेष: जयकिशन के साथ शंकर के संगीत लहरियों की यात्रा, सिनेमा जगत के राम-लक्ष्मण जैसी थी दोनों की जोड़ी

शंकर जयकिशन  ने अपने 3 दशक से अधिक लंबे सिने करियर में लगभग 200 फिल्मों को संगीतबद्ध किया। शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) की जोड़ी साल 1971 तक कायम रहे।

Shankar Jaikishan

Shankar Jaikishan

महान संगीतकार शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) के सुप्रसिद्ध जोड़ी के मधुर संगीत लहरियों की खुशबू से संगीत जगत की आकाशगंगा हमेशा गुलजार रहेगी। शंकर सिंह रघुवंशी का जन्म 15 अक्टूबर, 1922 को पंजाब में हुआ था। बचपन से ही शंकर संगीतकार बनना चाहते थे और उनकी रूचि तबला बजाने में थी। शंकर ने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा बाबा नासिर खान साहब से ली। इसके साथ ही उन्होंने हुस्न लाल भगत राम से भी संगीत की बारीकियां सीखी।

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महान संगीतकार शंकर यानी शंकर सिंह रघुवंशी जो पंजाब से आए थे। बचपन के दिनों से ही शंकर भी संगीतकार बनना चाहते थे और उनकी रुचि तबला बजाने में थी। उन्होंने अपने प्रारंभिक शिक्षा बाबा नासिर खान साहब से ली थी। अपने शुरुआती दौर में शंकर ने सत्यनारायण और हेमावती द्वारा संचालित एक थिएटर ग्रुप में काम किया। इसके साथ ही पृथ्वी थिएटर के नाटकों में वह छोटे-मोटे रोल भी किया करते थे। इसी दौरान वो पृथ्वी थिएटर के सदस्य बन गए जहां वह तबला बजाने का काम किया करते थे।

बॉलीवुड के राम-लक्ष्मण थे शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) 

शंकर का नाम और काम दोनों जयकिशन के बिना अधूरा सा है। जयकिशन यानि दयाभाई पंचाल का जन्म 4 नवंबर 1932 को गुजरात में हुआ था। बचपन के दिनों से ही जयकिशन का रुझान संगीत की ओर था और उनकी रुचि हारमोनियम बजाने में थी। जय किशन ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा वेद लालजी से हासिल की। इसके अलावा उन्होंने प्रेम शंकर नायक से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी। जयकिशन में संगीत बनाने का जुनून इस कदर था कि जब तक वह अपने संगीत को पूरा नहीं कर लेते थे उसमें ही रमे रहते थे और अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से जयकिशन ने अपना अलग ही अंदाज बनाया। साल 1946 में अपने सपनों को नया रूप देने के लिए जयकिशन मुंबई आ गए, जहां उनकी मुलाकात शंकर से हुई। उसी दौरान शंकर भी बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे।

शंकर की सिफारिश पर जयकिशन को पृथ्वी थिएटर में हारमोनियम बजाने के लिए नियुक्त कर लिया गया। इस बीच शंकर  और जयकिशन ने संगीतकार हुस्नलाल भगतराम की शागिर्दी में संगीत सीखना शुरू किया। शंकर और जयकिशन की प्रतिभा से प्रभावित होकर हुस्नलाल भगतराम ने उन्हें अपना सहायक बना लिया। शंकर और जयकिशन दोनों ही संगीत निर्देशक बनना चाहते थे।

दोनों दिन में अपनी नौकरी निभाते थे और रात को हारमोनियम तबला लेकर बैठ जाते थे धुनें बनाने में। कई प्यारे धुने बना ली थी उन्होंने और चाहते थे कि किसी निर्देशक को अपने धोने सुनाएं ताकि उन्हें संगीत निर्देशन का काम मिल सके लेकिन निर्देशकों तक पहुंच नहीं थी उन दोनों की। दोनों अपने धुन सुनाने के लिए राज कपूर के पास जाते थे लेकिन राज कपूर व्यस्तता के कारण उनकी धोने सुन नहीं पाते थे। जब राज कपूर बरसात बना रहे थे तो दोनों उनके पास पहुंचे और इस बार राज साहब ने उनके लिए समय निकाला, यह कहते हुए कि चलो एकाध धुन जल्दी से सुना दो। लेकिन पहले ही धुन ने राज साहब पर ऐसा जादू चलाया कि सारे काम छोड़ कर उनकी सारी धुन सुनी और राम गांगुली की जगह पर उन दोनों को संगीत निर्देशन का काम दे दिया।

उन्होंने ‘हवा में उड़ता जाए…’ और फिल्म ‘बरसात’ में ‘हमसे मिले तुम सजन…’ जैसे सुपरहिट संगीत दिया। फिल्म ‘बरसात’ की कामयाबी के बाद शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसे महज एक संयोग ही कहा जाएगा कि फिल्म ‘बरसात’ से ही गीतकार शैलेंद्र और हसरत जयपुरी ने भी अपने सिने करियर की शुरुआत की थी। फिल्म ‘बरसात’ की सफलता के बाद शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) राज कपूर के चहेते संगीतकार बन गए। शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) के सदाबहार संगीत के कारण राज कपूर की ज्यादातर फिल्में आज भी याद की जाती हैं।

शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) को 9 बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनकी जोड़ी को सबसे पहले साल 1956 में प्रदर्शित फिल्म “चोरी चोरी” के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था। इसके बाद साल 1959 में फिल्म ‘अनाड़ी’, साल 1960 में फिल्म ‘दिल अपना और प्रीत पराई’, साल 1962 में ‘प्रोफेसर’, साल 1966 में फिल्म ‘सूरज’, साल 1968 में फिल्म ‘ब्रह्मचारी’, साल 1970 में फिल्म ‘पहचान’, साल 1971 में फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’, साल 1972 में फिल्म ‘बेईमान’ के लिए भी शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयकिशन ने कई फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर भी दिखाया। इनमें श्री 420 और बेगुनाह जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल हैं। साल 1997 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म बेगुनाह का यह गीत “ए प्यारे दिल बेजुबान” जयकिशन  पर फिल्माया गया।

शंकर जयकिशन  ने अपने 3 दशक से अधिक लंबे सिने करियर में लगभग 200 फिल्मों को संगीतबद्ध किया। शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) की जोड़ी साल 1971 तक कायम रहे। 12 सितंबर 1971 को जयकिशन  इस दुनिया को अलविदा कह गए। इसके बाद शंकर ने आंखों आंखों में, बेईमान, रेशम की डोरी, सन्यासी जैसी कुछ फिल्मों में सुपरहिट संगीत दिया। अपने मधुर संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले महान संगीतकार शंकर भी आज के ही दिन यानि  26 अप्रैल 1987 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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