जब रामानंद की फिल्म प्रपोजल पर राज कुमार ने अपने कुत्ते से पूछा ‘क्या तुम ये रोल करोगे?’ इस पर कुत्ते ने ‘ना’ में गर्दन हिला दी

राज कुमार जिस पुलिस स्टेशन में तैनात थे वहां अक्सर फिल्म इन्डस्ट्री के लोग आते-जाते रहते थे। एक बार फिल्म निर्माता बलदेव दुबे किसी काम से वहां आए हुए थे। राज कुमार के बात करने के अंदाज से वो इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी आने वाली फिल्म का ऑफर दे दिया।

Raaj Kumar राज कुमार RajKumar राजकुमार

Remembering the great actor Raaj Kumar on his Death anniversary

अपनी आवाज और डायलॉग्स की बदौलत सिनेमाघरों में दर्शकों को खींच लाने वाले राज कुमार (Raaj Kumar) अपने अलग अंदाज के लिए जाने जाते थे। उनके डायलॉग बोलने का अंदाज और दमदार आवाज दोनों को ऐसी प्रसिद्धि मिली कि फिल्में ही नहीं बल्कि संवाद भी राज कुमार के कद को ध्यान में रख कर लिखे जाते थे। ‘बुलंदी’, ‘सौदागर’, ‘तिरंगा’, ‘मरते दम तक’ जैसी फिल्में इस बात का उदाहरण हैं कि फिल्में उनके लिए ही लिखी जाती थीं। राज कुमार का जन्म अविभाजित भारत के बलोच प्रान्त में एक कश्मीरी परिवार में 8 अक्टूबर, 1926 को हुआ था। उनका असली नाम कुलभूषण पंडित था। फिल्मों में आने से पहले वो मुम्बई पुलिस में सब इंस्पेक्टर के तौर पर नौकरी करते थे।

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राज कुमार (Raaj Kumar) जिस पुलिस स्टेशन में कार्यरत थे वहां अक्सर फिल्म इन्डस्ट्री के लोग आते-जाते रहते थे। एक बार फिल्म निर्माता बलदेव दुबे किसी काम से वहां आए हुए थे। राज कुमार के बात करने के अंदाज से वो इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी आने वाली फिल्म ‘शाही बाजार’ के लिए काम ऑफर कर दिया। राज कुमार को बात जम गई और उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़ कर फिल्मी दुनिया में जमने का प्रयास शुरू कर दिया। फिल्म ‘रंगीली’ में सबसे पहले बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला उन्हें। ‘रंगीली’ के बाद उन्हें जो भी छोटी-मोटी भूमिकाएं मिलतीं, वो काम कर लेते थे। सफलता नहीं मिलने पर राज कुमार (Raaj Kumar) के तमाम रिश्तेदार यह कहने लगे कि तुम्हारा चेहरा फिल्मों के लिए सही नहीं है। कुछ लोग कहने लगे कि तुम खलनायक बन सकते हो।

पर, राज कुमार (Raaj Kumar) का वक्त आया और उनको असली पहचान मिली 1957 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’ से। फिल्म में किसान की उनकी भूमिका ने खूब वाह-वाही बटोरी। 1959 में आई फिल्म ‘पैगाम’ में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे। लेकिन यहां भी राज कुमार अपनी सशक्त भूमिका से लोगों के बीच जबरदस्त मशहूर हुए। फिल्म ‘वक्त’ की कामयाबी और जबरदस्त डायलॉग्स- ‘चिनॉय सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते हैं, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते…’ या फिर, ‘चिनॉय सेठ ये छुरी बच्चों की खेलने की चीज नहीं, हाथ कट जाए तो खून निकल आता है…’ से राज कुमार (Raaj Kumar) शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। साठ के दशक में राज कुमार की जोड़ी मीना कुमारी के साथ खूब सराही गई और दोनों ने ‘अर्द्धांगिनी’, ‘दिल अपना और प्रीत पराई’, ‘दिल एक मंदिर’, ‘काजल’ जैसी फिल्मों में साथ काम किया।

यहां तक कि लंबे अरसे से लंबित फिल्म ‘पाकीजा’ में काम करने को कोई नायक तैयार नहीं हुआ तब भी राज कुमार (Raaj Kumar) ने ही हामी भरी थी। मीना जी के अलावा वह किसी नायिका को अदाकारा मानते ही नहीं थे। पाकीजा में उनका एक संवाद ‘आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें जमीन पर मत उतारियेगा, मैले हो जायेंगे’ इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे-बगाहे आज भी उनके इस संवाद की नकल करते हैं। राज कुमार एक अनुशासनप्रिय इंसान थे। लेकिन वह जिद्दी भी बहुत थे और इसी हठ के उनके कई किस्से फिल्मी गलियारों में मौजूद हैं। राज कुमार ने फिल्म ‘जंजीर’ सिर्फ इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि कहानी सुनाने आए प्रकाश मेहरा के बालों में लगे सरसों के तेल की महक उन्हें नागवार गुजरी थी।

एक बार का किस्सा है, राज कुमार (Raaj Kumar) अमिताभ के एक सूट की तारीफ कर रहे थे। खुश होकर अमिताभ उन्हें दर्जी का पता बताने लगे। इस पर राज कुमार ने कहा ‘मुझे इसी कपड़े के पर्दे बनवाने हैं।’ एक और किस्सा है राज कुमार साहब का, राज कुमार और गोविंदा एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। गोविंदा एक कलरफुल शर्ट पहने हुए थे। शूटिंग खत्म होने के बाद वे राज कुमार (Raaj Kumar) के साथ वक्त बिता रहे थे। राज कुमार ने गोविंदा से कहा, ‘यार तुम्हारी शर्ट बहुत शानदार है।’ इतने बड़े आर्टिस्ट के मुंह से तारीफ सुनकर गोविंदा बहुत खुश हो गए। उन्होंने कहा कि सर आपको यह शर्ट पसंद आ रही है तो आप रख लीजिए। राज कुमार ने गोविंदा से शर्ट ले ली। गोविंदा खुश हुए कि राज कुमार उनकी शर्ट पहनेंगे। दो दिन बाद गोविंदा ने देखा कि राज कुमार (Raaj Kumar) ने उस शर्ट का एक रुमाल बनवाकर अपनी जेब में रखा हुआ है।

इसी तरह एक पार्टी में संगीतकार बप्पी लाहिड़ी राज कुमार (Raaj Kumar) से मिले। अपनी आदत के मुताबिक बप्पी ढेर सारे सोने से लदे हुए थे। बप्पी को राज कुमार ने ऊपर से नीचे देखा और फिर कहा ‘वाह, शानदार। एक से एक गहने पहने हो, सिर्फ मंगलसूत्र की कमी रह गई है।’ बप्पी साहब का मुंह खुला का खुला ही रह गया। ऐसे ही एक बार की बात है। जीनत अमान फिल्म इंडस्ट्री में फेमस हो गई थीं। उनका ‘दम मारो दम’ गाना धूम मचा रहा था। फिल्म निर्माता अपनी फिल्म में जीनत को साइन करने के लिए बेताब थे। एक पार्टी में जीनत की मुलाकात राज कुमार से हुई। जीनत को लगा, तारीफ के दो-चार शब्द राज कुमार जैसे कलाकार से सुनने को मिलेंगे। जीनत को राज कुमार  ने देखा और कहा, ‘तुम इतनी सुंदर हो, फिल्मों में कोशिश क्यों नहीं करती?’ अब यह बात सुनकर जीनत का क्या हाल हुआ होगा, समझा जा सकता है।

रामानंद सागर और राज कुमार (Raaj Kumar) का एक किस्सा फिल्म ‘आंखें’ से जुड़ा है। इस फिल्म के हीरो धर्मेंद्र थे। लेकिन धर्मेंद्र से पहले सागर इस फिल्म में अपने दोस्त राज कुमार को साइन करना चाहते थे। इसी सिलसिले में सागर एक दिन स्क्रिप्ट लेकर राज कुमार के घर पहुंचे। सागर ने राज कुमार को फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई। लेकिन राज कुमार को कहानी पसंद नहीं आई। इस पर वह उन्हें सीधे तौर पर भी मना कर सकते थे। लेकिन उनके दिमाग में ना जाने क्या आया। फिल्म की कहानी सुनने के बाद उन्होंने अपने कुत्ते को आवाज लगाई। रामानंद सागर भी इस पर हैरान हुए कि आखिर उन्होंने कुत्ते को क्यों बुलाया। मालिक की आवाज पर कुत्ता दौड़कर आया। इस पर राज कुमार ने कुत्ते से पूछा ‘क्या तुम ये रोल करोगे?’ इस पर कुत्ते ने ‘ना’ में गर्दन हिला दी। कुत्ते के इस रिएक्शन के बाद राज कुमार बोले, ‘देखो ये रोल तो मेरा कुत्ता भी नहीं करना चाहेगा।’ रामानंद इसके बाद वहां से चले गए। इस फिल्म के लिए धर्मेंद्र को फाइनल किया गया। लेकिन इसके बाद रामानंद सागर ने कभी राज कुमार के साथ काम नहीं किया।

राज कुमार (Raaj Kumar) के 10 मशहूर डायलॉग्स-

1- बिल्ली के दांत गिने नहीं और चला शेर के मुंह में हाथ डालने…बुलंदी

2- ना तलवार की धार से ना गोलियों की बौछार से बंदा डरता है तो सिर्फ परवर दिगार से…तिरंगा

3- जानी…हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे, पर बंदूक भी हमारी होगी और गोली भी हमारी होगी और वह वक्त भी हमारा होगा….सौदागर

4- हम अपने हुक्म के खुद मालिक हैं, हम अपने हुक्म से अंदर आए थे और अपने हुक्म से ही बाहर चले जाएंगे…तिरंगा

5- राजस्थान में हमारी भी जमीनात हैं और तुम्हारी हैसियत के जमींदार हर सुबह हमें सलाम करने, हमारी हवेली पर आते रहते हैं…सूर्या

6- हम अपने कदमों की आहट से हवा का रुख बदल देते हैं…बेताज बादशाह

7- हमारी जुबान भी हमारी गोली की तरह है। दुश्मन से सीधी बात करती है…तिरंगा

8- हम तुम्हें वह मौत देंगे जो न तो किसी कानून की किताब में लिखी होगी और न ही किसी मुजरिम ने सोची होगी…तिरंगा

9- आपके पांव देखे, बहुत हसीन हैं, इन्हें जमीन पर मत उतारियेगा, मैले हो जायेंगे…पाकीजा

10- जब राजेश्वर दोस्ती निभाता है तो अफसाने लिखे जाते हैं और जब दुश्मनी करता है तो तारीख बन जाती है…सौदागर

आखिरी समय में इस लेजेंड्री एक्टर को अपनी आवाज से ही जूझना पड़ा था। वह आवाज जो उनकी पहचान थी, उनका साथ छोड़ रही थी। नब्बे के दशक के शुरुआती सालों में राज कुमार (Raaj Kumar) साहब गले के दर्द से जूझ रहे थे। दर्द इतना कि बोलना भी दुश्वार होने लगा था। राज कुमार साहब अपने डॉक्टर के पास पहुंचे तो डॉक्टर ने चेकअप का रिजल्ट बताया और कहा कि आपको गले का कैंसर है। इस पर राज कुमार ने कहा – डॉक्टर! राज कुमार को छोटी मोटी बीमारियां हो भी नहीं सकतीं। राज कुमार अपने अंतिम दिनों तक उसी स्वभाव में रहे।

फिल्में अपनी शर्तों पर करते रहे। फिल्में चलें न चलें वह बे-ख्याल रहते थे। बकौल राज कुमार – राज कुमार फेल नहीं होता, फिल्में फेल होती हैं। आखिरी सालों मे वह शारीरिक कष्ट में रहे मगर फिर भी अपनी तकलीफ लोगों और परिवार पर जाहिर नहीं होने दी। उनकी आखिरी प्रदर्शित फिल्म ‘गॉड एण्ड गन’ रही। 3 जुलाई, 1996 को राज कुमार दुनिया से विदा हो गए। राज कुमार (Raaj Kumar) की एक्टिंग, स्टाइल, उनके सफेद जूते और उनके डायलॉग्स आज तक दर्शकों के जेहन में जिंदा हैं।

 

 

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