पुण्यतिथि विशेष: न्यू थियेटर्स की सबसे महंगी गायिका थीं अभिनेत्री कानन देवी

मां बनने के बाद कानन देवी (Kanan Devi) ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया और समाज सेवा के कार्यों में व्यस्त रहने लगीं। उन्होंने जरूरतमंद महिलाओं की सहायता के लिए ‘महिला शिल्पी महल’ नामक एक समाज सेवी संस्था बना ली और समाज सेवा के कार्यों जुड़ गई।

Kanan Devi कानन देवी

Kanan Devi Death Anniversary II कानन देवी

बहुत कम लोगों को इस बात पर यकीन होगा कि वर्ष 1926 में मात्र पांच रुपये से फिल्मों में अपना कार्य आरंभ करने वाली एक अभिनेत्री वर्ष 1946 में सवा लाख रुपये का सर्वाधिक पारिश्रमिक लेने लगी थी, लेकिन गायिका-अभिनेत्री कानन देवी (Kanan Devi)’ के बारे में यह बात बिल्कुल सच है। नई पीढ़ी के सिनेमा-प्रेमी भले ही कानन देवी के नाम से परिचित न हों, लेकिन पुरानी पीढ़ी के लोग इस नाम से भली भांति परिचित हैं। उन्हें मालूम है कि नूरजहां के फिल्मों में आने से पहले कानन देवी सर्वश्रेष्ठ गायिका थीं। पिछली सदी के 30 और 40 के दशकों में कानन देवी (Kanan Devi) के गीतों के रिकार्ड सारे देश में, विशेष कर बंगाल में खूब बजते थे। उनके गाए गीतों में ‘ये दुनिया तूफान मेल’,’ऐ रोने वाले हंसने के दिन दूर नहीं’, ‘प्रीतम से प्रीत निभाऊंगी’, तथा ‘प्रभुजी, तुम राखो लाज हमारी ‘, बेहद लोकप्रिय हुए थे।

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कानन देवी (Kanan Devi) की आवाज में एक ऐसा जादू था कि जो भी गीत वह गाती थीं, भले ही वह गीत फिल्मी गीत हो अथवा रवीन्द्र संगीत, उसे सुनकर श्रोता सपनों की एक मीठी-सी दुनिया में पहुंच जाते थे, बिना किसी साज के भी उनकी आवाज श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी। कानन देवी ने ही पंकज मलिक तथा के. एल. सहगल के साथ मिलकर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीतों को देश के कोने-कोने में पहुंचाया था।

जहां तक कानन देवी (Kanan Devi) की एक अभिनेत्री के रूप में लोकप्रियता की बात है, इसका अंदाजा केवल इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब दर्शक सिनेमा हाल में उनकी कोई फिल्म देखने आते थे, तो पर्दे पर उनकी तस्वीर देखते ही शोर मचाने लगते थे और तस्वीर को छूने के लिए एक-दूसरे से होड़ करने लगते थे।

कानन देवी (Kanan Devi) एक प्रतिभाशाली गायिका और अभिनेत्री ही नहीं, बल्कि अपूर्व सुन्दरी भी थीं, लेकिन जब कोई उनका गीत सामने बैठकर सुनता तो उनकी सुन्दरता की बजाय उस गीत में ही खो जाता था।

कानन देवी (Kanan Devi) ने अपने समय के चोटी के नायकों-के. एल. सहगल, जहर गांगुली, छबि बिस्वास, पी.सी. बरुआ, पहाड़ी सान्याल, अशोक कुमार, उत्तम कुमार के साथ नायिका की भूमिकाएं निभाई। कानन देवी ने फिल्मों में अपने ही बलबूते पर अपनी एक अलग जगह बनाई और एक मामूली अभिनेत्री से चोटी की नायिका बनीं। सचमुच झोपड़ियों से महलों में पहुंच कर कानन देवी ने एक इतिहास रच दिया।

कानन देवी (Kanan Devi) का जन्म पश्चिम बंगाल के हावड़ा में 22 अप्रैल, 1916 को एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। जब कानन देवी बहुत छोटी थीं, तभी उनके सिर से उनके पिता रतनचन्द्र दास का साया उठ गया था। अपने पीछे वे कर्ज का भारी बोझ कानन देवी की मां पर छोड़ गए और फिर मां-बेटी रिश्तेदारों की दया पर आश्रित हो गई। उन दिनों की दयनीय स्थिति के बारे में स्वयं कानन देवी ने एक इंटरव्यू में बताया था-‘हम लोग फटे-पुराने कपड़े पहनते थे। रहने और खाने के बदले में हम मां-बेटी दोनों बिना कोई शिकवा-शिकायत किए काम करती थीं, हम दोनों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। एक दिन मेरी मां के हाथ से एक प्लेट टूट जाने पर उनका बुरी तरह अपमान किया गया जिसे मैं बर्दाश्त न कर सकी। मैं उस समय मात्र सात वर्ष की थीं, फिर भी मैं अपनी मां को एक तरह से घसीटते हुए बाहर ले आई। हमारे पास कहीं और जाने की कोई जगह नहीं थी।”

इस घटना के बाद कानन देवी (Kanan Devi) अपनी मां के साथ एक गंदी बस्ती में रहने लगीं 10 वर्ष की नादान उम्र में बहुत ही बेबसी और गरीबी की हालत में कानन देवी ने जो उस समय कानन बाला के नाम से जानी जाती थीं, फिल्मों में काम करना स्वीकार किया। इस प्रकार मदन थियेटर्स की मूक फिल्म ‘जयदेवी (1926) से कानन देवी (Kanan Devi) का फिल्मों में कैरियर शुरू हुआ। एक दिलचस्प बात इस फिल्म से संबंधित यह है कि कानन को इस फिल्म के लिए 25 रुपये मिले थे, लेकिन 20 रुपये बीच वाले डकार गए और कानन को सिर्फ 5 रुपये ही मिल पाए। फिर भी वे 5 रुपये उनके उस जमाने में बहुत थे।

बहरहाल. मूक फिल्म ‘जयदेव’ से ही काननदेवी के लिए फिल्मों में एक रास्ता मिल गया जिस पर चलकर वे आखिर में अपनी मंजिल पर पहुंची। तब तक बोलने वाली फिल्मों का जमाना आ पहुंचा। ज्योतिष बनर्जी की सवाक् फिल्म ‘जोर बारात’ (1931) की पहली सवाक् फिल्म थी। यह फिल्म कानन देवी के लिए कोई विशेष नहीं रही, लेकिन वर्ष 1935 में जहर गांगुली के साथ उनकी फिल्म ‘मानमयी गर्ल्स स्कूल’ बेहद सफल रही। इस फिल्म में कानन देवी ने अपने सुरीले गले का परिचय भी श्रोताओं को दिया। कानन देवी (Kanan Devi) बंगाल की पहली गायिका अभिनेत्री थीं। उनकी फिल्म ‘विषवृक्ष’ भी बेहद सफल रही। इस फिल्म में भी उनके नायक जहर गांगुली ही थे।

कानन देवी (Kanan Devi) के फिल्मी कैरियर में एक नया अध्याय तब जुड़ा, जब सन् 1936 में उनकी नियुक्ति कलकत्ता के न्यू थियेटर्स में 136 रुपये मासिक वेतन पर बी. एन. सरकार द्वारा की गई। हालांकि कानन देवी की शोहरत एक गायिका-अभिनेत्री के रूप में तब तक हो चुकी थी, फिर भी न्यू थियेटर्स जैसी संस्था से जुड़ना उनके लिए गौरव की बात थी। न्यू थियेटर्स की फिल्म ‘विद्यापति’ (1936) में कानन देवी  ने पहाड़ी सान्याल के साथ काम किया। देवकी बोस के निर्देशन में बनी यह फिल्म बहुत सफल रही। कानन देवी (Kanan Devi) का एक कालजयी गीत-‘मोरे अंगना में आए आली… मैं चाल चलू मतवाली..” इसी फिल्म का है।

कानन देवी (Kanan Devi) के अनुसार ‘विद्यापति’ से पहले उनको बी.एल सरकार से फिल्म ‘देवदास’ में पारो की भूमिका का प्रस्ताव भी मिला था, लेकिन मदन थियेटर्स और राधा फिल्म कंपनी से अनुबंधित होने के कारण वे इस प्रस्ताव को स्वीकार न कर सकें जिसका उन्हें जीवन भर दुख रहा। बहरहाल, फिल्म ‘विद्यापति’ के बाद कानन देवी ने पी.सी. बरुआ के साथ न्यू थियेटर्स की फिल्म ‘मुक्ति’ (1937) में काम किया। फिर के.एल. सहगल के साथ ‘लगन’. ‘स्ट्रीट सिंगर’ और ‘परिचय’ फिल्मों में काम किया। ‘साथी’,’अभिनेत्री’,’मां’, और ‘पराजय’ न्यू थियेटर्स में कानन देवी (Kanan Devi) की अन्य उल्लेखनीय फिल्में थीं।

कानन देवी (Kanan Devi) ने दो बार विवाह किया। उनके पहले पति अशोक मोइत्रा एक उच्च ब्राह्मण कुल से संबंधित थे। उनके इस विवाह पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टेगौर ने भी अपनी शुभकामनाएं भेजी थीं, लेकिन यह विवाह असफल रहा। उनका दूसरा विवाह हरिदास भट्टाचार्य से हुआ जो बंगाल के तत्कालीन गवर्नर राजगोपालाचारी के ए.डी.सी.ए. थे। दूसरे पति ने कानन देवी का साथ पूरी तरह निभाया। अपनी नौकरी छोड़कर वे भी फिल्मों से जुड़ गए।

न्यू थिएटर्स छोड़ने के बाद कानन देवी (Kanan Devi) ने दूसरी फिल्म संस्थाओं के साथ भी काम किया। न्यू थिएटर्स में उनकी आखिरी फिल्म ‘परिचय’ (1940) थी। बाद में उन्होंने सुशील मजूमदार की फिल्म-‘जोगा जोग’ में काम किया जिससे उन्हें बहुत शोहरत मिली। 1947 में निर्मित फिल्म-‘चन्द्रशेखर’ में उनकी फिल्म के नायक थे–अशोक कुमार। बाद में उन्होंने अपनी स्वयं की फिल्म संस्था ‘श्रीमती पिक्चर्स’ बनाकर एक फिल्म ‘अनन्या’ के नाम से भी बनाई।

मां बनने के बाद कानन देवी (Kanan Devi) ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया और समाज सेवा के कार्यों में व्यस्त रहने लगीं। उन्होंने जरूरतमंद महिलाओं की सहायता के लिए ‘महिला शिल्पी महल’ नामक एक समाज सेवी संस्था बना ली और समाज सेवा के कार्यों से जुड़ गई। उन्हें ‘बंगाल फिल्म पत्रकार संघ’ की ओर से उनकी दो फिल्मों-‘परिचय’ (1940) तथा ‘शेष उत्तर’ (1942) के लिए पुरस्कृत किया गया। वर्ष 1968 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया और वर्ष 1976 में उन्हें फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान पुरस्कार ‘दादा साहब फाल्के’ प्रदान किया गया। 17 जुलाई 1992 को 76 वर्ष की आयु में इस संघर्षशील महिला अभिनेत्री का कलकत्ता में देहान्त हो गया।

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