पुण्यतिथि विशेष: हिंदी सिनेमा के उम्दा फिल्मकारों में से एक थे राज खोसला, गायक बनने की चाह ने बना दिया निर्देशक

वर्ष 1954 में राज खोसला को स्वतंत्र निर्देशक के को निर्देशित करने का मौका मिला। देवानंद और गीताबाली अभिनीत फिल्म ‘मिलाप’ की सफलता के बाद बतौर निर्देशक राज खोसलाफिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1956 में राज खोसला (Raj Khosla) ने ‘सी.आई.डी.’ फिल्म निर्देशित की।

Raj Khosla

Raj Khosla Death Anniversary

Raj Khosla Death Anniversary: भारतीय सिनेमा जगत में राज खोसला (Raj Khosla) को एक ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपने उत्कृष्ठ निर्देशन से लगभग चार दशक तक सिने-प्रेमियों के दिलों पर राज किया। दोस्ताना’, ‘मैं तुलसी तेरे आँगनु की’, ‘दो रास्ते’, ‘मेरा गाँव मेरा देश’ और ‘वह कौन थी’ जैसी दिल को छू लेनेवाली कलात्मक फिल्में आज भी सिने-प्रेमियों के दिल में अपनी अमिट छाप छोड़ती हैं।

13 मई, 1925 को पंजाब के लुधियाना शहर मे जन्में राज खोसला (Raj Khosla) का बचपन से ही गीत संगीत की ओर रुझान था। वह फिल्मी दुनिया में पार्श्वगायक बनना चाहते थे। आकाशवाणी में बतौर उद्घोपक और पार्श्वगायक का काम करने के बाद राज़ खोसला 19 वर्ष की उम्र में पार्श्वगायकी की तमन्ना लिए बंबई आ गए। बंबई आने के बाद राज खोसला ने ‘रंजीत स्टूडियो में अपना स्वर परीक्षण कराया और इस कसौटी पर वह खरे भी उतरे, लेकिन ‘रंजीत स्टूडियो के मालिक सरदार चंदू लाल ने उन्हें बतौर पार्श्वगायक अपनी फिल्म में काम करने का मौका नहीं दिया। उन दिनों रंजीत स्टूडियो की स्थिति ठीक नहीं थी और सरदार चंदूलाल को नए पार्श्वगायक की अपेक्षा मुकेश पर ज्यादा भरोसा था, इसलिए उन्होंने अपनी फिल्म में मुकेश को ही पार्श्वगायन करने का मौका देना उचित समझा।

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इस बीच राज खोसला (Raj Khosla) फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्हीं दिनों उनके पारिवारिक मित्र गुरुदत्त के सहायक निर्देशक तौर पर फिल्म ‘मिलाप और अभिनेता देवानंद ने राज खोसला को अपनी फिल्म ‘बाजी’ में के तौर पर नियुक्त कर लिया। वर्ष 1954 में राज खोसला को स्वतंत्र निर्देशक के को निर्देशित करने का मौका मिला। देवानंद और गीताबाली अभिनीत फिल्म ‘मिलाप’ की सफलता के बाद बतौर निर्देशक राज खोसलाफिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1956 में राज खोसला (Raj Khosla) ने ‘सी.आई.डी.’ फिल्म निर्देशित की। जब फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी सिल्वर जुबली पूरी की, तब गुरुदत्त इससे काफी खुश हुए। उन्होंने राज खोसला को एक नई कार भेंट की और कहा कि यह कार आपकी है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि गुरुदत्त ने कार के सारे कागजात भी राज खोसला के नाम से ही बनवाए थे। सी.आई.डी. की सफलता के बाद गुरुदत्त ने राज खोसलाको अपनी एक अन्य फिल्म के निर्देशन की भी जिम्मेदारी सौंपनी चाही लेकिन राज़ खोसला ने उन्हें यह कहकर इनकार कर दिया कि एक बड़े पेड़ के नीच भला दूसरा पेड़ कैसे पनप सकता है?

इस पर गुरुदत्त ने राज खोसला (Raj Khosla) से कहा कि ‘गुरुदत्त फिल्म्स पर जितना मेरा अधिकार है उतना तुम्हारा भी है। वर्ष 1958 में राज खोसला ने ‘नवकेतन बैनर तले निर्मित फिल्म ‘सोलहवा साल’ निर्देशित की। देवानंद और वहीदा रहमान अभिनीत इस फिल्म को सेंसर का वयस्क प्रमाणपत्र मिलने के कारण फिल्म को देखने ज्यादा दर्शक नहीं आ सके और अच्छी पटकथा और निर्देशन के बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी।

इसके बाद राज खोसला (Raj Khosla) को ‘निकेतन’ के बैनर तले ही निर्मित फिल्म ‘काला पानी’ को निर्देशित करने का मौका मिला। यह बात कितनी दिलचस्प है कि जिस देवानंद की बदौलत राज खोसला को फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का मौका मिला था। उन्हीं की वजह से देवानंद को अपने फिल्मी करियर का बतौर अभिनेता पहला ‘फिल्म फेयर पुरस्कार’ प्राप्त हुआ वर्ष 1960 में राज खोसला ने निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और ‘बंबई का बाबू’ का निर्माण किया। फिल्म के जरिए राज खोसला ने अभिनेत्री सुचित्रा सेन को रूपहले परदे पर पेश किया। हालाँकि फिल्म दर्शकों के बीच सराही गई लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इसे अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाई। फिल्म की सफलता से राज खोसला आर्थिक तंगी में फंस गए। इसके बाद राज खोसला को फूल माला’ को एस. मुखर्जी निर्मित ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ निर्देशित करने का मौका मिला। फिल्म की कहानी एक ऐसे फौजी अफसर की जिंदगी पर आधारित थी जिसकी याददाश्त चली जाती है।

फिल्म के निर्माण के समय एस. मुखर्जी ने राज खोसला (Raj Khosla) को यह राय दी कि फिल्म की कहानी फ्लैशबैक से शुरू की जाए। एस. मुखर्जी की इस बात से राज खोसला सहमत नहीं थे बाद में वर्ष 1962 में जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो आरंभ में उसे दर्शकों का अपेक्षित प्यार नहीं मिला और राज खोसला के कहने पर एस. मुखर्जी ने फिल्म का संपादन कराया और जब फिल्म को दोबारा प्रदर्शित किया तो फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। वर्ष 1964 में राज खोसला की एक और सुपरहिट फिल्म प्रदर्शित हुई ‘वह कौन थी?’ फिल्म के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था, लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमयी मुसकान के दर्शक दीवाने हो गए। साथ ही फिल्म की सफलता के बाद राज खोसला (Raj Khosla) का निर्णय सही साबित हुआ।

वर्ष 1967 में राज खोसला (Raj Khosla) ने फिल्म अनिता’ का निर्माण किया, जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गई, जिससे उन्हें गहरा सदमा पहँचा और उन्हें आर्थिक क्षति हुई, जिससे राज खोसला  टूट से गए। बाद में अपनी माँ के कहने पर उन्होंने वर्ष 1969 में फिल्म ‘चिराग’ का निर्माण किया, जो सुपरहिट रही। वर्ष 1971 में राज खोसला  की एक और सुपरहिट फिल्म प्रदर्शित हुई ‘मेरा गाँव मेरा देश’। इस फिल्म में विनोद खन्ना खलनायक की भूमिका में थे। फिल्म की कहानी उन दिना एक अखबार में छपी कहानी पर आधारित थी। वर्ष 1978 में राज खोसला (Raj Khosla) ने लीक से हटकर फिल्में बनाने का काम करना शुरू कर दिया और नूतन और विजय आनंद को लेकर ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’ का निर्माण किया। पारिवारिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म दर्शकों के बीच काफी सराही गई। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘दोस्ताना’ राज खोसला  के सिने करियर की अंतिम सुपरहिट फिल्म थी। फिल्म में अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और जीनत अमान ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

अस्सी के दशक में राज खोसला (Raj Khosla) की फिल्में व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रही। इन फिल्मों में (1981) दासी, तेरी मांग सितारों से भर दूं, ‘मेरा दोस्त मेरा दुश्मन’ (1984) और ‘माटी माँगे खून’ शामिल हैं। हालाँकि वर्ष 1984 में प्रदर्शित फिल्म ‘सन्नी’ ने बॉक्स ऑफिस पर और व्यापार किया। वर्ष 1989 में प्रदर्शित फिल्म ‘नकाब’ राज खोसला के सिन कारयर का आतम फिल्म साबित हुई। अपने दमदार निर्देशन से लगभग चार दशक तक सिने-प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान निर्माता- निर्देशक राज खोसला  09 जून, 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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