पंडित जसराज नहीं रहे: जिनकी आवाज ने पूरे राष्ट्र को एक सुर और एक ताल में बाधा, अब वो आसमान का चमकता सितारा बन गये

सौरमंडल में एक ग्रह का नाम उनके नाम पर ही रखा गया है। वो यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय कलाकार बने हैं। इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने माइनर प्लेनेट 2006 वीपी 32 (नंबर 300128) का नामकरण पंडित जसराज (Pandit Jasraj) के नाम पर किया था।

Pandit Jasraj

Legendary Indian Classical Vocalist Pandit Jasraj dies at 90 in America

‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले’ पंडित जसराज (Pandit Jasraj) ने इस साल जनवरी में अपने 90वें जन्मदिन पर ये शेर पढ़ते हुए कहा था कि उम्र तो महज एक आंकड़ा है। अभी मुझे बहुत कुछ करना है लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। पंडित जसराज (Pandit Jasraj) का अमेरिका में दिल का दौरा पड़ने से सोमवार को निधन हो गया।

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पंडित जसराज (Pandit Jasraj) का सबसे बड़ा योगदान शास्त्रीय संगीत को जनता के लिए सरल और सहज बनाना रहा जिससे उसकी लोकप्रियता बढ़ी। उन्होंने ख्याल गायकी में ठुमरी का पुट ड़ाला जो सुनने वालों के कानों में मिसरी घोल जाता था। वह बंदिश भी अपने जसरंगी अंदाज में गाते थे। शास्त्रीय संगीतकार होने के बावजूद उन्हें नए दौर के संगीत से गुरेज नहीं था। वह दुनियाभर का संगीत सुनते थे और सराहते थे।

जगजीत सिंह की गजल ‘सरकती जाए रुख से नकाब’ उनकी पसंदीदा थी। एक बार दिनभर में वह सौ बार इसे सुन गए थे। भारत‚ कनाड़ा‚ अमेरिका समेत दुनियाभर में संगीत सिखाने वाले पंडित जसराज (Pandit Jasraj) खुद अपने शिष्यों से सीखने को लालायित रहते थे।

28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में जन्में मेवाती घराने के अग्रणी गायक पंडित जसराज (Pandit Jasraj) ने आठ दशक से अधिक के अपने सुनहरे सफर में यूं तो कई सम्मान और पुरस्कार हासिल किए। शास्त्रीय संगीत के सशक्त हस्ताक्षर होने के साथ पंडित जसराज (Pandit Jasraj) ने अर्ध शास्त्रीय शैली जैसे हवेली संगीत को भी लोकप्रिय बनाया। उन्होंने मंदिरों में भजन गाए। उनके गाये कृष्ण भजन खासकर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ दुनियाभर में लोकप्रिय हुए। उन्होंने नई तरह की जुगलबंदी ‘जसरंगी’ भी रची और अबीरी तोड़ी और पटदीपकी जैसे नए रागों का सृजन किया।

उम्र के नौ दशक पार करने के बाद जब उनसे पूछा गया कि क्या कोई ख्वाहिश अब भी अधूरी है‚ तो उनका जवाब था‚ गालिब ने कहा है, हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले। इतने बड़े शायर जब यह बात कह गए‚ तो हम तो बहुत पीछे हैं। किसी भी इंसान की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होती। उन्होंने कहा था‚ मैने कभी सोचा या चाहा भी नहीं‚ वो चीजें भगवान से मिल गईं तो अब क्या चाहूं या क्या कहूं। पद्मश्री मिला तो मेरी आधी जान निकल गई थी। उसके बाद पद्म विभूषण तक मिला। बिना सोचे यहां तक आ गए तो आगे पता नहीं ईश्वर ने क्या लिखा है‚ उन्हीं पर छोड़ देते हैं। पंडि़त जी कहते थे कि जब वह गाते हैं तो ईश्वर को सामने खड़ा पाते हैं। फिर उन्हें किसी का भान नहीं रहता।

पंडित जसराज (Pandit Jasraj) उस वाकये का जिक्र हमेशा करते थे जब 1952 में तत्कालीन नेपाल नरेश त्रिभुवन विक्रम के सामने दी गई प्रस्तुति पर उन्हें पुरस्कार में मोहरें मिली थीं। उन्हें करीब 5000 मोहरें दी गई थीं और वह यह जानकर लगभग अचेत हो गए थे कि गाने के लिए पैसे भी मिलते हैं। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण (2000 में) से नवाजे जा चुके जसराज को 1975 में पद्मश्री सम्मान मिला था जिस पर वह इतने हैरान हुए थे कि उन्होंने चुप्पी ही साध ली थी। उन्हें यकीन करने में काफी समय लगा हालांकि उसके बाद तो अनगिनत सम्मान और पुरस्कार उनकी झोली में आए।

सौरमंडल में एक ग्रह का नाम उनके नाम पर ही रखा गया है। वो यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय कलाकार बने हैं। इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने माइनर प्लेनेट 2006 वीपी 32 (नंबर 300128) का नामकरण पंडित जसराज के नाम पर किया था। जिसकी खोज 11 नवंबर 2006 को की गई थी।  उनके निधन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की स्वर्णिम पीढ़ी का एक और दैदीप्यमान दीप बुझ गया। उनके अकास्मिक निधन से पूरा संगीत जगत दुखी है। भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने भी उनके निधन पर गहरा दुख जताया है। 

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