पुण्यतिथि विशेष: जब अपनी हंसी से ‘आनंद’ ने सबको रूला दिया, कुछ ऐसा था ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन का जादू

ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) ने जिस खूबसूरती से क्लाइमैक्स में पहले से रिकॉर्ड किए डायलॉग का इस्तेमाल किया था उसने इस फिल्म और राजेश खन्ना के किरदार को सिनेमा में अमर कर दिया।

Hrishikesh Mukherjee

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Hrishikesh Mukherjee Death Anniversary : ऋषिकेश मुखर्जी, भारतीय फिल्म जगत के ऐसे महान निर्देशक जिनकी फिल्मों का अंदाज एकदम जुदा होता था। अपनी हर फिल्म में वे जीने की एक फिलॉसफी दे जाते। उनकी फिल्में हंसते-हंसाते जीवन के सच से रूबरू करा जाती हैं। ऋषिकेश मुखर्जी उस सादगी का प्रतिनिधित्व करते थे जो आजकल के दौर में लुप्तप्राय सी हो चली है। ऋषिकेश मुखर्जी आत्मा में डूबकर फिल्मे बनाते थे। यही कारण है कि हिंदी सिनेमा के पटल पर ऋषिकेश मुखर्जी का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

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आनंद, गुड्डी, मिली, चुपके-चुपके, सत्यकाम, गोलमाल, देवदास, अनारी जैसी सदाबहार फिल्मों के डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) का जन्म 30 सितंबर, 1922 को कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद कुछ दिनों तक उन्होंने गणित और विज्ञान के अध्यापक के रूप में भी काम किया। 40 के दशक में ऋषिकेश मुखर्जी ने अपने सिने करियर की शुरुआत न्यू थिएटर में बतौर कैमरामैन से की। न्यू थिएटर में उनकी मुलाकात जाने-माने फिल्म एडिटर सुबोध मित्र से हुई। उनके साथ रहकर ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म एडिटिंग का काम सीखा। इसके बाद ऋषिकेश मुखर्जी फिल्मकार बिमल रॉय के साथ सहायक के तौर पर काम करने लगे। ॠषिकेश मुखर्जी ने अपने पूरे फिल्मी सफर में 42 फिल्में निर्देशित की।

ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) की फिल्में होती थीं हंसी और आंसुओं की कॉकटेल 

ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) हंसी के साथ आंसुओं को मिलाकर मानवीय संवेदनाओं का ऐसा कॉकटेल तैयार करते थे कि फिल्म खत्म होते-होते, मजबूत दिल वाले दर्शकों की आंखें भी नम हो जाती थी। 1971 में फिल्म आनंद के किरदार में उन्होंने कुछ इस तरह प्राण फूंके कि दर्शक सिनेमा हाल से जैसे जीवन दर्शन समझ कर बाहर निकले कि ‘जिंदगी बड़ी होनी चाहिए बाबू मोशाय, लंबी नहीं। ‘कैंसर से जूझता वो नायक आनंद जिसके सामने मौत खड़ी है, लेकिन वो कहकहे लगाता है और मौत का मजाक बनाता हुआ, अपने आसपास के लोगों को जीने का ढंग सिखा जाता है। आनंद वो नायक था जो खुद पूरी फिल्म में हंसता है लेकिन दर्शक अपने आंसू रोक नहीं पाते। मशहूर फिल्ममेकर फ्रांक कापरा ने कहा था कि असली ट्रेजेडी वो नहीं होती जब एक्टर रोता है, ट्रेजेडी वो होती है जब दर्शक रोते हैं। आनंद पर ये कथन पूरी तरह सच साबित हुआ। ऋषि दा संवेदनशीलता और भावनाओं के संगम को जिस तरह से अपनी फिल्मों में दिखाते थे वो फिल्म आनंद में अपने चरम पर पहुंच गई।

फिल्म ‘आनंद के कुछ किस्से बड़े मशहूर हुए थे इस फिल्म में राजेश खन्ना के अभिनय ,गुलजार साहेब के लिखे गीत ,राजेश खन्ना,अमिताभ के डायलॉग लोगों को आज भी याद है लेकिन फिल्म ‘आनंद ‘के लिए राजेश खन्ना निर्देशक की पहली पसंद नही थे ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) अपनी इस फिल्म ‘आनंद’ में अभिनेता राजकपूर को लेना चाहते थे ‘आंनद’ के शीर्षक रोल के लिए निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की पहली पसंद राज कपूर ही थे।

दरअसल ये फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) ने राजकपूर को ध्यान में रखकर ही लिखी थी ‘आनंद’ का वास्तविक चरित्र राजकपूर से प्रेरित था राजकपूर मुखर्जी को हमेशा ” बाबू मोशाय ” कहते थे। ऐसा माना जाता है कि मुखर्जी ने फिल्म तब लिखी थी जब एक बार राजकपूर गंभीर रूप से बीमार थे और मुखर्जी ने सोचा था कि उनकी मृत्यु हो सकती है। जब सही समय आया तो ऋषिकेश मुखर्जी स्क्रिप्ट लेकर राजकपूर के पास गए लेकिन राज साहेब अपने ही आर.के बैनर की फिल्मों मे व्यस्त थे और “बाबू मोशाय ऋषिकेश ” के लिए समय न निकाल सके। ऋषि दा ने इंतज़ार भी किया ऐसे ही वक्त निकलता गया फिर राज कपूर का बुढापा देखकर ऋषिकेष मुखर्जी को लगा की ये किरदार किसी और को देना चाहिए और उन्होंने अपना इरादा बदल दिया फिर शशि कपूर को मुख्य भूमिका की पेशकश की गई थी। लेकिन वो तो राजकपूर से भी ज्यादा व्यस्त थे। फिर बात आ कर ठहर गई अभिनेता और गायक ‘किशोर कुमार’ और ‘महमूद ‘ पर। फिल्म में कैंसर के विशेषज्ञ डॉक्टर भास्कर बैनर्जी यानि बाबू मोशाय का किरदार महमूद द्वारा निभाया जाना था। महमूद तैयार भी हो गये उन्होंने ऋषि दा से कहा की। ”पहले किशोर से बात कर लो ” फिर इस फिल्म के लिए ऋषिकेश जी किशोर कुमार के पास गए, बात पक्की हुयी, पर कुछ ऐसा हुआ की शूटिंग शुरू करने के कुछ ही दिन पहले किशोर कुमार को ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म से ‘आंनद ‘से निकाल दिया।

किशोर कुमार को ‘आनंद’ फिल्म से निकाले जाने की इस घटना के पीछे का कारण काफी दिलचस्प है। उस वक्त किशोर कुमार एक बंगाली फिल्म निर्माता के साथ कई स्टेज शो कर रहे थे लेकिन पैसो को लेकर कुछ अनबन हो गई तिलमिलाए और गुस्सा हुए किशोर घर लौटे और उन्होंने अपने बंगले के गार्ड को बड़े सख़्त लहज़े में साफ़ साफ़ कह दिया। ”खबरदार, उस बंगाली फिल्म निर्माता को मेरे घर के अंदर कभी मत आने देना ” अब वो बात अलग है की किशोर खुद भी बंगाली ही थे ये वही वक्त था जब ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) किशोर कुमार के घर अपनी फिल्म ‘आनंद’ के बारे में कुछ चर्चा करने पहुंच गए जैसे ही उन्होंने एक फिल्म निर्माता के रूप में अपना परिचय किशोर दा के बंगले के गार्ड को दिया, गार्ड को गलतफहमी हो गई जब गार्ड को पता चला की वो एक फिल्म निर्माता है और बंगाली भी तो उन्होंने अपने मालिक के हुक्म अनुसार बंगले के अंदर आने से मना कर दिया और साथ में यह भी कह दिया की ये हुक्म इनके मालिक किशोर कुमार का है। इससे ऋषिकेश काफी गुस्सा हुए इस घटना से मुखर्जी बेहद आहत हुए उन्होंने किशोर कुमार के साथ काम नहीं करने और ‘आनंद ‘फिल्म को किशोर कुमार के बिना बनाने का फैसला कर लिया। नतीजतन, महमूद को भी फिल्म छोड़नी पड़ी और इस तरह गार्ड की गलती के वजह से किशोर कुमार के हाथ से ये फिल्म निकल गयी और राजेश खन्ना को फिल्म के टाइटल रोल के लिए चुन लिया गया।

ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) ने जिस खूबसूरती से क्लाइमैक्स में पहले से रिकॉर्ड किए डायलॉग का इस्तेमाल किया था उसने इस फिल्म और राजेश खन्ना के किरदार को सिनेमा में अमर कर दिया। आनंद की मौत को बयां करती गुलजार की कविता ‘मौत तू एक कविता है’ को जिस मर्मस्पर्शी अंदाज में अमिताभ बच्चन ने पढ़ा उसे कोई भूल नहीं पाया है।

ऋषिकेश मुखर्जी (Hrishikesh Mukherjee) को हिंदी सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए फिल्म जगत के सर्वोच्च ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार और पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया । ऋषिकेश मुखर्जी की अधिकतर फिल्मों को पारिवारिक फिल्मों के दायरे में रखा जाता है। क्योंकि उन्होंने मानवीय संबंधों की बारीकियों को बखूबी पेश किया। ऋषिकेश मुखर्जी को करियर में 7 बार फिल्म फेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

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