Dilip Kumar: नहीं रहे हिंदी सिनेमा के ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार, 5 दशकों तक किया लोगों के दिलों पर राज

हिंदी सिनेमा के ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार (Dilip Kumar) का निधन हो गया है। दिलीप कुमार ने आज यानी 7 जुलाई की सुबह 7:30 बजे मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में अंतिम सांस ली।

Dilip Kumar

हिंदी सिनेमा के ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार (Dilip Kumar) का निधन हो गया है। दिलीप कुमार ने आज यानी 7 जुलाई की सुबह 7:30 बजे मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में अंतिम सांस ली।

सांस लेने में आ रही दिक्कत की वजह से दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को बीते 29 जून मुंबई के खार में स्थित हिंदुजा अस्पताल की आईसीयू में भर्ती कराया गया था।

हिंदी सिनेमा के ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार (Dilip Kumar) का निधन हो गया है। दिलीप कुमार ने आज यानी 7 जुलाई की सुबह 7:30 बजे मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में अंतिम सांस ली। दिलीप कुमार 98 साल के थे। पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत लगातार खराब चल रही थी। उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। पिछले एक महीने में उन्हें दो बार अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।

सांस लेने में आ रही दिक्कत की वजह से दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को बीते 29 जून मुंबई के खार में स्थित हिंदुजा अस्पताल की आईसीयू में भर्ती कराया गया था। उनके परिवार में उनकी पत्नी सायरो बानो हैं।

दिलीप कुमार ने लगभग पांच दशकों तक अपने शानदार अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया। उन्‍होंने कुल 65 फिल्‍में की हैं। इस लिस्‍ट में ‘मुगल-ए-आजम’ से लेकर ‘गंगा-जमुना’ और ‘क्रांति’ जैसी सुपरहिट फिल्‍में हैं। आखिरी बार 1998 में वे फिल्म ‘किला’ में नजर आए थे। दिलीप कुमार का जन्म पेशावर (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। उनका असली नाम मुहम्मद युसुफ खान था।

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पेशावर शहर के किस्‍सा ख्‍वानी बाजार इलाके में जन्‍में दिलीप कुमार (Dilip Kumar) ऊर्फ युसूफ खान के दिल में पाकिस्‍तान का यह शहर बसता था। मुंबई में इतनी शोहर‍त मिलने के बाद भी दिलीप कुमार को अपने शहर और अपने पुश्‍तैनी घर की हमेशा याद आती थी। एक बार दिलीप कुमार ने कहा था कि पेशावर में बीता मेरा बचपन मेरी जिंदगी के सबसे अच्‍छे साल थे। 

युसूफ खान को स्क्रीन पर लोग दिलीप कुमार के नाम से जानते थे। दिलीप कुमार की पहली फिल्‍म ‘ज्‍वार भाटा’ थी और इसी की प्रोड्यूसर देविका रानी ने उन्हें यह नाम दिया था। इस खुलासा खुद दिलीप कुमार ने अपनी किताब ‘दिलीप कुमारः द सब्सटेंड एंड द शैडो’ में किया था।

दरअसल, जिसे दुनिया ट्रेजडी किंग के नाम से जानती है उसे कभी अदाकारी का शौक ही नहीं था। दिलीप कुमार के पिता मुंबई में फलों के बड़े कारोबारी थे। वो अपने पिता के इसी काम में हाथ बंटाया करते थे। उनके पिता का नाम मोहम्मद सरवर खान थे। एक रोज किसी बात को लेकर कहा सुनी होने के बाद दिलीप कुमार वहां से भाग गए और पुणे चले गए थे।

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पुणे में दिलीप कुमार को ब्रिटिश आर्मी के कैंटीन में असिस्टेंट की नौकरी मिल गई। इस दौरान दिन एक आयोजन में भारत की आजादी की लड़ाई की हिमायत करने के चलते उन्हें गिरफ्तार होना पड़ा और उनका काम बंद हो गया। जेल से बाहर आने के बाद यूसुफ खान फिर बंबई (अब मुंबई) चले आए। यहीं उनकी मुलाकात अपनी पहली फिल्म की प्रोड्यूसर देविका रानी से हुई और वे फिल्मों में आ गए।

दिलीप कुमार (Dilip Kumar) की पहली फिल्म ‘ज्‍वार भाटा’ 1944 में आई थी। 1949 में बनी ‘अंदाज’ की सफलता ने उन्हें शोहरत दिलाई। इस फिल्म में उन्होंने राज कपूर के साथ काम किया था। ‘दीदार’ (1951) और ‘देवदास’ (1955) जैसी फिल्मों में की गई आईकॉनिक रोल के बाद वे हिंदी सिनेमा के ‘ट्रेजिडी किंग’ कहे जाने लगे।

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दिलीप कुमार के जीवन में 60 का दशक खास मायने रखता है। वे 1960 में फिल्म ‘मुगले-ए-आजम’ में नजर आए, जिसने उन्हें एक अलग ही मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया था। इसी दौर में सायरा बानो ने उनके जीवन में कदम रखा था। उन्होंने 1966 में अपने से 22 साल छोटी एक्ट्रेस सायरा से शादी कर ली।

इंडियन सिनेमा की माइल स्टोन फिल्मों में से एक ‘मुगले-ए-आजम’ (1960) में उन्होंने राजकुमार जहांगीर की भूमिका निभाई। यह फिल्म पहले ब्‍लैक एंड व्‍हाइट थी और फिर साल 2004 में इसे रंगीन बनया गया। साल 1983 में फिल्म ‘शक्ति’, 1968 में ‘राम और श्याम’, 1965 में ‘लीडर’, 1961 की ‘कोहिनूर’, 1958 की ‘नया दौर’, 1954 की ‘दाग’ के लिए उन्‍हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से नवाजा गया।

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दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को सिनेमा में उनके योगदान के लिए फिल्म जगत के सबसे बड़े सम्मान ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार ने नवाजा जा चुका था। उन्हें भारत सरकार की ओर से ‘पद्म भूषण’ और ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा, पाकिस्तान सरकार ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से भी नवाजा है।

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