महमूद जयंती विशेष: घर की जरूरतों के लिए ट्रेन में बेचीं टॉफियां, अपने बेहतरीन अभिनय और निराले अंदाज से बने कॉमेडी किंग

1965 में आई फिल्म भूत बंगला से महमूद (Mehmood) ने फिल्म डायरेक्शन में कदम रखा। 1974 में आई फिल्म कुंवारा बाप को उन्होंने डायरेक्ट किया था। इसके अलावा कई फिल्मों में उन्होंने बतौर सिंगर भी अपनी आवाज दी।

Mehmood

Mehmood Birth Anniversary

Remembering Mehmood : अपने निराले अंदाज, गजब के हाव-भाव और बेहतरीन आवाज के दम पर पांच दशकों तक लोगों को हंसाने और गुदगुदाने वाले महमूद को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में किंग ऑफ कामेडी के नाम से जाना जाता है। हालांकि महमूद को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। हिंदी फिल्मी करियर में महमूद को तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने करीब 50 साल लंबे करियर में उन्होंने करीब 300 फिल्मों में एक्टिंग की।

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बाल कलाकार से कॉमेडी किंग के तौर पर मशहूर हुये महमूद (Mehmood) का जन्म 29 सितम्बर 1933 को मध्यप्रदेश के दतिया में हुआ था। उनके पिता मुमताज अली बाम्बे टाकीज स्टूडियो में काम किया करते थे। घर की बेसिक जरूरतों को पूरा करने के लिये महमूद लोकल ट्रेनों में टॉफियां बेचा करते थे। बचपन से ही महमूद का रूझान एक्टिंग की तरफ था और वह एक्टर बनना चाहते थे। अपने पिता की सिफारिश की वजह से महमूद को बॉम्बे टाकीज की साल 1943 मे आई फिल्म किस्मत में सुपरस्टार अशोक कुमार के बचपन का रोल निभाने का मौका मिला।

महमूद (Mehmood) गिनती के उन कलाकारों में थे जिन्होंने नए कलाकारों को मौका देने के साथ साथ उनको आगे बढ़ाने में काफी मदद की। अमिताभ बच्चन, अरुणा ईरानी, आर डी बर्मन और राजेश रोशन को ब्रेक देकर आगे बढ़ाने का काम उन्होंने ही किया। अमिताभ बच्चन को उन्होंने अपनी फिल्म बॉम्बे टू गोवा में बतौर हीरो और आर. डी. बर्मन को फिल्म छोटे नवाब, राजेश रोशन को फिल्म कुंवारा बाप में ब्रेक दिया था।

महमूद (Mehmood) ने अपने टैलेंट के दम पर ऊंचा मुकाम हासिल किया। गुरुदत्त साहब उन पर मेहरबान रहे, सीआईडी, कागज के फूल, प्यासा आदि फिल्मों में दोनों की जुगलबंदी ने खूब कमाल किया। परवरिश में महमूद का बड़ा रोल था और वह भी भारी भरकम राजकपूर साहब के सामने। बाद में उन्होंने कपूर खानदान की “कल, आज और कल” फिल्म की। स्ट्रगल के दिनों में महमूद की किशोर कुमार से मुलाकात हुई। महमूद की प्रतिभा से वो वाकिफ थे। किशोर एक्टिंग से ज्यादा गाने में इंट्रेस्टेड थे। उन्होंने ये कहते हुए महमूद की कई प्रोड्यूसरों से सिफारिश की कि मैं अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा हूं। पलट कर उन्होंने भी वादा किया- मोशाय एक दिन मैं ये उधार जरूर चुकाऊंगा। आगे चलकर महमूद की पड़ोसन में किशोर ने शानदार एक्टिंग की।

60-70 के दशक में महमूद की ख्याति बॉलीवुड से दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी मशहूर हो गई। ससुराल, हमराही, गृहस्थी, बेटी-बेटे, साधु और शैतान, हमजोली जैसी फिल्मों में उनके एक्टिंग ने एक अलग ही दुनिया बना दी। बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी फिल्मों में महमूद की एंट्री का इंतजार करते थे।

महमूद (Mehmood) बतौर हीरो भी कामयाब रहे। छोटे नवाब, नमस्ते जी, शबनम, लाखों में एक, मैं सुंदर हूं, मस्ताना, दो फूल, सबसे बड़ा रुपैया, साधु और शैतान आदि फिल्मों ने उन्हें इंडस्ट्री का सबसे महंगा स्टार बना दिया। उन पर फिल्माए कई गाने सुपर हिट हुए। “हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं”, “अपनी उल्फत पे जमाने का यह पहरा न होता…”, “वो दिन याद करो…”, “प्यार की आग में तन बदन जल जाए…” और “एक चतुर नार करके सिंगार” आदि गाने लोगों की जुबान पर आज भी सुने जाते हैं।

महमूद (Mehmood) ने डायरेक्शन में भी आजमाया हाथ

1965 में आई फिल्म भूत बंगला से महमूद (Mehmood) ने फिल्म डायरेक्शन में कदम रखा। 1974 में आई फिल्म कुंवारा बाप को उन्होंने डायरेक्ट किया था। इसके अलावा कई फिल्मों में उन्होंने बतौर सिंगर भी अपनी आवाज दी। महमूद के आठ बच्चों में से दूसरे बेटे मकसूद लकी अली बॉलीवुड के जाने माने सिंगर-एक्टर हैं। बतौर डायरेक्टर महमूद की आखिरी फिल्म थी दुश्मन दुनिया। 1966 में आई इस फिल्म में महमूद ने अपने बेटे मंजूर अली को पर्दे पर उतारा था। 23 जुलाई 2004 को 72 साल की आयु में बॉलीवुड के कॉमेडी किंग की अमेरिका में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई।

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