Amrish Puri Birth Anniversary: पहले स्क्रीन टेस्ट में हो गए थे फेल, LIC में करनी पड़ी नौकरी; ऐसे स्टार बने अमरीश पुरी

Amrish Puri Birth Anniversary: हिंदी सिनेमा पर अपनी जबरदस्त छाप छोड़ने वाले, अदायगी का लोहा मनवाने वाले और किरदारों को पर्दे पर जिंदा करने वाले अमरीश पुरी (Amrish Puri) की आज बर्थ एनिवर्सरी है।

Amrish Puri

Amrish Puri

पाकिस्तान के लाहौर में यानी कि अविभाजित भारत में अमरीश पुरी (Amrish Puri)  का जन्म हुआ। अपनी शुरूआती पढ़ाई लिखाई उन्होंने पंजाब से की।

Amrish Puri Birth Anniversary: हिंदी सिनेमा पर अपनी जबरदस्त छाप छोड़ने वाले, अदायगी का लोहा मनवाने वाले और किरदारों को पर्दे पर जिंदा करने वाले अमरीश पुरी (Amrish Puri) की आज बर्थ एनिवर्सरी है। भारतीय सिनेमा के खलनायकों के फेहरिस्त में अमरीश पुरी का नाम सबसे पहले आता है।

अपनी कद-काठी और अलग आवाज से उन्होंने लोगों का दिल इस कदर जीता कि आज भी लोग विलेन के फ्रेम में सबसे पहले उन्हें ही देखते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिनेमा जगत में केवल खलनायक की भूमिका निभाई है। वह हर तरह के किरदार के साथ पर्दे पर नजर आ चुके हैं।

बॉलीवुड के मोगेंबो का शुरूआती जीवन

22 जून साल 1932 में पाकिस्तान के लाहौर में यानी कि अविभाजित भारत में अमरीश पुरी (Amrish Puri)  का जन्म हुआ। अपनी शुरूआती पढ़ाई लिखाई उन्होंने पंजाब से की, जिसके बाद शिमला के बीएम कॉलेज से डिग्री लेने के बाद अभिनय की दुनिया में कदम रखा। वे रंगमंच से जुड़े और बाद में फिल्मों का रुख किया। फिल्मी पर्दे पर अपनी कभी न मिटने वाली छाप छोड़कर वह 12 जनवरी, 2005 को 73 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविद कहकर चले गए।

रंगमंच के कलाकार अमरीश पुरी

वह जब कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे, तभी से उनका झुकाव थियेटर की तरफ था। उन्होंने 60 की दशक में नाटक से लोकप्रियता बटोरी। सत्यदेव दुबे और गिरीश कर्नाड के नाटकों पर उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी और कई अवॉर्ड भी जीते। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी था जब अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत उनके नाटक को देखने आया करते थे और इस तरह बॉलीवुड से पहले वो रंगमंच के लोकप्रिय कलाकार बने।

जब बड़े पर्दे के लिए रिजेक्ट हो गए थे

अमरीश (Amrish Puri)  ने अपनी फिल्मी सफर की शुरूआत साल 1971 में फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ से की थी। मगर बहुत कम लोगों को ये मालूम है कि उनके पहले स्क्रीन टेस्ट में अमरीश को रिजेक्ट कर दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी की और बाद में पृथ्वीराज कपूर के थियेटर में नाटकार के रूप में काम करने लगे।

बॉलीवुड की ‘ब्यूटी क्वीन’ थीं नसीम बानो, बेटी बनी उनसे भी बड़ी सुपरस्टार

बाद में जाकर फिल्मों का सफर आसान हुआ। अमरीश पुरी ने भारतीय सिनेमा जगत को अपने रंग में ऐसे रंग दिया कि फिर उनका रंग कभी फिका नहीं पड़ा। साल 1987 में आई शेखर कपूर की फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ में मोगैंबो के उनके किरदार को खूब पसंद किया गया। वहीं, फिल्म में उनका डायलॉग- मोगैंबो खुश हुआ… आज भी लोगों की जुबान पर रहता है।

फिल्मी सफर

1990 के दशक में उन्होंने कई फिल्में की, जैसे दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे, घायल और विरासत में अपनी विलेन वाली छवि के अलावा सकारात्मक भूमिका निभाई। इसके अलावा ‘निशांत’, ‘गांधी’, ‘कुली’, ‘नगीना’, ‘राम लखन’, ‘त्रिदेव’, ‘फूल और कांटे’, ‘विश्वात्मा’, ‘दामिनी’, ‘करण अर्जुन’, ‘कोयला’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से वह छा गए। अमरीश पुरी की अंतिम फिल्म का नाम ‘किसना’ है जो उनके देहांत के बाद रिलीज हुई थी।

बेटे को फिल्मी दुनिया से रखा था दूर

फिल्मी जगत पर नेपोटिज्म के आरोप लगते रहते हैं। मगर अमरीश पुरी (Amrish Puri) ने उस जमाने में अपने बेटे को इस दुनिया से दूर रहने की हिदायत दी थी। बीबीसी से बातचीत में उनके बेटे ने बताया कि अमरीश पुरी ने कहा था कि इस पेशे में मत आओ और जो भी अच्छा लगता है करो, उसके बाद बेटे राजीव ने मर्चेंट नेवी का रुख किया। अमरीश पुरी ने बेहद कम समय में भारतीय सिनेमा के 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है और उनके कई डॉयलॉग आज भी लोगों के जुबान पर रहते हैं।

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें