
फाइल फोटो
प्रिया झिंगन भारतीय सेना (Indian Army) की पहली महिला कैडेट थीं‚ जिनके साथ 25 महिलाओं ने पहली बार सेना (Armed Forces) में प्रवेश किया। प्रिया पुलिस अधिकारी की बेटी हैं। जीवन में उनका लक्ष्य था सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना। प्रिया का कहना था कि वह पैसा कमाने के लिए नौकरी नहीं करना चाहती थीं। उस समय सेना में महिलाओं को नहीं लिया जाता था‚ इसलिये उन्होंने थल सेनाध्यक्ष को पत्र लिखा। वह सेना की वर्दी पहन कर मार्च करना चाहती थीं। उन्हें अपने पत्र के जवाब में आश्वासन मिला कि अगले दो वर्षों में सेना का द्वार महिलाओं के लिए खोला जाएगा।
आज भी महिलाओं को ‘कॉम्बैट पोजिशन्स’ में नहीं लिया जाता। उन्हें कानूनी सेवाएं‚ शिक्षा‚ इंजीनियरिंग और चिकित्सा सेवाओं के लिए रखा जाता है। कहा जा रहा कि कॉम्बैट रोल में महिलाओं को लेने की तैयारी चल रही है।
प्रिया झिंगन बताती हैं कि शुरू में कुछ दिक्कतें भी आईं। महिलाओं के लिए कोई छूट नहीं थी। उन्हें वह सब कुछ करना होता था‚ जो पुरुष करते थे। मिताली मधुमिता और दिव्या जैसी महिलाओं को भी सेना (Armed Forces) में रहते हुए देश के सर्वोच्च पुरस्कारों से नवाजा गया है।
दिव्या कुमार केवल 21 साल की थीं जब उसने 244 कैडेटों को परास्त कर सर्वश्रेष्ठ कैडेट का खिताब जीता और ‘सोर्ड ऑफ ऑनर’ प्राप्त किया था और मधुमिता ने सेना का शौर्य मेडल जीता।
कई महिलाएं सेना (Armed Forces) में विभिन्न जिम्मेदारियों में आती रहीं‚ जैसे अलका खुराना‚ प्रिया सेमवाल‚ अंजना भदौरिया आदि। पुनीता अरोड़ा ने सेना में लफ्टिनेंट जनरल और नौ सेना में वाइस ऐडमिरल के पदों को सुशोभित किया।
2016 में राष्ट्रपति ने घोषणा की कि महिलाओं को सेना (Armed Forces) के प्रत्येक अंग में कॉम्बैट रोल में लिया जा सकेगा। यह महिलाओं के लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि सारे लैंगिक भेदभाव खत्म किये जा रहे थे। भले ही वे ऐसे कामों में हों जहां बहुसंख्यक पुरुष हैं और इसमें समय भी लगना था।
सरकार ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया कि महिलाओं को सेना (Indian Army) के कमांडिंग पोजिशन्स में नहीं लिया जा सकता। कारण बताया गया कि सेना के पुरुष अधिकारी उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे।
यह भी कहा गया कि सेना (Indian Army) में अधिकतर जवान ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं और परंपरागत सामाजिक रीति–रिवाज के होते हुए उनकी ‘मेंटल स्कूलिंग’ ऐसी नहीं है कि वे कमांड भूमिकाओं में महिला अफसरों को स्वीकार कर सकें।
यह भी कारण बताया गया कि महिलाओं को घरेलू जिम्मेदारियों का निर्वाह करना पड़ता है और यदि महिला युद्धबन्दी बन जाएं तो उन्हें शारीरिक‚ मानसिक व मनोवैज्ञानिक तनाव झेलना पड़ेगा। मातृत्व और बच्चों की देखरेख बन्दी होने के दौर में संभव न हो सकेगा यह तर्क भी दिया गया।
सुनने में ये तर्क महिला–पक्षधर लग सकते हैं पर ऐसा नहीं है। क्योंकि यह संविधान के तहत महिलाओं को दिये गए बराबरी के अधिकार के विरुद्ध है।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने 17 फरवरी को‚ इस बाबत सरकार को काफी लताड़ा‚ यहां तक कह दिया कि केंद्र सरकार ने 2011 के दिल्ली उच्च न्यायालय के उस निर्देश की अवहेलना की है‚ जिसके अनुसार महिलाओं को सेना (Armed Forces) में स्थायी कमिशन पर रखने की बात है‚ जबकि उस पर स्टे नहीं लगा। पीठ ने इसे चिंताजनक बताया कि 10 साल होने को आए पर अब तक उच्च न्यायालय के निर्देश पर काम नहीं हुआ।
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दूसरे‚ फैसले में सरकार को तीन माह का समय दिया गया कि वह महिलाओं को स्थायी कमिशन पर रखने के लिए रास्ता साफ करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को अपनी मानसिकता में बदलाव लाना चाहिये क्योंकि आजादी को 70 साल से अधिक हो चुके हैं। जहां तक पुरुष सैनिकों की बात है‚ उन्हें भी धीरे–धीरे अपने को नई परिस्थितियों के लिए तैयार करना होगा।
पीठ ने यह भी कहा कि महिलाओं की शारीरिक बनावट का उनके काम के अवसरों से कोई लेना–देना नहीं है‚ क्योंकि पहले भी महिला सैनिक अफसरों ने अपने काम से देश का सिर उंचा किया है। देखा जाए तो कई ऐसे क्षेत्र हैं‚ जहां महिलाओं को अजनबी माना जाता है क्योंकि कहीं–न–कहीं दिमाग में यह बस गया है कि महिलाएं दरअसल घरेलू जिम्मेदारियां निभाने के लिए बनी हैं और यदि वे कुछ और करना चाहती हैं तो उसके लिए पुरुषों की अनुमति जरूरी है।
सामाजिक परंपराओं का भी अकसर हवाला दिया जाता है। जैसे ही छोटी कठिनाई सामने आती है‚ पूरा परिवार और समाज महिला पर टूट पड़ता है‚ आखिर किसने कहा था ऐसे काम करने के लिए जो महिलाओं के लिए होते ही नहीं।
पहले से भारतीय वायु सेना और भारतीय नौ सेना में महिलाएं कॉम्बैट रोल में ली जाती रही हैं। 2017 में वायु सेना में 13.9 फीसदी महिलाएं और नौ सेना में 6 फीसदी थीं।
कई देशों में महिलाएं बड़ी संख्या में सेना (Armed Forces) में काम करती रही हैं और उच्च पदों पर भी रही हैं। उदाहरण के लिए अल्जीरिया‚ पाकिस्तान‚ चीन‚ एरिटिया‚ नॉर्वे‚ नेपाल आदि।
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p style=”text-align: justify;”>जबकि जमर्नी में महिला सैनिकों को लेकर काफी सख्त नीति रही‚ 2001 से उन्हें अवसर मिलने लगे हैं। पोलैंड की नीति के अनुसार जिन महिलाओं ने नर्स की ट्रेनिंग ली है‚ उन्हें अनिवार्य तौर पर सेना में सेवा करना पड़ता है। रूस से अलग हुए देश पोलेंड में जन्मी मारिया विट्टेक प्रथम महिला थीं‚ जिन्हें पोलेंड सेना में ब्रिगेडियर जनरल का पद प्राप्त हुआ।
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