2 घंटे सोने देते और शारीरिक, मानसिक तौर पर करते थे परेशान, महिला नक्सली की दास्तान सुन दहल उठेंगे आप

साल 2011 में नक्सली नेता किशनजी की मौत हो गई। इसके बाद नवंबर 2012 में वो नक्सली दस्ते से निकल कर भाग गई। उस वक्त यह महिला किसी तरह पुलिस के सामने सरेंडर करना चाहती थी लेकिन 10 दिसंबर, 2012 को पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।

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दिसंबर 2012 में गिरफ्तार हुई थी यह महिला नक्सली। सांकेतिक तस्वीर।

साल 2009…जिला पश्चिम बंगाल का मिदनापुर। उस वक्त यह लड़की दसवीं क्लास में पढ़ती थी और एक दिन वो स्कूल से पढ़ाई कर घर लौट रही थी। घर से कुछ दूर पहले उसने देखा कि कुछ नक्सली (Naxali) उसके छोटे भाई को बुरी तरह पीट रहे हैं और सातवीं क्लास में पढ़ने वाले उसके भाई को नक्सली (Naxali) संगठन ज्वायन करने की धमकी दे रहे हैं। भाई को खूंखार नक्सलियों से घिरा देख यह लड़की उनके लीडर बादल के पैरों पर गिर गई और अपने भाई को बख्श देने की गुहार लगाने लगी। बादल ने लड़की के भाई को तो छोड़ दिया लेकिन वो अपने साथ इस लड़की को जबरदस्ती ले गया। बादल ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि तुम्हारे घर से कोई सदस्य संगठन में शामिल हो।’

बाद में इस लड़की को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और उस पर कई मुकदमे भी दर्ज हुए। लेकिन साल 2016 में इस लड़की ने ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ से बातचीत के दौरान अपनी जो कहानी बयां की उसे सुनकर आप दहल उठेंगे। इस लड़की ने बताया था कि एक महिला नक्सली (Naxali) होने का क्या मतलब होता है वो भी तब जब संगठन में आपके लीडर बिकाश और किशनजी जैसे खूंखार नक्सली हों। इस महिला नक्सली ने बताया कि जिस दिन उसने मजबूरी में अपने भाई की जान बचाने के लिए नक्सली (Naxali) संगठन ज्वायन किया था उसी दिन से वो चाहती थी कि इलाके में ज्यादा से ज्यादा पुलिसवाले आ जाएं ताकि वो नक्सलियों से लड़ें और वो अपने घर जा सकें। लेकिन इसमें काफी समय लगा। उन्होंने बताया था कि साल 2009 में नक्सलियों ने महिलाओं को भर्ती करने के लिए विशेष अभियान चलाया था और वो संगठन में शामिल करने के बाद वो महिलाओं को संवेदनशील हथियारों तथा विस्फोटकों को लाने और ले जाने की ट्रेनिंग देते थे। संगठन में रहते हुए किस तरह महिलाओं पर जुल्म-ओ-सितम किए जाते हैं इस पर इस महिला ने खुलकर बातचीत की थी।

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महिलाओं को 2 घंटे सोने की इजाजत थी

पूर्व महिला नक्सली (Naxali) ने अपने जीवन के कड़वे अनुभवों के बारे में आगे बताया था हमें एक दिन में दो से तीन घंटे सोने की इजाजत मिलती थी। बाकी सारी रात हमें घने जंगलों में तंबुओं के आसपास निगरानी करने की ड्यूटी करनी पड़ती थी। सुबह के वक्त हमें ट्रेनिंग में भेजा जाता था। जहां हमें हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती थी तथा दौड़ना-कूदना जैसे और कई एक्सरसाइज कराए जाते थे। हमें तेज बुखार या गंभीर रूप से तबीयत खराब होने पर भी काम करना पड़ता था। हमें गांवों में जाकर अनाज लाने, कुएं या नलों से पानी लाने और फिर खाना बनाने का काम दिया जाता था। इस महिला ने उस वक्त बताया था कि उन्हें बंदूक की नोंक पर जबरदस्ती संगठन में शामिल किया गया था।

सहनी पड़ती थी प्रताड़ना

इस महिला ने बताया था कि संगठन के सदस्य महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते थे। महिला ने बताया था कि इन्हें गांव से ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को संगठन में लाने के लिए कहा जाता था ताकि पुलिस मुठभेड़ के दौरान यह नक्सली महिलाओं का इस्तेमाल मानव ढाल के तौर पर कर सकें। यहां आपको याद दिला दें कि नक्सलियों के एक पोलित मेंम्बर सदस्य ने भी पकड़े जाने के बाद पुलिस के सामने पूछताछ के दौरान बताया था कि नक्सली (Naxali) संगठन में महिलाओं को ज्यादा जोड़ते थे क्योंकि वो काम को लेकर ज्यादा तत्पर रहती थीं। लालगढ़ मूवमेंट के दौरान नक्सलियों ने ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को संगठन में शामिल किया था। उस वक्त महिलाओं का एक अलग संगठन बनाकर नक्सलियों ने इसका नाम ‘नारी इज्जत बचाओ’ कमेटी रखा था। इन महिलाओं का मुख्य काम सुरक्षा बलों को वैसी जगह जाने से रोकना था जहां नक्सली मीटिंग किया करते थे।

कई वारदात को दिया अंजाम

इस महिला ने इंटरव्यू के दौरान बताया कि अक्टूबर 2009 में संकरेल पुलिस स्टेशन पर हमला किया गया था। इस हमले के दौरान नक्सली (Naxali) दस्ते में 2 महिलाएं शामिल थीं और वो भी उनमें से एक थी। उस वक्त नक्सलियों ने दो पुलिस वालों की हत्या कर दी थी और एक अधिकारी को अगवा कर थाने से कई हथियार लूट लिए थे। 2009 में ही लालगढ़ के बंसबेरी में पुलिस टीम पर हुए हमले में भी यह शामिल थी। साल 2010 में एक बैंक डकैती को अंजाम देने वाले नक्सली दस्ते में भी यह महिला शामिल थी।

इस महिला ने बताया कि साल 2011 में नक्सली (Naxali) नेता किशनजी की मौत हो गई। इसके बाद नवंबर 2012 में वो नक्सली दस्ते से निकल कर भाग गई। वो अपने गांव लौटी और एक गुमनाम शेल्टर होम में रही। उस वक्त यह महिला किसी तरह पुलिस के सामने सरेंडर करना चाहती थी लेकिन 10 दिसंबर, 2012 को पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। जिसकी वजह से उसे नक्सलियों के लिए पुनर्वास नीति के तहत मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं मिल सकीं।

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