इस पूरे घटनाक्रम को अगर ध्यान से देखा जाए तो इस दौरान नक्सलियों (Naxalites) का व्यवहार और उनका तरीका काफी अचंभित करने वाला है।
नक्सलियों (Naxalites) ने 8 अप्रैल को CRPF कमांडो जवान राकेश्वर सिंह (Rakeshwar Singh Manhas) को रिहा कर दिया। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर में 3 अप्रैल को हुए नक्सली हमले (Naxal Attack) में हमारे 22 जवान शहीद हो गए थे। कोबरा कमांडो (CoBRA Commando) राकेश्वर सिंह हमले के बाद से ही लापता थे।
इसके बाद 4 अप्रैल को नक्सलियों ने खुद ही मीडिया को फोन कर बताया था कि उन्होंने ही जवान का अपहरण किया है। 7 अप्रैल को नक्सलियों ने उनका फोटो जारी किया और बताया कि कमांडो उनके कब्जे में हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कमांडो सुरक्षित है और वे जल्द ही उसकी बिना शर्त रिहाई कर देंगे।
इसके बाद से नक्सलियों (Naxals) के साथ बातचीत की कोशिशों का सिलसिला शुरू हुआ और आखिरकार 5 दिन बाद राकेश्वर सिंह सुरक्षित लौट आए। इस पूरे घटनाक्रम को अगर ध्यान से देखा जाए तो इस दौरान नक्सलियों (Naxalites) का व्यवहार और उनका तरीका काफी अचंभित करने वाला है। नक्सली इतनी आसानी से राकेश्वर सिंह को रिहा करने के लिए कैसे तैयार हो गए? यह सवाल हर किसी के जेहन में आ रहा है।
कमांडो को अगवा करने के बाद से नक्सली हर दिन सरकार तक मैसेज पहुंचाते रहे कि राकेश्वर सुरक्षित हैं। पहले नक्सलियों की ओर से जवान की फोटो और एक पत्र जारी किया गया, जिसमें बताया गया कि वे घायल राकेश्वर का इलाज करा रहे हैं। फिर मध्यस्थता की पेशकश की गई और फिर स्थानीय पत्रकारों के जरिए संपर्क किया गया।
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नक्सली सरकार तक लगातार यह संदेश पहुंचाने की कोशिश करते रहे कि वे बातचीत करना चाहते हैं। अपहरण के बाद 4 अप्रैल को नक्सलियों ने खुद ही मीडिया को फोन कर बताया था कि उन्होंने ही जवान को अगवा किया है। उन्होंने साफ कहा कि कमांडो सुरक्षित है और वे जल्द ही उसकी बिना शर्त रिहाई कर देंगे।
वहीं, पब्लिसिटी पाने और लोगों में गुडविल बनाने के लिए नक्सलियों ने यह कहा कि सरकार कमांडो की रिहाई के लिए मध्यस्थों के नाम दे। बिना ज्यादा देर लगाए और सरकार के लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हालात ना बनाते हुए नक्सलियों ने कमांडो की रिहाई कर दी।
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नक्सलियों (Naxalites) ने ऐसा कर हाई मोरल ग्राउंड अपनाने की कोशिश की। ऐसा करके नक्सलियों की यह दिखाने की कोशिश की है कि उनकी दुश्मनी जवानों से नहीं है, उन्हें सरकार से समस्या है।
इसके अलावा, नक्सली कमांडो को रस्सी में बांध कर बीजापुर के आदिवासी इलाकों से होते हुए लेकर आए। इससे पहले इन नक्सलियों ने वहां के कुछ गांवों, आदिवासी नेताओं और मीडियाकर्मियों को ये जानकारी दी थी। यहां सैकड़ों लोगों को जुटाया गया। जब वहां भीड़ इकट्ठी हो गई तो हथियारबंद नक्सली राकेश्वर सिंह को वहां लेकर आए।
मीडिया के सामने ही राकेश्वर सिंह के हाथों में बांधी गई रस्सियां खोली गईं, उन्हें रिहा किया गया और उन्हें मध्यस्थों के साथ भेज दिया गया। दो नक्सली जवान के हाथ खोलते दिखे। ध्यान देने वाली बात यह है कि नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह की रिहाई के लिए वही जगह चुनी थी, जहां उन्होंने जवानों पर हमला किया था।
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इस पूरे वाकये से नक्सलियों ने शायद यह संदेश देने की कोशिश की है कि अपने गढ़ में उन्हें सरकार और प्रशासन का कोई डर नहीं है। इस पूरे घटनाक्रम से यह जाहिर हो रहा है कि नक्सलियों ने लोगों के साथ एक दिमागी खेल खेलने की कोशिश की है और आम लोगों में अपने लिए सहानुभूति पैदा करने के लिए ये सब किया है।
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