…जब पुलिस की पकड़ से बाल-बाल बच गया था छत्तीसगढ़ नक्सली हमले का मास्टरमाइंड हिडमा

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर में 3 अप्रैल को हुए नक्सली हमले (Bijapur Naxal Attack) को अंजाम देने के पीछे 25 लाख के इनामी कुख्यात नक्सली कमांडर हिडमा (Hidma) का हाथ बताया जा रहा है।

Madavi Hidma

25 लाख का इनामी नक्सली माड़वी हिडमा (फाइल फोटो)

हिडमा (Hidma) छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के सुकमा जिले के पुवार्ती गांव का रहने वाला है। सुकमा के जगरगुंडा इलाके में इसका वर्चस्व है। पुलिस के पास अभी हिडमा की कोई पहचान नहीं है। उसकी कोई लेटेस्ट तस्वीर भी नहीं है।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर में 3 अप्रैल को हुए नक्सली हमले (Bijapur Naxal Attack) को अंजाम देने के पीछे 25 लाख के इनामी कुख्यात नक्सली कमांडर हिडमा (Hidma) का हाथ बताया जा रहा है। मुठभेड़ की घटना हिडमा के गांव में हुई थी। सुरक्षाबल के जवान लगातार उसके ठिकानों पर छापेमारी की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन हिडमा कभी पुलिस की पकड़ में नहीं आया है।

जून, 2017 में बाल-बाल बच गया था हिडमा

हालांकि, पुलिस का कहना है कि जून, 2017 में एक बार वह पुलिस की पकड़ से बाल-बाल बच गया था। दरअसल, तब भेज्जी और बुरकापाल में लगातार दो बड़े नक्सली हमले हुए थे। इन हमलों में हमारे 38 जवान शहीद हो गए थे। जिसके बाद सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन ‘प्रहार’ लॉन्च किया था। यह ऑपरेशन सुकमा में नक्सलियों का गढ़ कहे जाने वाले तोंडामारका से नक्सलियों के खात्मे के लिए चलाया गया था। पुलिस का दावा है कि इस ऑपरेशन में 7 से 18 नक्सली मारे गए थे। कहते हैं इस ऑपरेशन में हिडमा बहुत बुरी तरह जख्मी हो गया था, संभवत: मारा गया था। उसके साथी उसे बचाकर ट्रैक्टर में ले गए थे। बस्तर के नक्सलियों ने सार्वजनिक रूप से इस बात से इंकार किया था। हालांकि, यह बात कितनी सच है, यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन सब जानते हैं कि हिडमा जिंदा है और सक्रिय है।

तीन चक्रीय सुरक्षा घेरे में रहता है हिडमा 

दरअसल, हिडमा (Hidma) के पकड़ में न आने की वजह है उसका सुरक्षा घेरा। सुरक्षाबलों के मुताबिक, हिडमा तीन चक्रीय सुरक्षा घेरे में रहता है। वह बीहड़ों के भीतर अपने बटालियन के साथ रहता है। हिडमा बाहर तभी आता है जब उसे किसी बड़ी वारदात को अंजाम देना होता है। हिडमा की बटालियन नंबर-1 सबसे अधिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस नक्सलियों की बटालियन मानी जाती है।

पुलिस की पकड़ से ऐसे बच निकलता है

उसकी सुरक्षा के सबसे बाहरी घेरे के नक्सली सुरक्षाबलों की मूवमेंट की जानकारी उसको देते हैं, जिससे कि वह अपने प्लान को पूरी तरह कंट्रोल करता है। साथ ही बाहरी घेरे के नक्सली ही जवानों से सीधी मुठभेड़ में शमिल होते हैं और हिडमा के बच निकलने में मदद करते हैं। साथ ही जंगल में सड़कों और नेटवर्क कनेक्टिविटी की दिक्कत होने की वजह से सुरक्षाबलों की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं, क्योंकि जब तक उसकी मौजूदगी की खबर मिलती है और जवान हिडमा तक पहुंचते हैं तब तक वो वहां से बच निकलता है।

तकनीकी की अच्छी जानकारी रखता है हिडमा

हिडमा (Hidma) के साथ के पकड़े गए या सरेंडर किए हुए नक्सली बताते हैं कि वह सबसे खूंखार है। उसकी नेतृत्व करने और सटीक रणनीति बनाने की क्षमता ने उसे बहुत जल्द शीर्ष नेतृत्व पर पहुंचा दिया और उसे एरिया कमांडर बना दिया गया। कुख्यात रमन्ना की मौत के बाद उसे दंडकारण्य का चार्ज दे दिया गया था। हिडमा नक्सलियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीजीएलए) बटालियन-1 का हेड है। वह दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी  (DKSZ)  का सदस्य है और छत्तीसगढ़ में होनेवाले लगभग सभी घातक हमलों का नेतृत्व करता है। वह तकनीकी की भी अच्छी जानकारी रखता है। वह सुरक्षाबलों की मूवमेंट को बड़ी बारीकी से देखता है और ऑपरेशन के दौरान शांत रहता है, अपना आपा नहीं खोता।

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भेष बदलकर पुलिस की मौजूदगी में जा चुका है बाजार

सरेंडर नक्सलियों द्वारा यह भी कहा जाता है कि हिडमा (Hidma) अपना साहस दिखाने और साथी नक्सलियों का मनोबल बढ़ाने के लिए पुलिस की मौजूदगी में भी बिना वर्दी के साधारण भेष में कई बार किस्टाराम बाजार जा चुका है।

एके-47 का शौकीन

हिडमा सुकमा जिले के पुवार्ती गांव का रहने वाला है। सुकमा के जगरगुंडा इलाके में इसका वर्चस्व है। पुलिस के पास अभी हिडमा की कोई पहचान नहीं है। उसकी कोई लेटेस्ट तस्वीर भी नहीं है। उसकी उम्र 35-45 साल बताई जाती है। छत्तीसगढ़ में घटने वाली तमाम बड़ी नक्सली घटनाओं को अंजाम हिडमा की टीम ही देती है। बताया जाता है कि हिडमा एके-47 का शौकीन है। इसके लोगों ने सुकमा नक्सली मुठभेड़ में भी शहीद जवानों से एके-47 लूटे हैं।

इन बड़े हमलों में है उसका हाथ

हिडमा साल 1990 में नक्सली संगठन से जुड़ा था। कम वक्त में ही उसने संगठन में अपना इतना प्रभुत्व जमा लिया कि उसे सेंट्रल कमिटी का सदस्य बना दिया गया। हिडमा साल 1990 में नक्सली संगठन के साथ जुड़ा। लेकिन कुछ ही सालों में यह नक्सली संगठनों का एक बड़ा नाम बन गया। साल 2010 में ताड़मेटला में हुए हमले में CRPF के 76 जवानों की मौत में हिडमा कि अहम भूमिका थी। इसके बाद साल 2013 में हुए जीरम हमले में भी हिडमा की अहम भूमिका थी। इस हमले में कई बड़े कांग्रेसी नेताओं सहित 31 लोगों की मौत हो गई थी। साल 2017 में बुरकापाल में हुए हमले में भी हिडमा की अहम भूमिका बताई गई थी। इस हमले में 25 CRPF जवान शहीद हो गए थे।

इसलिए है सुरक्षाबलों की हिट लिस्ट में सबसे उपर

हिडमा का खात्मा बस्तर में नक्सलियों की जड़ हिला देगा, इसलिए वह सुरक्षाबलों की हिट लिस्ट में सबसे उपर है। ऐसा इसलिए कि हिडमा बस्तर का है और लोकल होने की वजह से इस इलाके में उसकी पकड़ बहुत मजबूत है। बस्तर के लोकल आदिवासी कैडर में वह सबसे अधिक लोकप्रिय है, क्योंकि संगठन के छत्तीसगढ़ जोन के ज्यादातर बड़े नक्सली नेता तेलंगाना के हैं जबकि हिडमा उन्हें उनके इलाके का अपना नेता लगता है। यहां वह नक्सिलयों का हीरो है। संगठन में उसका नाम सेंट्रल कमिटी के जनरल सेक्रेट्री बासवराजू से भी ज्यादा लोकप्रिय है। पुलिस के मुताबिक, बस्तर के आदिवासी नक्सली कैडर संगठन की विचारधारा से कम बल्कि हिडमा से ज्यादा प्रभावित है। इसलिए हिडमा का खात्मा मतलब बस्तर से नक्सलियों की रीढ़ का टूट जाना।

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