वीर सावरकर जयंती: तेज, त्याग, तप और तर्क थी पहचान, इनकी प्रेरणा से नेताजी ने बनाई थी आजाद हिंद फौज

वीर सावरकर (Veer Savarkar) को ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। समुन्द्र के रास्ते उन्हें भारत लाया जा रहा था। वीर सावरकर का साहस था कि वो समुंद्र में कूद कर भाग निकले।

Veer Savarkar

Veer Savarkar Birth Anniversary

आज हम याद कर रहे हैं स्वातन्त्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) को। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वो नाम, जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने सबसे कड़ी सजा दी। सजा काले पानी की, वो भी एक नहीं दो बार, यानी 50 वर्षों के लिए। पूरे इतिहास में इतनी लंबी सजा किसी भी स्वतन्त्रता सेनानी या क्रांतिकारी को नहीं दी गई। आज इनकी जयंती है। इन्हें वीर सावरकर (Veer Savarkar) के नाम से जाना जाता है। वीर सावरकर एक महान विचारक, साहित्यकार, इतिहासकार और समाजसुधारक थे। सावरकर ने अखंड भारत का सपना देखा। वे छुआ-छुत और जाति भेद के  घोर विरोधी थे। उनकी पुस्तक ′भारत का प्रथम स्वतंत्रता समर 1857′ ने अंग्रेजों की जड़े हिला दी थी। अंग्रेजों के अंदर फिर से 1857 जैसी स्वन्त्रता संग्राम का डर समा गया। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने 1905 में स्वदेशी का नारा दे कर विदेशी कपड़ो की होली जलाई थी। सावकर ऐसे भारतीय थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी लंदन जा कर क्रांतिकारी आंदोलन को संगठित किया।

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विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar)  का जन्म 28 मई, 1983 को नासिक जिले के भंगुर गांव में हुआ था। पिता का नाम दामोदर और माता का नाम राधा बाई था। विनायक तीन भाई थे और इनकी एक बहन थी, मैना। तीनों भाई गणेश, विनायक और नारायण क्रांतिकारी थे। सावरकर (Veer Savarkar) बचपन से ही क्रांति की मशाल मन में जला चुके थे। चापेकर बंधुओं के बलिदान और लोकमान्य तिलक के बाद देश में गुस्से का माहौल था। उसी समय विनायक भी क्रांति की ज्वाला में धधक उठे। 1901 में एडवर्ड सप्तम का राज्याभिषेक हुआ जिसके विरोध में सबसे पहले वीर सावरकर ने आंदोलन किया और ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति की मांग की। सावरकर (Veer Savarkar) ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास की और कानून की पढ़ाई करने  जून 1906 में लंदन आ गए। लंदन में सावरकर भारतीय छात्रों में राष्ट्रधर्म की अलख जगाने लगे। वहां वे क्रांतिकारियों की टोली बनाने लगे। सावरकर युवाओं के प्रेरणास्रोत बन गए। लंदन में ही उन्होंने 1857 के संग्राम की स्वर्ण जयंती मनाई। लंदन में ऐसा पहली बार था जब भारतीय छात्र जो लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे सड़कों पर वंदे मातरम का बिल्ला लगा कर निकले।

भारतीय छात्रों में नई जागृति उत्पन्न हुई। वे भारतीय होने में गर्व महसूस करने लगे। जर्मनी में 1907 के राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस के अधिवेसन में मैडम कामा ने भारत का पहला झंडा फहराया। वीर सावरकर (Veer Savarkar) ने ही भारत का वो पहला झंडा बनाया था। लंदन में उनकी पुस्तक प्रथम स्वाधीनता समर 1857 छपने के लिए तैयार थी लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी किताब छपने से पहले ही प्रतिबंध कर दी। इस पुस्तक का पहला प्रकाशन गुप्त रूप से 1909 में हालैंड में हुआ। दूसरा लाला हरदयाल ने अमेरिका में, तीसरा संस्करण भगत सिंह और चौथा सुभाषचंद्र बोस ने छपवाया। इन किताबों पर किसी लेखक का नाम नहीं होता था। इस पुस्तक को छपने नहीं देने का एकमात्र कारण था, अंग्रेजों के अंदर ये डर हो गया था कि इस किताब में 1857 के क्रांति को ऐसे दर्शाया गया था जिसे पढ़ कर फिर से वैसी क्रांति आरम्भ हो सकती थी। इन सब के बीच 1909 में वीर सावरकर ने लॉ की परीक्षा पास कर ली लेकिन ब्रिटश राजभक्त की शपथ ना लेने के कारण उन्हें डिग्री से हाथ धोना पड़ा।

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13 मार्च, 1910 को ब्रिटिश सरकार ने सावरकर (Veer Savarkar) को ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। समुन्द्र के रास्ते उन्हें भारत लाया जा रहा था। वीर सावरकर का साहस था कि वो समुंद्र में कूद कर भाग निकले। बाद में फ्रांस के समुन्द्र तट पर उन्हें फिर पकड़ लिया गया। उनका मुकदमा अंतरराष्ट्रीय अदालत हेग में लड़ा गया। ये पहला मौका था जब किसी क्रांतिकारी का मुकदमा अंतरराष्ट्रीय अदालत में लड़ा गया था। विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar)  को दो जन्मों की कठोर कारावास की सजा मिली। कोर्ट में ब्रिटिश अधिकारी ने पूछा कि दो जन्मों का कारावास है यानी 50 वर्षों का सह पाओगे? वीर सावरकर ने जवाब में सवाल किया- तुम्हारी सत्त्ता तब तक रहेगी? इतिहास में ये सजा पहली और अनोखी थी। सावरकर को काला पानी के सजा के तहत अंडमान के सेलुलर जेल में रखा गया था। उन्हें जेल में खतरनाक श्रेणी में रखा गया था। उन्हें कोल्हू में बैल की जगह जोता जाता। इस घोर यातना के बाद भी सावरकर के साहस और मातृभूमि के लिए कुछ करने की तड़प काम न हुई। उन्होंने पत्थर के टुकड़ों से जेल की दीवार पर दस हजार पंक्तियों की रचना की और उसे कण्ठस्थ भी किया।

1920 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। जनवरी, 1921 में अंडमान से भारत आने पर सरकार ने उन्हें रत्नागिरि में नजरबंद कर दिया। चुकी ब्रिटिश सरकार पर दबाव था, इसलिए वह उन्हें अंडमान में रख न सकी। लेकिन वो वीर सावरकर (Veer Savarkar) से डरे हुए थे। इसलिए उन्हें खुला नहीं छोड़ना चाहते थे। उन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया ताकि वो राजनैतिक गतिविधियों में हिस्सा न ले सकें। जनता से सामने भाषण नही दें, अखबारों में लेख न लिख पाएं। 10 मई, 1937 को सावरकर की नजरबन्दी समाप्त कर दी गई। अब सावरकर पूरी तरह आजाद थ। उनके  विचार अब खुल कर सामने आने लगे। 30 दिसम्बर, 1937 को उन्हें हिन्दू महासभा का अध्यक्ष चुना गया। वे देश भर में घूम-घूम कर लोगों को क्रांति के लिए प्रेरित करने लगे। उन्होंने आजादी के लिए अहिंसा के मार्ग का खुल कर विरोध किया। उनका मानना था कि आजादी बिना हथियार के नहीं मिल सकती। देश आजाद हुआ सावरकर सक्रिय राजनीति में नहीं आये लेकिन राजनीति के प्रति अपने विचार खुल कर रखते। गांधी जी के विचारों से वो सहमत नहीं थे।

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के छठवें दिन विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar)  को गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ़्तार कर लिया गया था। हांलाकि उन्हें फ़रवरी 1949 में बरी कर दिया गया था। गिरफ्तारी के बाद उनको बम्बई के आर्थर रोड जेल में रखा गया। सावरकर जी (Veer Savarkar) समय-समय पर भारत सरकार के नीतियों पर अपने विचार रखते रहे । आजदी के बाद भी उनको 2 बार जेल जाना पड़ा।सावरकर ने कहा था कि ईश्वर सर्वोपरि है। उसके बाद मनुष्य का स्थान है और फिर पशु हैं। गाय के बारे में लिखा गया है कि गाय एक ऐसा पशु है जिसके पास मूर्ख से मूर्ख मनुष्य के बराबर भी बुद्धि नहीं होती। गाय को दैवीय कहते हुए मनुष्य से इसे ऊपर मानना अपमान है। हालांकि सावरकर ने गाय के प्रति खुद को समर्पित भी कहा, लेकिन इसके पीछे उन्होंने गाय के उपयोगी होने का तर्क दिया। उन्होंने कहा कि अगर गाय का सर्वोत्तम उपयोग करना है तो उसकी अच्छी देखभाल करनी पड़ेगी।

26 फरवरी, 1966 को राष्ट्र का यह दैदीप्यमान ज्योति अनंत में विलीन हो गया। अपने मृत्यु से दो दिन पहले उन्होंने लिखा – ″मैंने अब अपना हर कर्तव्य पूरा कर लिया है। ऐ मृत्यु ! अब यह जीवन तुम्हारे लिए ही शेष है। तुम इसे चाहे जब खुशी से ले जाओ।″ इसे एक विडंबना ही कहा जाएगा कि कभी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ के सदस्य न रहे वीर सावरकर का नाम संघ परिवार में बहुत इज़्ज़त और सम्मान के साथ लिया जाता है। 1966 में इंदिरा गांधी ने सावरकर (Veer Savarkar) के बलिदान, देशभक्ति और साहस को सलाम किया था। 1970 में इंदिरा सरकार ने सावरकर के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। इतना ही नहीं, बताया जाता है कि इंदिरा ने मुंबई में वीर सावरकर स्मारक के लिए 11 हजार की सहयोग राशि भी दी थी।

1- विनायक दामोदर सावरकर दुनिया के अकेले ऐसे इंसान थे जिन्हें 2 बार आजीवन कारावास की सजा मिली, जिसे सावरकर ने पूरा किया और उसके बाद राष्ट्र जीवन में सक्रिय हुए।

2- सावरकर ने स्नातक किया किया था स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनकी उपाधि अंग्रेज सरकार ने वापस ले ली।

3- वीर सावरकर ने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से साफ मना कर दिया जिसके कारण उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।

4- वीर सावरकर को पहला राजनीतिज्ञ माना जाता है जिन्होंने विदेशी कपड़ो की होली जलाई थी।

5- वे विश्व के पहले ऐसे लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को 2 देशों ने प्रकाशन के पहले ही रोक दिया और हमेशा के लिए प्रतिबंध का फैसला सुना दिया।

6- वे पहले क्रान्तिकारी थे जिन्होंने सजा समाप्त करने के बाद देश में फैली अस्पृश्यता समेंत कई कुरीतियों को दूर किया।

7- वीर सावरकर जब अंडमान निकोबार के जेल में बन्द थे तो वह दीवारों पर कविताएं लिखा करते थे। 10 हजार से ज्यादा पक्तियों को तो उन्होंने जेल से छूटने के बाद दोबारा लिखा।

8- सावरकर ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रध्वज के बीच धर्म चक्र लगाने का सुधाव दिया था जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार किया।

9- वीर सावरकर द्वारा लिखी द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 बहुत मशहूर हुई। अंग्रेजी हुकूमत को परेशान कर दिया था।

10- सावरकर पहले भारतीय बन्दी थे जिन्हें फ्रांस में बन्दी बनाया गया, इस कारण इनका मामला हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पहुंच गया।

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