इंटरनेशनल कानूनों की खुलकर धज्जियां उड़ाता है तालिबान, कम उम्र के बच्चों के साथ करता है जानवरों जैसा व्यवहार

तालिबान ने लड़ाकों को जरूरी शिक्षा देने की बजाय कच्ची उम्र से ही खून-खराबे का पाठ पढ़ाया है। इस बात की पुष्टि ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की रिपोर्ट भी करती है।

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मानवाधिकार संगठन का दावा है कि अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों को ताक पर रख कर बच्चों को अपनी सेना में शामिल किया है।

अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा करने में तालिबान (Taliban) के लड़ाकों की सबसे बड़ी भूमिका है। तालिबान ने इन लड़ाकों को जरूरी शिक्षा देने की बजाय कच्ची उम्र से ही खून-खराबे का पाठ पढ़ाया है। इस बात की पुष्टि ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की रिपोर्ट भी करती है।

मानवाधिकार संगठन का दावा है कि अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों को ताक पर रख कर बच्चों को अपनी सेना में शामिल किया है। आतंकी गुट बड़ी संख्या में बच्चों को अपनी सेना में शामिल कर चुका है। बता दें कि 18 साल से कम उम्र के लड़ाकों की तैनाती अफगानिस्तान में लागू अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करती है और 15 साल से कम उम्र के बच्चों से जुड़े मामलों में युद्ध अपराध है।

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अफगानिस्तान में कुंदुज प्रांत के चहरदरा जिले के 15 साल के कासिम को तालिबान ने अपनी सेना में जबरन भर्ती कर लिया। उस वक्त वह एक स्थानीय मदरसे में पढ़ रहा था। उसके मां-बाप ने तालिबान (Taliban) के लोगों से संपर्क किया और कहा कि कासिम को आगे पढ़ने दें, जब उसकी उम्र सेना में भर्ती होने की हो जाएगी तब वे उसे भेज देंगे। पर तालिबान ने उनकी एक न सुनी।

इसी तरह अहमद जब 14 साल का था, तब तालिबान ने उसे भी जबरदस्ती अपनी सेना में भर्ती कर लिया। अहमद चाहरदरा जिले के एक व्यापारी का बेटा है। उसकी मां ने तालिबानी कमांडर से उसे लौटाने के लिए मिन्नतें की। पर उन्होंने अहमद को वापस लौटाने से मना कर दिया।

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यह सिर्फ कासिम और अहमद की कहानी नहीं है, बल्कि उनके जैसे सैकड़ों किशोरों की कहानी है, जिन्हें तालिबान ने जबरन अपनी सेना में भर्ती किया है। अफगानिस्तान के कुंदुज प्रांत में तालिबान ने 13 से 17 वर्ष की उम्र के बच्चों को सैन्य प्रशिक्षण देने के लिए मदरसों या इस्लामी धार्मिक स्कूलों का इस्तेमाल किया है।

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्च बताती है कि तालिबान बच्चों को इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) यानी विस्फोटक तैयार करने और उसे लगाने सहित तमाम सैन्य अभियानों के लिए ट्रेनिंग देकर तैनात करता रहा है। तालिबान कमांडरों ने मदरसों का इस्तेमाल बच्चों के मिलिट्री ट्रेनिंग देने के लिए भी किया।

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तालिबान 1990 के दशक से बच्चों को लड़ाकों के रूप में भर्ती और उनका इस्तेमाल करता आ रहा है। कुंदुज के निवासियों ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि तालिबान ने 2015 में अकेले चाहरदरा जिले से 100 से अधिक बच्चों की भर्ती की और उन्हें तैनात किया।

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तालिबान द्वारा भर्ती किए गए लड़कों के रिश्तेदारों के अनुसार, जब वे 13 वर्ष के होते हैं, तब तक तालिबान प्रशिक्षित बच्चे सैन्य कौशल सीख चुके होते हैं। इसमें हथियारों का इस्तेमाल, विस्फोटक बनाना, लगाना शामिल है। इसके बाद तालिबान शिक्षक इन प्रशिक्षित बाल सैनिकों को विशिष्ट तालिबान गुटों से मिलवाते हैं।

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