अफगानिस्तान में तालिबान का पूरी तरह कब्जा, इन नेताओं के हाथों में होगी कमान

तालिबान के पूरी तरह कब्जे के बाद अफगानिस्तान पर अब तालिबानी शासन करेंगे। तालिबान (Taliban) की शासन व्यवस्था पांच लेवल की है।

Taliban

File Photo

तालिबान (Taliban) की शासन व्यवस्था पांच लेवल की है- सुप्रीम लीडर, उप नेता, शूरा काउंसिल, मंत्रालय और प्रशासनिक स्तर। इसमें सबसे निचले स्तर पर गवर्नर और स्थानीय सैन्य कमांडर आते हैं।

अफगानिस्तान (Afghanistan) से आखिरी अमेरिकी सैनिक के जाते ही वहां पूरी तरह से तालिबान (Taliban) का कब्जा हो गया है। तालिबान के कब्जे के बाद से अफगानिस्तान में हिंसा जारी है। लोग देश छोड़ कर भाग रहे हैं। पूरे देश में अफरातफरी का माहौल है। सभी देशों ने अपने नागरिकों को वापस बुला लिया है और वहां अपने-अपने दूतावास बंद कर दिए हैं।

तालिबान के पूरी तरह कब्जे के बाद अफगानिस्तान पर अब तालिबानी शासन करेंगे। तालिबान (Taliban) की शासन व्यवस्था पांच लेवल की है- सुप्रीम लीडर, उप नेता, शूरा काउंसिल, मंत्रालय और प्रशासनिक स्तर। इसमें सबसे निचले स्तर पर गवर्नर और स्थानीय सैन्य कमांडर आते हैं। यहां जानते हैं उन तालिबानी नेताओं के बारे में जो अफगानिस्तान को चलाएंगे।

मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा

मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा तालिबान (Taliban) का सबसे बड़ा नेता है। हिबतुल्लाह अखुंदजादा के पद का अमीर अल-मुमिनीन नाम है। इसका मतलब होता है, तालिबान के वफादारों का कमांडर।

बता दें कि हिबतुल्लाह अखुंदजादा पश्तून है। उसके पूर्ववर्ती मुल्ला उमर और मुल्ला मंसूर भी पश्तून ही थे। इन दोनों नेताओं की तरह हिबतुल्लाह अखुंदजादा भी अफगानिस्तान के कंधार से है। हिबतुल्लाह अखुंदजादा पश्तून नूरजई कबीला से ताल्लुक रखता है।

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हिबतुल्लाह अखुंदजादा, तालिबान की काउंसिल रहबरी शूरा का प्रमुख है। ये काउंसिल पाकिस्तान के बलूचिस्तान के क्वेटा शहर से काम करती है। इसे ‘क्वेटा शूरा’ के नाम से भी जाना जाता है। क्वेटा शूरा की मंजूरी मिलने के बाद ही कोई फैसला मान्य होता है।

हिबतुल्लाह अखुंदजादा, रहबरी शूरा के जरिए अफगानिस्तान पर शासन करेगा। उसकी मदद करने करने के लिए तीन उप नेता होंगे। ये तीन उप नेता मुल्ला गनी बरादर, मुल्ला याकूब और सिराजुद्दीन हक्कानी हैं। बता दें कि रहबरी शूरा के तहत 17 आयोग हैं, जो तालिबान की सरकार चलाने में मदद करते हैं। ये मंत्रालय की तरह है। ये सैन्य, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य मामलों के लिए नीतियां निर्धारित करते हैं।

मुल्ला गनी बरादर

मुल्ला बरादर फिलहाल तालिबान के राजनीतिक मामलों का प्रमुख है। अभी तक वह कतर की राजधानी दोहा से काम करता रहा है। अमेरिका के साथ शांति समझौते को लेकर दोहा में वार्ता हुई थी। इस वार्ता का नेतृत्व बरादर ने ही किया था। अमेरिका-तालिबान वार्ता से पहले उसे पाकिस्तान की जेल से 8 साल बाद रिहा किया गया था।

मुल्ला बरादर पश्तून है और सादोजाई कबीले से आता है। यह पोपलजई कबीले की एक शाखा है। मुल्ला बरादर का नाम पहले अब्दुल गनी अखुंद था। मुल्ला उमर ने उसे बरादर उपनाम दिया था। मुल्ला बरादर तालिबान का सह-संस्थापक है। उसने मुल्ला उमर के लिए सहयोगी के तौर पर काम किया था।

मुल्ला मुहम्मद याकूब

मुहम्मद याकूब, मुल्ला उमर का बेटा है और उसे तालिबान के भावी सुप्रीम नेता के तौर पर देखा जाता है। साल 2016 में उन्हें तालिबान का नेतृत्व करने का प्रस्ताव भी दिया गया था, लेकिन उसने अपनी कम उम्र का हवाला देते हुए इनकार कर दिया था। याकूब ने इस पद के लिए हिबतुल्लाह अखुंदजादा का नाम आगे किया था।

अभी उसकी उम्र 30-31 साल के बीच है।वह तालिबान का सैन्य कमांडर है। तालिबान के वैचारिक और धार्मिक मामलों की जिम्मेदारी भी याकूब पर ही है। तालिबान में याकूब की छवि उदार शख्स के रूप में है। अमेरिका से समझौते की शर्तों को लागू करने का श्रेय भी याकूब को ही दिया जाता है। तालिबान ने वादा किया था कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के वक्त तालिबान उन्हें निशाना नहीं बनाएगा।

सिराजुद्दीन हक्कानी

सिराजुद्दीन, हक्कानी नेटवर्क का नेता है। कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने हक्कानी नेटवर्क को आतंकी संगठन घोषित किया है। अमेरिकी सरकार ने सिराजुद्दीन पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है। हक्कानी भी पश्तून ही है। उसका बचपन पाकिस्तान में बीता है।

सिराजुद्दीन हक्कानी जरदन कबीले से है। इस कबीले का संबंध अफगानिस्तान के खोस्त प्रांत से रहा है। तालिबान में सिराजुद्दीन हक्कानी बगावत से जुड़े मामलों को देखता है। तालिबान शासन के खिलाफ विरोध की आवाजों से दबाना उसकी जिम्मेदारी है।

इसके अलावा कुछ और नेता हैं जो अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) के शासन करने में अहम भूमिका निभाएंगे।

मुल्ला अब्दुल हकीम इशाकजाई

मुल्ला अब्दुल हकीम इशाकजाई कट्टरपंथी मौलवी है, जो क्वेटा के इशाकबाद इलाके में एक मदरसा चलाता है। इशाकजई अमेरिका के साथ शांति वार्ता के लिए बनाई गई तालिबान की 21 सदस्यीय टीम का हिस्सा था। इशाकजई भी पश्तून है और अफगानिस्तान के कंधार प्रांत से है। उसे कई लोग ‘पश्तूनों का मौलवी’ भी कहते है।

इशाकजई ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वां प्रांत के दारुल उलूम हक्कानिया से स्नातक की पढ़ाई की है। कट्टरपंथ इस्लाम की शिक्षा और तालिबान लड़ाकों को तैयार करने की वजह से इसे ‘जिहादी यूनिवर्सिटी’ भी कहा जाता है। मुल्ला मोहम्मद उमर और जलालुद्दीन हक्कानी भी यहां के छात्र रहे हैं।

इशाकजई तालिबान के हर कदम की इस्लाम के नजरिए से व्याख्या करता है। अब्दुल हकीम तालिबान की न्यायिक व्यवस्था की जिम्मेदारी भी संभालता है। अब्दुल हकीम को कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां तालिबान, अल-कायदा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के बीच की कड़ी भी मानती हैं।

गैर-पश्तून तालिबानी नेता

तालिबान के शीर्ष नेतृत्व में पश्तूनों का ही दबदबा है लेकिन कई नेता दूसरे समुदाय से भी हैं। तालिबान की सरकार में गवर्नर रह चुका कारी दिन मोहम्मद ताजिक है जबकि मौलवी अब्दुल सलाम हनाफी उज्बेक है। ये दोनों दोहा में अमेरिका के साथ वार्ता करने वाले दल का भी हिस्सा थे।

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