क्या है तब्लीगी जमात, कैसे बना यह कोरोना वायरस का ‘सुपर स्प्रेडर’?

तब्लीगी जमात एक इस्लामिक मिशनरी है। करीब 75 साल पहले 1927 में मेवात के मौलाना मौलाना इलियास साहब ने मरकज की स्थापना की थी।

Tablighi Jammat, Corona Virus

तब्लीगी जमात के मरकज में 67 देशों के लोग इकट्ठा हुए थे।

तब्लीगी जमात (Tablighi Jammat) भारत में कोरोना वायरस का सुपर स्प्रेडर साबित होता जा रहा है। दिल्ली के निजामुद्दीन स्थिति तब्लीगी जमात के मरकज में 67 देशों से करीब 2100 लोग आए थे। इसके अलावा देशभर के अलग-अलग इलाकों से हजारों लोग भी पहुंचे थे। मरकज के निकल कर ये लोग अलग-अलग जगहों पर पहुंचे। इनके साथ ही कोरोना वायरस (Covid-19) का संक्रमण भी देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंच गया। ऐसे में ये जानना जरूरी हो गया है कि आखिर तब्लीगी जमात (Tablighi Jammat) क्या है। ये करता क्या है। मरकज के क्या मायने हैं।

Tablighi Jammat, Corona Virus

मरकज़ का मतलब होता है सेंटर यानी केंद्र। तबलीग का मतलब है अल्लाह और कुरान, हदीस की बात दूसरों तक पहुंचाना। वहीं जमात का मतलब है समूह। तबलीगी मरकज का मतलब इस्लाम की बात दूसरे लोगों तक पहुंचाने का केंद्र।

क्या है तब्लीगी जमात?

तब्लीगी जमात (Tablighi Jammat) एक इस्लामिक मिशनरी है। करीब 75 साल पहले 1927 में मेवात के मौलाना मौलाना इलियास साहब ने मरकज की स्थापना की थी। इस मरकज का मकसद था भारत के अनपढ़ मुसलमानों में बढ़ती जहालत को खत्म करके उनको इस्लाम के बताए गए रास्ते और नमाज की तरफ लाना। इन कामों से मरकज़ को इतनी लोकप्रियता मिली कि वह पूरी दुनिया में जाना जाने लगा। आज की तारीख में तब्लीगी जमात की पहुंच दुनिया के 150 देशों में है। इसका हेडक्वॉर्टर दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित उसी बिल्डिंग में है, जहां 13 से 15 मार्च तक बैठक हुई थी।

तबलीगी जमात (Tablighi Jammat) से जुड़े लोग पूरी दुनिया में इस्लाम के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं। 10, 20, 30 या इससे ज्यादा लोगों की जमातें (समूह) देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से यहां पहुंचते हैं और फिर यहां से उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजा जाता है जहां की मस्जिदों में ये लोग ठहरते हैं और वहां के लोकल मुसलमानों से नमाज पढ़ने और इस्लाम की दूसरी शिक्षाओं पर अमल करने की गुजारिश करते हैं।

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मरकज में अमीर यानी हेड की हिदायत पर देश और विदेश के कोने-कोने में लोगों के समूह जिसको जमात कहा जाता है, मस्जिदों में जा-जाकर इस्लाम की बातों को लोगों तक पहुंचाने का काम करने लगे। इसमें इलाक़े के हिसाब से एक कमेटी बना देते हैं। वे अपने इलाक़े में गश्त ( भ्रमण) करते हुए लोगों से बुराई को छोड़ने और नेकी की तरफ़ चलने के लिए कहती हैं।

फिर वे लोग इस तरह नए सदस्यों को जोड़ते हैं और उनको अपनी कमेटी के जरिए मस्जिद से जाने वाली जमात में शरीक होने के लिए कहा जाता है। ये जमात तीन दिन से लेकर चालीस दिन या और उससे अधिक दिनों के लिए होती है। इलाके की मस्जिद से बनी कमेटी अपनी लिस्ट जिले के मुख्य केन्द्र को देती हैं और फिर वह मरकज़ में भेज दी जाती है।

फिर ये लोग अपनी मस्जिदों से ग्रुप यानी जमात की शक्ल में जिले की मरकज़ में जाते हैं जहां से ये तय होता है कि किस जमात को किस इलाके में जाना है। हर जमात का अमीर (हेड) बना दिया जाता है जिसके आदेश को सभी सदस्यों को मानना पड़ता है। जिले के मरकज़ से लेकर राज्य के मरकज़ और उसके अलावा देश के निज़ामुद्दीन स्थित मुख्य मरकज़ से संचालन होता है।

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क्या है स्प्रेडर और सुपर स्प्रेडर?

स्प्रेडर उस व्यक्ति को कहते हैं, जो वायरस को फैलाता है। अब बात सुपर स्प्रेडर की। फिलहाल, कोरोना की सुपर स्प्रेडर का दर्जा दक्षिण कोरिया की एक महिला को दिया गया है। पेशेंट 31 के नाम से मशहूर इस महिला पर जान-बूझकर कोरोना का संक्रमण फैलाने का आरोप है। खास ये है कि इस महिला पर हत्या का केस दर्ज किया गया है क्योंकि इसके चलते हजारों लोगों तक संक्रमण फैला है।

कहां से आया सुपर स्प्रेडर?

सबसे पहले ‘सुपर स्प्रेडर’ टर्म 2003 में सामने आया थी। उस वक़्त सार्स के प्रकोप के दौरान ऐसे ही एक व्यक्ति की खोज हुई थी। उस व्यक्ति ने भी कई लोगों को बीमार किया था। बाद में डब्लूएचओ ने इस मामले और इस व्यक्ति का संज्ञान लिया और इसे सुपर स्प्रेडर की संज्ञा दी।

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