ईरान से जारी तनाव के कारण सऊदी ने पाक से किया सीक्रेट परमाणु डील!

Saudi Arabia

विद्वानों ने अक्सर कहा है कि कभी-कभी खतरे की आशंका खुद खतरे से भी बड़ी दिखाई देने लगती है। मौजूदा समय में ये खतरा जुड़ा है सऊदी अरब (Saudi Arabia) में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और इमरान खान के बीच हुए हालिया मुलाकात से।

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पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान रियाद में अमेरिका की अपील पर ईरान और सऊदी अरब (Saudi Arabia) के बीच जारी तनाव में मध्यस्थता करने पहुंचे थे। लेकिन असलियत में इस मुलाकात में दोनों के बीच कुछ और ही खिचड़ी पकी है। खबर है कि ईरान से बढ़ते तनाव के बीच दोनों नेताओं में परमाणु हथियारों को लेकर सीक्रेट डील हुई है। डील के मुताबिक अगर सऊदी को ईरान के खिलाफ लड़ाई में परमाणु बम की जरूरत महसूस होती है, तो पाकिस्तान उसे अपने परमाणु हथियार मुहैया करवाएगा। हालांकि दोनों तरफ से इस खबर की न तो कोई औपचारिक पुष्टि हुई है, न खंडन। इसके बावजूद खबर को खारिज करना आसान भी नहीं है।

‘‘इस्लामिक बम’ का विचार सऊदी-पाकिस्तान की दोस्ती का ही नतीजा है। मध्य-पूर्व के मौजूदा हालात इस मान्यता को और मजबूती दे रहे हैं। ईरान और सऊदी के बीच शिया-सुन्नी विवाद को लेकर लंबे समय से अघोषित युद्ध छिड़ा हुआ है। परमाणु हथियारों को लेकर सऊदी की ख्वाहिश इन्हीं हालात का परिणाम है। इसे ईरान के परमाणु कार्यक्रम के काट के संदर्भ में लिया जाता है। परमाणु शक्ति बनने के लिए बेकरार नये देशों में ईरान भी अहम है। लेकिन अमेरिका ने पहले से ही ईरान की घेराबंदी कर दी है। उसके लिए आसान नहीं है कि वो खुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश साबित कर सके। सीरिया में वर्चस्व को लेकर सऊदी अरब (Saudi Arabia) और ईरान के बीच संघर्ष है तो इन्हीं देशों के कंधे पर बंदूक रखकर अमेरिका और रूस भी आमने-सामने हैं। रूस का समर्थन अगर ईरान को जारी रहता है तो ईरान भी अमेरिका समेत अपने दुश्मन देशों को चौंका सकता है। ठीक उसी तरह जैसे सोवियत संघ के विघटन के करीब डेढ़ दशक बाद 2006 में उत्तर कोरिया ने किया था।

ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पाकिस्तान की आर्थिक मदद करते रहे सऊदी अरब (Saudi Arabia) को परमाणु बम हाथ लग जाए। माना जा रहा है कि 1980 के दशक में पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल जिया उल हक ने सऊदी के राजा के समक्ष अनाधिकारिक रूप से कह दिया था, ‘‘हमारी उपलब्धि आपकी है’। यही सहयोग बेनजीर भुट्टो से लेकर नवाज शरीफ तक ने आगे बढ़ाया। छगाई परमाणु परीक्षण के वक्त भी पाकिस्तान ने सऊदी अरब (Saudi Arabia) को भरोसे में लिया था। परमाणु परीक्षण के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सऊदी अरब (Saudi Arabia) को सहयोग के लिए धन्यवाद भी दिया था।

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इस डील को लेकर ऐसी अटकलें भी हैं कि सऊदी ने अपने तेल के कुओं पर हुए हालिया हमलों के जवाब में पाकिस्तान के साथ मिलकर जान-बूझकर ऐसी खबरें फैलाई हों। दरअसल, धन से मालामाल होने के बावजूद सऊदी की सैन्य ताकत काफी बदहाल है। यहां के शाही परिवार की सुरक्षा दशकों से पाकिस्तानी सेना के हवाले है। इसके बदले में पाकिस्तान को सऊदी अरब (Saudi Arabia) से समय-समय पर भारी-भरकम आर्थिक मदद की गारंटी मिली हुई है जो उसकी कंगाल हो रही अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी का काम करती है। इस साल की शुरुआत में सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर का जो निवेश किया है वो वेंटिलेटर पर पहुंच चुकी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए नई जिंदगी से कम नहीं है।

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इस डील की आशंकाओं ने दुनिया के साथ-साथ भारत को भी सतर्क किया है। माना जा रहा है कि मध्यस्थता की नकाब के पीछे पाकिस्तान ने दो नावों पर सवारी की है। कश्मीर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और सऊदी अरब (Saudi Arabia) न केवल भारत के साथ खड़े दिखे हैं, बल्कि पाकिस्तान के रवैये पर दोनों ने उसे फटकार भी लगाई है। इस मुद्दे पर मलेशिया और तुर्की को छोड़कर बाकी इस्लामी देशों ने भी पाकिस्तान से मुंह मोड़ लिया। ऐसे में ईरान और सऊदी अरब (Saudi Arabia) के बीच मध्यस्थता की अमेरिका की अपील पाकिस्तान के लिए अपनी खोई साख दोबारा हासिल करने का बेहतरीन मौका था जिसे उसने दोनों हाथों से लपका है।

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मध्यस्थता के लिए मध्य-पूर्व पहुंचकर इमरान ने दुनिया के चौधरी अमेरिका को और परमाणु कार्यक्रम साझा कर मुस्लिम देशों के खलीफा सऊदी अरब (Saudi Arabia) को एक साथ साधने का दांव खेला है। लेकिन पाकिस्तान का दांव काम करेगा इस पर बड़ा संदेह है। दुनिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बढ़ते कद के बीच अमेरिका से भारत की नजदीकी और सऊदी अरब (Saudi Arabia) के भारत में बड़े आर्थिक हित इमरान के अरमान पूरे नहीं होने देंगे। द्विपक्षीय राजनीतिक संबंधों में प्रधानमंत्री मोदी की पर्सनल टच वाली रणनीति के कारण सामरिक मजबूरियों के बावजूद अमेरिका आज पाकिस्तान के बजाय भारत के ज्यादा नजदीक है और जिस सऊदी अरब (Saudi Arabia) के लिए पाकिस्तान सच्ची दोस्ती का दम भरता है, उससे तो भारत ने तेल भी ले लिया और विश्व मंच पर पाकिस्तान को झटका भी दिलवा दिया।

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खाड़ी देशों को लेकर पाकिस्तान की विदेश नीति में सेंधमारी की शुरुआत साल 2016 में ही हो गई थी जब प्रधानमंत्री मोदी पहली बार सऊदी दौरे पर गए थे। इस दौरे में सऊदी ने न केवल प्रधानमंत्री को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा, बल्कि दोनों देशों के बीच के रिश्ते सामरिक भागीदारी के अलग ही स्तर पर पहुंच गए। अगर पाकिस्तान सऊदी को सैन्य बल से सुरक्षा देता है तो भारत ने उसे आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराकर इसकी बिल्कुल सटीक काट ढूंढ ली। पिछले पांच साल में प्रधानमंत्री मोदी की मजबूत और स्पष्ट राजनीतिक सोच से कई खाड़ी देश उनके मुरीद हो गए हैं। मोदी सरकार ने इन देशों के हितों के साथ भारत के हितों को जोड़कर उनका राजनीतिक भविष्य मजबूत किया है। खाड़ी देशों में भारत के बढ़ते दबदबे और मुस्लिम देशों से नजदीकियां पाकिस्तान की आंखों में खटक रही हैं। ऐसे में सऊदी से पाकिस्तान की कथित डील पर भारत को सतर्क रहने की जरूरत है।

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पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। गौर करने वाली बात है कि जिन देशों को परमाणु तकनीक लीक होने का अंदेशा है, वहां सत्ता एक ही व्यक्ति में केंद्रित है और इन राष्ट्र प्रमुखों के पास असीमित अधिकार हैं जो जरूरत पड़ने पर इस तकनीक का दुरुपयोग भी कर सकते हैं। उत्तर कोरिया का शासक किम जोंग उन परमाणु ताकत हासिल करने के बाद किस तरह बेलगाम हुआ है, ये किसी से छिपा नहीं है। दिसम्बर में उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर उसकी अमेरिका से मुलाकात होनी है। उससे पहले उत्तर कोरिया के माउंट पाएक्टू पर सफेद घोड़े पर सवार उसकी तस्वीर पूरी दुनिया को किसी अनहोनी की आशंका से डरा रही है, क्योंकि उत्तर कोरिया में वहां के शासकों के बड़े फैसले लेने से पहले माउंट पाएक्टू जाने की पुरानी परंपरा रही है। सऊदी से पाकिस्तान की कथित डील को भी इसी नजरिये से देखना होगा क्योंकि अपने राजनीतिक हित साधने के लिए उसने एक बार फिर गैर-जिम्मेदारी दिखाते हुए पूरी दुनिया के अस्तित्व को खतरे में डालने की हिमाकत की है।

 

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