Republic Day Parade 2021: गणतंत्र दिवस परेड में 18वीं बार नजर आएगा 61 ‘घुड़सवार रेजिमेंट’ का खास घोड़ा ‘रियो’

इस बार गणतंत्र दिवस की परेड (Republic Day Parade 2021) में 61 ‘घुड़सवार रेजिमेंट’ का खास घोड़ा ‘रियो’ (Rio) 18वीं बार नजर आएगा। रियो चार साल की उम्र से परेड में हिस्सा ले रहा है।

Rio

फाइल फोटो।

कैप्टन दीपांशु श्योराण ने कहा कि आधिकारिक वर्दी में राजपथ पर घुड़सवारी करना अपने आप में एक शानदार और सुखद अनुभव है और फिर ‘रियो’ (Rio) पर सवार होना इसे अधिक खास बना देता है।

इस बार गणतंत्र दिवस की परेड (Republic Day Parade 2021) में 61 ‘घुड़सवार रेजिमेंट’ का खास घोड़ा ‘रियो’ (Rio) 18वीं बार नजर आएगा। रियो चार साल की उम्र से परेड में हिस्सा ले रहा है। कैप्टन दीपांशु श्योराण के अनुसार, भारत में जन्में हनोवरियन नस्ल के इस घोड़े की उम्र 22 साल है। इस साल तीसरी बार वह दुनिया के एकमात्र सेवारत घुड़सवार रेजिमेंट के दल का नेतृत्व करेगा।

दीपांशु श्योराण ने कहा, “रियो (Rio) बेहद खास घोड़ा है। वह कमांडर की बात समझता है। यह बेहद गर्व की बात है कि इस गणतंत्र दिवस पर वह 18वीं बार राजपथ पर 61 ‘घुड़सवार रेजिमेंट’ के एक सदस्य के तौर पर नजर आएगा। 15वीं बार उसपर दल के कमांडर सवार होंगे।”

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उत्तराखंड के काशीपुर के रहने वाले 27 साल के अधिकारी श्योराण ने कहा कि आधिकारिक वर्दी में राजपथ पर घुड़सवारी करना अपने आप में एक शानदार और सुखद अनुभव है और फिर ‘रियो’ (Rio) पर सवार होना इसे अधिक खास बना देता है।

श्योराण ने कहा, “रियो आधिकारिक समारोह के लिए प्रशिक्षित है और हम उसका विशेष ध्यान रखते हैं। वह हमारी बात सुनता है और उसका पूरी तरह पालन करता है।” अपने परिवार से सशस्त्र बलों में चौथी पीढ़ी के सदस्य श्योराण, सेना में रेजिमेंट की खास स्थान की सराहना करते हैं, जिसे वह देश की सेना के ‘अतीत और वर्तमान के बीच की कड़ी’ भी मानते हैं।

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कोविड-19 के मद्देजनर तैयारी करने में परेशानी का सामना करने के सवाल पर उन्होंने कहा, “हां, यकीनन यह बेहद चुनौतीपूर्ण था। इस वजह से घोड़ों की संख्या भी कम करके 43 कर दी गई है।” गौरतलब है कि श्योराण 2018 और फिर 2020 में भी सैन्य दल की अगुवाई कर चुके हैं।

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बता दें कि साल 1953 में स्थापित की गई जयपुर स्थित ’61 घुड़सवार रेजिमेंट’ स्थापना के बाद से ही गणतंत्र दिवस परेड में आकर्षण का केन्द्र बनी रही है। मैसूर लांसर्स, जोधपुर लांसर्स और ग्वालियर लांसर्स सहित छह पूर्ववर्ती शाही सेनाओं की इकाइयों को मिलाकर इसकी स्थापना की गई थी। साल 1918 में रेजिमेंट के पूर्वजों ने ब्रिटिश सशस्त्र बलों के साथ इजराइल में हैफा की महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी थी।

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