राजा राम मोहन राय: जिन्होंने किया सती प्रथा और बाल विवाह का अंत, विधवा विवाह का किया समर्थन

राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) ने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया, वह था सती प्रथा को समाप्त करवाना। जब वह छोटे थे तभी उनके बड़े भाई की मृत्यु हो गई। उन दिनों विवाह भी आयु में हो जाते थे और पति की मृत्यु के बाद पत्नी सती हो जाती थी

Raja Ram Mohan Roy

Raja Ram Mohan Roy

अठारहवीं शताब्दी के अंतिम चरण में जिस समय राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) का जन्म हुआ, उस समय भारत ईस्ट इंडिया कम्पनी के शिकंजे में बुरी तरह फँसा हुआ था। इस दासता और लाचारी का एक कारण देशवासियों में फैली हुई कुरीतियाँ और शिक्षा भी था। इसलिए राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) ने सबसे पहले अपने देशवासियों की स्थिति सुधारने के बल करना बेहतर समझा। उन्होंने अनुभव किया कि जब तक भारतीयों की स्थिति न सुधारी जायेगी, वे अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने में समय न होंगे।

राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) का जन्म 22 मई, 1772 को राधानगर (बंगाल) के रमाकान्तराय नामक जमींदार के घर हुआ। गाँव में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्हें पटना भेजा गया। यहाँ उन्होंने फारसी और संस्कृत का अभ्यास किया, मौलवी साहब के सहयोग से मुसलमानों के धर्म ग्रंथ कुरान को भी पढ़ा। ईसाई मिशनरियों द्वारा लोगों की सहायता के कार्यों को तो वे पसन्द करते थे परन्तु उनके द्वारा लोगों का धर्म परिवर्तन करना उन्हें न सुहाता था। उन्होंने अनेक धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद एक नये धर्म ब्राह्म समाज की स्थापना की।

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राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) ने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया, वह था सती प्रथा को समाप्त करवाना। जब वह छोटे थे तभी उनके बड़े भाई की मृत्यु हो गई। उन दिनों विवाह भी आयु में हो जाते थे और पति की मृत्यु के बाद पत्नी सती हो जाती थी अथवा उसे जबर्दस्ती पति की चिता में धकेल दिया जाता था राममोहन की रोती-चीखती भाभी को भी जवरन चिता में धकेल दिया गया। तभी से वह इस कुप्रथा को समाप्त करने की धारणा बना चुके थे। वह इसकी समाप्ति के लिए उस समय के ब्रिटिश साम्राज्य के सबसे बड़े न्यायालय प्रिवी कौंसिल तक गए और सरकार से इसे समाप्त करने का कानून बनवा कर छोड़ा।

उन्होंने विधवा विवाह का भी समर्थन किया। उन्होंने अपने विचारों के प्रचार के लिए शास्त्रार्थ की, पुस्तकें प्रकाशित की, भाषा किये और समाज में सम्मानित सदस्यों से सम्पर्क स्थापित किया। वह समझते थे कि अंग्रेजों ने भारत में जो अंग्रेजी शिक्षा प्रारंभ की है वह एकांकी है और उससे भारतीयों को शिक्षा के सम्पूर्ण लाभ मिलने वाले नहीं-हालाँकि वह समझते थे कि इसी शिक्षा के कारण कुछ भारतीयों में जागृति आई है नहीं-हालांकि वह समझते थे कि इसी शिक्षा के कारण कुछ भारतीयों में जागृति आई है और वे देश की प्रगति के बारे में सोचने लगे हैं।

उन दिनों मौलवी, ब्राह्मण, पण्डित और ईसाइयों द्वारा भी शिक्षा दी जाती थी। राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) के विचार से इन तीनों की शिक्षा अपूर्ण थी। उनका विचार था कि बच्चों को शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जानी चाहिए। इसलिए उन्होंने व्याकरण, भूगोल और रेखागणित आदि विषयों की पुस्तकों का बंगला में अनुवाद किया। इसके साथ उन्होंने आधुनिक विषयों की शिक्षा देने पर भी बल दिया। उन्होंने 1832 में एंग्लो-हिन्दू स्कूल की स्थापना की यहाँ शिक्षा बंगला माध्यम से दी जाती थी और कोई फीस न ली जाती थी। विज्ञान की प्रगति का परिचय करवाने के लिए अंग्रेजी भी पढ़ाई जाती थी। अन्त में सरकार ने इस प्रकार के अन्य स्कूल खोलने में उनकी सहायता की और “हिन्दू कॉलेज” की स्थापना की गई। उन्होंने “वेदान्त कॉलेज” भी खोला। शिक्षा संस्थाओं में प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा कार्य का विचार राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) का ही था।

उन दिनों भारत का सारा व्यापार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथ में था। राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) के प्रयत्नों से भारतीय उद्योगपतियों को भी व्यापार करने की छूट मिली। राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) दकियानूसी विचारों को ठुकराकर विदेश गये। इस यात्रा के अनेक कारण थे। भारत और भूटान में सन्धि करवाने के कारण उनकी कूटनीतिज्ञता सिद्ध हो चुकी थी।

भारत के मुगल बादशाह ने उन्हें अपना दूत बनाकर लन्दन भेजा। वहाँ की संसद में भारत संबंधी सुधार विल भी पेश होने वाला था, सती प्रथा का मामला भी प्रिवी कौंसिल में था। विदेश जाने से पहले उन्हें “राजा” का खिताब दिया गया। इंग्लैण्ड में उनका स्वागत हुआ। वहाँ से लौटने पर 1833 में उनका निधन हो गया।

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