7 साल की उम्र में ओमपुरी का हुआ यौन शोषण, 14 साल में बनाया था नौकरानी से संबंध

Om Puri

बॉलीवुड के संजीदा एक्टर्स में से एक ओमपुरी (Om Puri) ने अपनी शानदार एक्टिंग और दमदार आवाज के दम पर हिंदी, मराठी फिल्मों से लेकर हॉलीवुड तक को अपना मुरीद बनाया। करीब 3 दशक तक हिंदी सिनेमा में हर तरह का किरदार निभाने वाला ये सदाबहार स्टार अपनी बेबाक बोल के कारण कई बार विवादों में भी रहा। रंगीन मिजाज के ओमपुरी की जिंदगी में यूं तो कई महिलाएं आईं लेकिन उनके साथ कोई भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई और शायद यही कारण रहा कि अपने आखिरी दिनों में वो एकदम अकेले और तन्हा ही रहे। 

Om Puri

18 अक्टूबर 1950 को पंजाब के अंबाला में जन्मे ओमपुरी (Om Puri) का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा। जब ओमपुरी (Om Puri) 7 साल के थे तो उनके पिता राजेश पुरी जो रेलवे स्टोर में इंचार्ज थे को चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया। जब उसके पिता जेल भेजे गए तो रेलवे ने उनको दिया क्वार्टर भी परिवार से खाली करवा लिया। फटेहाली और तंगहाली में ओम के बड़े भाई वेद ने कुली का काम करना शुरू कर दिया और ओम पुरी को चाय की दुकान पर कप प्लेट साफ करना पड़ा। लेकिन परिवार की मुश्किलें कम नहीं हो रही थी। खाने के लाले पड़ रहे थे तो 7 साल का बच्चा एक दिन एक पंडित जी के पास गया लेकिन बजाए मदद करने के पंडित ने 7 साल के बच्चे का यौन शोषण कर डाला था।

ओमपुरी (Om Puri) जब 14 साल के थे उनके जीवन में एक टर्निंग प्वाइंट आया। यह वह दौर था जब ओमपुरी (Om Puri) का संघर्ष शुरू हो चुका था। उसके आसपास कोई भी हम उम्र लड़की नहीं थी। उसने महिला के रूप में या तो अपनी मां को देखा था फिर मामी को या फिर मामी के घर काम करनेवाली 55 साल की महिला शांति को। ओमपुरी (Om Puri) का पहला शारीरिक संबंध यहीं बना। जब वो मामा के घर रह कर पढाई कर रहा था तो उसे घर की कामवाली के साथ पानी लाने का जिम्मा सौंपा गया। अचानक एक दिन शाम के वक्त 55 साल की कामवाली ने 14 साल के किशोर को दबोच लिया। उत्तेजित किशोर ने पहली बार अधपके बालों और टूटी दांतवाली महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाया। बाद में पारिवारिक विवाद की वजह से ओमपुरी (Om Puri) को मामा ने अपने घर से निकाल दिया ।

Om Puri

किसी तरह दोस्तों की मदद और अपने कठिन परिश्रम की वजह से ओमपुरी (Om Puri) ने अपनी पढाई पूरी की। ओमपुरी (Om Puri) जब 9वीं क्लास में थे तो उनके मन में ग्लैमर की दुनिया में जाने कई इच्छा होने लगी। अचानक एक दिन अखबार में उन्हें एक फिल्म के ऑडिशन का विज्ञापन दिखाई दिया और ओम ने उसके लिए अर्जी भेज दी। कुछ दिनों के बाद एक रंगीन पोस्टकार्ड पर ऑडिशन में लखनऊ पहुंचने का बुलावा था। साथ ही एंट्री फीस के तौर पर पचास रुपये लेकर आने को कहा गया था। तंगहाली में दिन गुजार रहे ओमपुरी (Om Puri) के पास ना तो पचास रुपये थे और ना ही लखनऊ आने जाने का किराया,  सो फिल्मों में काम करने का यह सपना भी सपना ही रह गया। ये फिल्म थी जियो और जीने दो। वक्त के थपेड़ों से जूझते ओमपुरी (Om Puri) दिल्ली आते है और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लेते है। लेकिन यहां भी हिंदी और पंजाबी भाषा में हुई अपनी शिक्षा को लेकर उसके मन में जो कुंठा पैदा होती है वह उसे लगातार वापस पटियाला जाने के लिए उकसाता रहता है। लेकिन उस वक्त के एनएसडी के डायरेक्टर अब्राहम अल्काजी ने ओमपुरी (Om Puri) की परेशानी भांपी और एमके रैना को उससे बात करने और उत्साहित करने का जिम्मा सौंपा। एनएसडी के बाद ओमपुरी (Om Puri) का अगला पड़ाव राष्ट्रीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे था। यहां एनएसडी में बने दोस्त नसीरुद्दीन शाह भी ओम के साथ थे। जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुणे के बाद अगला पड़ाव मुंबई होता है वही ओम के साथ भी हुआ। यहां पहुंचकर फिर से एक बार शुरू हुआ फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्षों का दौर। यहां ओम को पहला असाइनमेंट मिला एक पैकेजिंग कंपनी के एक विज्ञापन में जिसे बना रहे थे गोविंद निहलानी। फिर फिल्में मिली और ओम मशहूर होते चले गए ।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के छात्र रहे ओमपुरी (Om Puri) ने मराठी फिल्म घासीराम कोतवाल से उन्नीस सौ छिहत्तर में बॉलीवुड में कदम रखा था। विजय तेंडुलकर के नाटक पर बनी इस फिल्म को मणि कौल ने निर्देशित किया था। उसके बाद तो सद्गति, आक्रोश, अर्धसत्य, मिर्च मसाला और धारावी जैसी फिल्मों में यादगार भूमिका निभाई । इलके अलावा उन्होंने ‘जाने भी दो यारो’, ‘चाची 420’, ‘मालामाल वीकली’, ‘माचिस’, ‘गुप्त’, ‘सिंह इज किंग’ और ‘धूप’ जैसी कमर्शियलल फिल्में भी की। उनको ‘अर्धसत्य’ में शानदार रोल के लिए नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला था। हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने कई अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया और वहां भी अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी। ‘घोस्ट ऑफ द डार्कनेस’, ‘ सिटी ऑफ जॉय’,  ‘माईसन द फैनेटिक’, ‘ वुल्फ’ जैसी फिल्मों में उनके काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली। छोटे पर्दे पर ‘कक्का जी कहिन’ के काका के तौर पर उनकी भूमिका अब भी मील का पत्थर है।

इतिहास में आज का दिन – 18 अक्टूबर

कुछ साल पहले ओमपुरी (Om Puri) की पत्नी रही नंदिता पुरी उनकी जीवनी लिखी थी। इस किताब में ओमपुरी (Om Puri) के व्यक्तित्व का एक और पहलू सामने आता है वह है सेक्स को लेकर ओम का लगाव। ओम के जीवन में कई महिलाएं आती हैं, लगभग सभी के साथ ओम शारीरिक संबंध भी बनाते हैं लेकिन विवाह के बंधन में बंध पाने में असफलता ही हाथ लगती है। ओम की जिंदगी में आनेवाली महिलाओं की एक लंबी फेहरिश्त है – लेकिन ओम का पहला प्यार रोहिणी थी जिसने बाद में रिचर्ड अटनबरो की फिल्म गांधी में कस्तूरबा की भूमिका निभाई थी। कालांतर में फिर ओम के जीवन में उसके दोस्त कुलभूषण खरबंदा की दोस्त सीमा साहनी आई। सीमा प्रसिद्ध लेखिका इस्मत चुगताई और फिल्मकार शाहिद लतीफ की बेटी थी। दोनों के बीच लंबा रिश्ता चला लेकिन ग्लैमर की दुनिया में बिंदास अंदाज में जीनेवाली सीमा को ओम के साथ संबंध रास नहीं आया क्योंकि वह शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहती थी। फिर उसके जीवन में उसके दोस्त सुभाष की बहन बंगाली बाला माला डे आई। यहां भी शादी नहीं हो पाई। उसके बाद ओम के जीवन में उसके घर में काम करनेवाली की बेटी लक्ष्मी से शारीरिक संबंध बने। एक समय तो ओम इस लड़की से शादी को तैयार होकर एक मिसाल कायम करना चाहते थे लेकिन जल्द ही सर से आदर्शवाद का भूत उतर गया और ओम ने लक्ष्मी से पीछा छुड़ा लिया । फिल्म अर्धसत्य ने ओमपुरी (Om Puri) की पूरी जिंदगी बदल दी थी। ‘अर्धसत्य’ की जो भूमिका ओम ने निभाई थी वो पहले अमिताभ बच्चन को ऑफर की गई थी लेकिन व्यस्तता की वजह से अमिताभ ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया था और बाद में जो हुआ वह इतिहास है। हिंदी फिल्मों में अपनी दमदार आवाज और शानदार अभिनय के बूते पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने वाले ओमपुरी (Om Puri) का 6 जनवरी 2017 को  66 साल की उम्र में निधन हो गया और बॉलीवुड की ये शानदार आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई।

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