बॉलीवुड की ट्रेजेडी क्वीन की पुण्यतिथि, जन्म लेते ही अनाथालय छोड़ भाग गये थे पिता

वर्ष 1964 में मीना कुमारी (Meena Kumari) और कमाल अमरोही की विवाहित जिंदगी मे दरार आ गयी। इसके बाद मीना कुमारी और कमाल अमरोही अलग–अलग रहने लगे। कमाल अमरोही की फिल्म पाकीजा के निर्माण मे लगभग 14 वर्ष लग गये।

Meena Kumari

अपने दमदार और संजीदा अभिनय से सिने प्रेमियों के बीच विशिष्ट पहचान बनाने वाली ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी (Meena Kumari) को उनके पिता अनाथालय छोड़ आये थे। एक अगस्त 1932 का दिन था। मुंबई में एक क्लीनिक के बाहर मास्टर अली बक्श बड़ी बेसब्री से अपनी तीसरी औलाद के जन्म का इंतजार कर रहे थे। दो बेटियों के जन्म लेने के बाद वह इस बात की दुआ कर रहे थे कि अल्लाह इस बार बेटे का मुंह दिखा दे। तभी अंदर से बेटी होने की खबर आयी तो वह माथा पकड़ कर बैठ गये। मास्टर अली बख्श ने तय किया कि वह बच्ची को घर नहीं ले जायेंगे और वह बच्ची को अनाथालय छोड़ आये लेकिन बाद में उनकी पत्नी के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिये उन्हें मजबूर कर दिया। बच्ची का चांद सा माथा देखकर उसकी मां ने उसका नाम रखा ‘माहजबीं’। बाद में यही माहजबीं फिल्म इंडस्ट्री में मीना कुमारी के नाम से मशहूर हुयी।

Meena Kumari

वर्ष 1939 में बतौर बाल कलाकार मीना कुमारी (Meena Kumari) को विजय भट्ट की ‘लेदरफेस’ में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1952 में मीना कुमारी को विजय भट्ट के निर्देशन में ही ‘बैजू बावरा’ में काम करने का मौका मिला। फिल्म की सफलता के बाद मीना कुमारी बतौर अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गयीं।

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वर्ष 1952 में मीना कुमारी (Meena Kumari) ने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के साथ शादी कर ली। वर्ष 1962 मीना कुमारी के सिने कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी आरती‚ मैं चुप रहूंगी और साहिब बीबी और गुलाम जैसी फिल्में प्रदर्शित हुयीं।

इसके साथ ही इन फिल्मों के लिये वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिये नामित की गयी। यह फिल्म फेयर के इतिहास में पहला ऐसा मौका था जहां एक अभिनेत्री को फिल्म फेयर के तीन नॉमिनेशन मिले थे।

वर्ष 1964 में मीना कुमारी (Meena Kumari) और कमाल अमरोही की विवाहित जिंदगी मे दरार आ गयी। इसके बाद मीना कुमारी और कमाल अमरोही अलग–अलग रहने लगे। कमाल अमरोही की फिल्म पाकीजा के निर्माण मे लगभग 14 वर्ष लग गये।

कमाल अमरोही से अलग होने के बावजूद मीना कुमारी (Meena Kumari) ने शूटिंग जारी रखी क्योंकि उनका मानना था कि पाकीजा जैसी फिल्मों में काम करने का मौका बार–बार नहीं मिल पाता है। मीना कुमारी के करियर में उनकी जोड़ी अशोक कुमार के साथ काफी पसंद की गयी।

मीना कुमारी को उनके बेहतरीन अभिनय के लिये चार बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया है। इनमें बैजू बावरा‚ परिणीता‚ साहिब बीबी और गुलाम और काजल शामिल है।

मीना कुमारी के करियर की अन्य उल्लेखनीय फिल्में हैं, आजाद‚ एक ही रास्ता ‚यहूदी‚ दिल अपना और प्रीत पराई‚ कोहिनूर‚ दिल एक मंदिर‚ चित्रलेखा‚ फूल और पत्थर‚ बहू बेगम‚ शारदा‚ बंदिश‚ भींगी रात‚ जवाब‚ दुश्मन आदि।

मीना कुमारी (Meena Kumari) यदि अभिनेत्री नहीं होती तो शायर के रूप में अपनी पहचान बनाती। हिंदी फिल्मों के जाने–माने गीतकार और शायर गुलजार से एक बार मीना कुमारी ने कहा था, “ये जो एक्टिग मैं करती हूं‚ उसमें एक कमी है। ये फन ये आर्ट मुझसे नहीं जन्मा है, ख्याल दूसरे का, किरदार किसी का और निर्देशन किसी का। मेरे अंदर से जो जन्मा है। वह लिखती हूं‚ जो मैं कहना चाहती हूं‚ वह लिखती हूं।”

मीना कुमारी ने अपनी वसीयत में अपनी कविताएं छपवाने का जिम्मा गुलजार को दिया जिसे उन्होंने नाज उपनाम से छपवाया। तन्हा रहने वाली मीना कुमारी ने स्वरचित एक गजल के जरिये अपनी जिंदगी का नजरिया पेश किया है।

चांद तन्हा है आसमां तन्हा, दिल मिला है कहां–कहां तन्हा।

राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जायेंगे ये जहां तन्हा।।  

लगभग तीन दशक तक अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज करने वाली हिन्दी सिने जगत की महान अभिनेत्री मीना कुमारी (Meena Kumari) 31 मार्च 1972 को सदा के लिये दूनिया को अलविदा कह गयी।

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