ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे लाल बहादुर शास्त्री, इनके खातिर पूरे देश ने रखा उपवास

Lal Bahadur Shastri

जब भी भारतीय राजनेताओं की बात होगी उनमें एक नाम हमेशा प्रमुख रहेगा वह है श्री लाल बहादुर शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) का आजकल के राजनेता जहां वैभव पूर्ण जीवन जी रहे हैं वहीं शास्त्री जी के जीवन से उन्हें कुछ प्रेरणा लेनी चाहिए। 

Lal Bahadur Shastri

आज जब हम राजनीति में आदर्शों की बात करते हैं तो हमें मात्र ये थोथी कल्पना नजर आती है परंतु कुछ व्यक्तियों ने राजनीति के ऐसे प्रतिमान स्थापित किए हैं जिसे समूचा भारतवर्ष हमेशा स्मरण करता रहेगा। उन्हीं व्यक्तियों में एक प्रमुख नाम है श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का।

लाल बहादुर शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) एक अच्छे राजनीतिक विषय नहीं परंतु एक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी भी थे। वह एक अद्वितीय देशभक्त, कुशल प्रशासक, उत्कृष्ट राजनेता और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1960 में मुगलसराय (वाराणसी) के एक साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम शारदा प्रसाद और माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक और माता धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। यह परिवार में सबसे छोटे थे जब ये 18 महीने के थे तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया। परिवार में सबसे छोटे होने के कारण लोग इन्हें ‘नन्हे’ कह कर पुकारते थे। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर बालक लाल बहादुर वाराणसी आ गए। गांधी जी के ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’, से इन्हें विशेष प्रेरणा मिली। लाल बहादुर शास्त्री पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े लेकिन उन्होंने शिक्षा से नाता नहीं तोड़ा।

काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा है जाति सूचक शब्द ‘श्रीवास्तव’ हमेशा के लिए हटा दिया।

सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में ये जेल गए, कई बार इन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया, जेल जाने से इनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई।

जेल में राजनीतिक बंदियों के लिए धोबी का प्रबंध होते हुए भी शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) अपने सब कपड़े स्वयं ही धोते थे और भोजन में से सारे अधिकार वस्तुएं दूसरे कैदियों को बांट देते थे, साथियों ने जब उनके इस विचित्र स्वभाव का कारण पूछा तो उन्होंने कहा मैं धोबी की सुविधा होने के कारण अपने जीवन का नियम तोड़कर पराव लंबी नहीं बनाना चाहता, जब मैं बाहर अपने ही हाथ से कपड़े धोता रहा हूं तो यहां भी धोबी से क्यों धुलवाऊँ?

कैदियों को अच्छी चीज इसलिए बांट देता हूं कि मैं अपने स्वयं को बिगाड़ना नहीं चाहता, दूसरे इन गरीबों को ऐसी चीजें नहीं मिलती , हमारे इस अच्छे व्यवहार से इन पर शुभ संस्कार पड़ेंगे जिससे इनका नैतिक स्तर सुधरेगा, मैं इसे भी देश सेवा ही समझता हूं।

Lal Bahadur Shastri

देश जब स्वतंत्र हुआ तब शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) रेल मंत्री बने। इस क्षेत्र में उन्होंने अनेक सुधार किए। इनके समय में एक बार भीषण रेल दुर्घटना हुई, इस दुर्घटना से दुखी होकर इन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। ये घटना आज भी देश की राजनीति और राजनेताओं के लिए एक मिसाल है।

जब शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) सन 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार के गृह मंत्री थे, लोक निर्माण विभाग के कुछ कर्मचारी इनके निवास स्थान पर कूलर लगाने आए, बच्चों को बड़ी प्रसन्नता हुई अब की बार गर्मी अच्छी तरह गुजर जाएगी, जब शाम को शास्त्री जी घर आए तो उन्हें पता चला कि कूलर लगाया जा रहा है तो उन्होंने तुरंत विभाग के कर्मचारियों को टेलीफोन पर मना कर दिया। जब पत्नी ने कहा कि जो सुविधा बिन मांगे मिल रही है उसे मना करने की क्या आवश्यकता है?

उन्होंने कहा, ‘यह आवश्यक नहीं है कि मैं मंत्री पद पर बना रहूंगा फिर इससे आदत बिगड़ जाएगी, मान लो बाद में यह सुविधाएं ना मिली तो कष्ट ही होगा जाने किस स्थिति में रहना पड़े’।

शास्त्री जी उद्योग मंत्री, स्वराष्ट्र मंत्री सभी पदों पर रहे। इन्होंने पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद शास्त्री जी सर्वसम्मति से भारत के प्रधानमंत्री बने। 

वे मीडिया से अक्सर दूर रहते थे जब यह लोग सेवा मंडल के सदस्य बने तो यह बहुत ज्यादा संकोची हो गए, यह नहीं चाहते थे कि इनका नाम अखबारों में छपे और लोग इनकी प्रशंसा करें, एक दिन इनके मित्र ने पूछा आपको अखबारों में अपना नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों है?

शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) कुछ पल सोच कर बोले, ‘लाला लाजपत राय ने मुझे लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था, ‘लाल बहादुर, ताजमहल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं, एक बढ़िया संगमरमर है जिसकी चमक सारी दुनिया देखती है और सराहती है, दूसरा पत्थर ताजमहल की नींव में लगा है जो सदा अंधेरे में टिका रहता है लेकिन ताजमहल की सारी चमक और खूबसूरती उसी पर टिकी है।’

जब 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हो रहा था तो एक दिन शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) दिल्ली छावनी स्थित सैनिक अस्पताल गए। यहां उन्होंने हर एक जख्मी सैनिक के स्वास्थ्य का हालचाल पूछा लेकिन एक ऐसा जवान था जो सिर से पांव तक जख्मी था। जिसका पूरा शरीर पट्टियों से बंधा था, शास्त्री जी ने जब उससे उसकी सेहत के बारे में पूछा तो जवान की आंखों में आंसू आ गए। शास्त्री जी ने कहा ‘मेरे इस बहादुर सैनिक की आंख में आंसू क्यों?’

उसने जवाब दिया श्रीमान मैं तो अपने को इसलिए कोस रहा हूं कि मेरे सामने प्रधानमंत्री खड़े हैं और मैं ऐसी हालत में हूं कि उन्हें सैल्यूट भी नहीं कर सकता।

Lal Bahadur Shastri

अमेरिका ने जब 2 सितंबर को संदेश दिया कि यदि भारत ने युद्ध नहीं रोका तो हम गेहूं देना बंद कर देंगे। तब शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने उस समय के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को बुलाया और कहा आप महान कृषि वैज्ञानिक है, हमें बताएं कि कितने दिन उपवास करना होगा ताकि हमें गेहूं का आयात ना करना पड़े। उन्होंने गणना करके बताया कि दिनों की तो बात नहीं है, भारतवासी एक समय अनाज खाना बंद कर दे तो हमें अमेरिका से गेहूं नहीं मंगाना पड़ेगा। यह प्रयोग शास्त्री जी ने सबसे पहले अपने परिवार पर किया। देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘मैं जब तक प्रधानमंत्री हूं आपके स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं कर सकता, आज शाम से आप एक समय गेहूं खाना बंद कर दें।‘ 

शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया। उन्होंने कहा, ‘पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी अधिक खाओ, सप्ताह में एक बार शाम को उपवास रखो, हमें जीना है तो इज्जत से जिएंगे वरना भूखे मर जाएंगे, बेइज्जती की रोटी से इज्जत की मौत अच्छी रहेगी।‘ फिर हरित क्रांति प्रारंभ हुई और भारत को आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई।

इतिहास में आज का दिन – 11 जनवरी

शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) ने कहा था, ‘हम रहे ना रहे लेकिन यह झंडा रहना चाहिए और देश रहना चाहिए, मुझे विश्वास है कि यह झंडा रहेगा, हम और आप रहे या ना रहे लेकिन भारत का सिर ऊंचा रहेगा।’

11 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में, पाकिस्तान के साथ युद्ध की संधि करने गए लाल बहादुर शास्त्री का निधन हृदय गति रुक जाने से हो गई। हालांकि उनकी मौत के कारणों पर अभी भी रहस्य बना हुआ है। शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) के अचानक निधन पर महान कवि सोहनलाल द्विवेदी ने लिखा है-

शांति खोजने गया, शांति की गोद सो गया। 

मरते-मरते विश्व शांति के बीज बो गया।।

 

 

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