बॉलीवुड के युगपुरुष थे बीआर चोपड़ा, समाज का दर्पण है इनकी फिल्में

BR Chopra

Remembering BR Chopra: व्यावसायिक दृष्टि से कहानियां चुनकर फिल्में बनाने वाले निर्देशकों से अलग सामाजिक सरोकार को संबोधित करते हुए फिल्मों के माध्यम से समाज को एक संदेश देने और मनोरंजानत्मक तरीके से कहने की कला बहुत ही कम निर्देशको में देखने को मिली है।

BR Chopra

शांताराम ने अपनी फिल्मों से सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत की थी। आज के दौर में मधुर भंडारकर को हम इस श्रेणी में रख सकते हैं। पर एक नाम ऐसा भी है जिन्होंने जितनी भी फिल्में बनाएं उनकी हर फिल्म समाज में व्याप्त किसी ना किसी समस्या पर न सिर्फ एक प्रश्न उठाती है बल्कि उस समस्या का कोई न कोई समाधान भी पेश करती है। निर्देशक बीआर चोपड़ा (BR Chopra) ने अपनी हर फिल्म को भरपूर रिसर्च के बाद बनाया और कहानी को हर बार इतने दिलचस्प अंदाज में बयां किया कि एक पल के लिए देखने वालों के लिए फिल्म  का कसाव नहीं टूटता।

चाहे बात को अवैध रिश्तों की (फिल्म गुमराह) या बलात्कार की शिकार हुई औरतों की (फिल्म इंसाफ का तराजू), मुस्लिम वैवाहिक नियमों पर टिप्पणी (फिल्म निकाह) हो या वेश्यावृत्ति में फंसी औरतों का मानसिक चित्रण (फिल्म साधना) या एक विधवा के पुनर्विवाह (फिल्म एक ही रास्ता) जैसा संवेदनशील विषय हो अपनी फिल्मों से बीआर (BR Chopra) ने हमेशा ही समाज में एक सकारात्मक हलचल मचाई है। कई ऐसे विषय जिन पर तब तक पर्दों में रहकर चर्चा होती थी, उन्हें समाज के सामने बेनकाब किया। यही उनकी फिल्मों की वास्तविक कामयाबी रही है। क्योंकि गंभीर विषयों पर आधारित होने के बावजूद उनमें मनोरंजन भी भरपूर होता था। इस कारण बॉक्स ऑफिस पर उनकी फिल्में सफलता के नए कीर्तिमान लिखती थी।

BR Chopra

बीआर चोपड़ा (BR Chopra) का जन्म लुधियाना में 22 अप्रैल 1914 को हुआ था। उन्होंने लाहौर विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री अंग्रेजी साहित्य में ली थी। उनका फिल्मों की तरफ रुझान होने के कारण उन्होंने फ़िल्म पत्रकार के रूप में काम शुरू किया। 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद वह दिल्ली आ गए और उसके बाद मुंबई में श्री चोपड़ा ने 1955 में अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस बी आर फिल्म्स खोला उनकी पहली ही फिल्म ‘नया दौर’ ने बड़ी सफलता हासिल की। उनकी कुछ यादगार फिल्में हैं ‘आदमी और इंसान’, ‘हमराज’, ‘इंसाफ का तराज़ू’, ‘इत्तेफाक’, ‘पति पत्नी और वह गुमराह’ और ‘एक ही रास्ता’। श्री चोपड़ा ने फिल्मों के अलावा प्रसिद्ध टीवी सीरियल महाभारत भी बनाया था और यह टीवी के इतिहास में एक सफल सीरियल था उनके भाई यश चोपड़ा और पुत्र रवि चोपड़ा तथा भतीजे आदित्य चोपड़ा हिंदी फिल्म उद्योग में निर्देशन के कार्य में हैं गायक महेंद्र कपूर और निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा के कैरियर में श्री चोपड़ा का बड़ा योगदान है। श्री चोपड़ा को दादा साहब फाल्के अकादमी द्वारा फाल्के रत्न पुरस्कार से 2008 में सम्मानित किया गया। फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 2003 में मिला और दादा साहब फाल्के पुरस्कार 1998 में मिला कानून के लिए 1960 में उनके बैनर के तले अंतिम दो फिल्में 2003 में बागबान और 2006 में बाबुल बनाई गई उनके निर्देशन के तहत दिलीप कुमार अमिताभ बच्चन राजेश खन्ना और धर्मेंद्र जैसे कलाकार काम कर चुके हैं।

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उनकी हर फिल्म का संगीत पक्ष भी बहुत मजबूत रहा। नया दौर के गीतों को याद कीजिए। मांग के साथ तुम्हारा पार्षदों में चल रही तांगे की आवाज पर कॉल कीजिए आना है तो आओ साथी हाथ बटाना उड़े जब जब जुल्फें तेरी रेशमी सलवार या फिर आज भी हर राष्ट्रीय त्योहारों पर बजने वाला गीत यह देश है वीर जवानों का। आज की पीढ़ी उन्हें महान धारावाहिक महाभारत के निर्देशक के रूप में अधिक जानती है। पर बहुत कम लोग जानते हैं कि बीआर (BR Chopra) ने फिल्मों में अनूठे प्रयोग किए हैं जिनके मिसाल आज भी दी जाती है। फिल्म कानून हिंदुस्तान की अब तक की एकमात्र मुकम्मल उर्दू फिल्म मानी जाती है इसका एक भी शब्द हिंदी में नहीं था। से अपील की थी कि इस फिल्म को उर्दू में तड़पा जाए एक और बड़ी खासियत थी शायद हिंदुस्तान की पहली बिना गीतों की फिल्म के दीवाने थे क्योंकि जो वर्षों से गुरुदत्त करना चाहते थे पर अपने जीवनकाल में कभी कर नहीं पाए वह बीआर (BR Chopra) ने इस फिल्म के माध्यम से कर दिखाया था आज भी कितने देशों के कोई हिंदी फिल्म बनाने का खतरा उठा सकें अपने 5 दशक से अधिक निर्माण और निर्देशन किया।

 

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