अंग्रेजों के लिए सिरदर्द और भारतीयों के दोस्त थे बटुकेश्वर दत्त, जो गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गया

बटुकेश्वर ने जेल में ही 1933 से 1937 तक भूख हड़ताल की। इस ऐतिहासिक भूख हड़ताल का दुष्परिणाम उनकी सेहत पर पड़ा और वो गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। जिसके कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 1938 में रिहा कर दिया। लेकिन 1941 में उन्हें फिर बंदी बनाया गया और 4 साल बाद फिर उन्हें रिहा कर दिया गया।

Batukeshwar Dutt

क्रांति की मशाल जिनके शौर्य और शहादत से जलती रही उनमें शहीद ए आजम भगत सिंह, अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद, चटगांव शस्त्रागार कांड के शहीद सूर्यसेन, भारत की प्रथम शहीद प्रीतीलता बद्देदार, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी, कन्हाई लाल, सत्यसेन बोस, रामप्रसाद बिस्मिल और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) जैसे क्रांतिकारियों के नाम उल्लेखनीय हैं।

बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) उन क्रांतिकारियों में शुमार हैं जिसने इस देश को आजाद करने में जो भूमिका अदा की उस पर आज भारतवासियों को नाज है।

बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) का नाम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद के साथ आता है। इस क्रांति कड़ी की एक पुष्प थे बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt)। अंग्रेजों के लिए सिरदर्द और भारत के आम जनता के दोस्त। मध्यवर्ग में जन्म लेने वाला यह युवा हिम्मत का ऐसा जनरेटर था कि जिससे युवाओं के अंदर आजादी का जज्बा रोशन हो गया।

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बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) का पुश्तैनी घर खंडा घोष थाने के ओझारी गांव में था, लेकिन वहां रहना उनका होता नहीं था। पिताजी कानपुर के एक दवाखाने में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे इसलिए वे अपने माता-पिता के साथ ही कानपुर में रहते थे। पिता का नाम घोष्टो बिहारी दत्त तथा मां का नाम कमल कामनी देवी था।

सन 1908 के नवंबर महीने में बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) का जन्म कानपुर में हुआ था। वह कुल 4 भाई बहन थे। बड़े भाई का नाम  विशेश्वर दत्त था, जो सेंट्रल बैंक ऑफ पटना में उसकी किसी शाखा में कार्यरत थे वह भी मैनेजर के पद पर। उनकी दो बहने थी जिनका नाम क्रमश अंबालिका तथा प्रमिला था। एक खाता पीता सुखी परिवार था उनका।

बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) ने 1925 में मैट्रिक पास करने के बाद 1926 में कोलकाता के टेलरिंग प्रशिक्षण केंद्र से ट्रेनिंग लेकर जीविकोपार्जन के लिए काम शुरू किया। इसी दौरान इनके माता और पिता का एक के बाद एक देहान्त हो गया। ये वो दौर था जब पूरे देश के युवाओं में क्रांति की लौ धधक रही थी। इसी समय बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए और उनके संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’ के सक्रिय सदस्य बन गए। इस संगठन से जुड़ने के बाद बटुकेश्वर सुखदेव और राजगुरु के भी दोस्त बन गए। इन्हीं लोगों ने बटुकेश्वर को बम बनाना भी सिखाया।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) ने संसद में किया बम विस्फोट 

8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर का नाम तब चर्चा में आया जब वो भगत सिंह के साथ दिल्ली में स्थित तत्कालिन संसद भवन में बम विस्फोट किया। जिसके बाद अंग्रेजों ने भगत सिंह के साथ इन्हें भी बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया और 12 जून 1929 को अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों को आजीवन कारावास का फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद दोनों को लाहौर जेल में बंद कर दिया गया। इसी दौरान दोनों पर लाहौर कांड (लाला लाजपत राय के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन में ब्रिटिश सैनिक के लाठी से लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने लाहौर षणयंत्र रचा) का आरोपी बताकर अभियोग चलाया गया। इस जांच में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का मुख्य आरोपी बताकर उनको फांसी दी गई और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) को आजीवन कारावास के तौर पर काला पानी की सजा दी गई।

बटुकेश्वर ने जेल में ही 1933 से 1937 तक भूख हड़ताल की। इस ऐतिहासिक भूख हड़ताल का दुष्परिणाम उनकी सेहत पर पड़ा और वो गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। जिसके कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 1938 में रिहा कर दिया। लेकिन 1941 में उन्हें फिर बंदी बनाया गया और 4 साल बाद फिर उन्हें रिहा कर दिया गया। 1947 में देश को आजादी मिली और इसी के साथ ही बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) को भी लंबे इलाज के बाद अपनी बीमारी से थोड़ी आजादी मिली।

हालांकि आजादी के बाद तत्कालिन भारतीय सरकार द्वारा बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) को उनके त्याग के लिए कोई खास सराहना या जीविकोपार्जन के लिए सहयोग नहीं मिला। उन्होंने स्वत: ही कई छोटे-मोटे धंधे किए, लेकिन सभी में वो असफल साबित हुए। इस दौरान बटुकेश्वर को कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी ने अपने शिकंजे मे कस लिया। बिहार से लेकर दिल्ली तक इलाज कराने के बाद भी इस बीमारी के जाल से उन्हें बचाया नहीं जा सका। 20 जुलाई 1965 को रात के करीब 2 बजे आजादी का ये शूरवीर हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा ले लिया। मरने से पहले बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) की आखिरी इच्छा थी कि उन्हें भी भारत-पाकिस्तान सीमा पर दफनाये गए उनके क्रांति के साथी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के साथ ही दफनाया जाए, जिसके कारण उनकी भी समाथी हुसैनीवाला जगह पर बनाई गई।

 

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