बगैर संवाद बोले, सिर्फ आंखों और चेहरे से अभिनय के महारथी थे संजीव

Sanjeev Kumar

Remembering Sanjeev Kumar: हरिहर जरी वाला उर्फ संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) का नाम फिल्म जगत की आकाशगंगा में एक ऐसे ध्रुव तारे की तरह याद किया जाता है, जिनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फिल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा।

Sanjeev Kumar

संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) का जन्म मुंबई में 9 जुलाई 1938 को एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे। इसी सपने को पूरा करने के लिए वह अपने जीवन के शुरुआती दौर में रंगमंच से जुड़े और बाद में उन्होंने ‘फिल्मालय’ के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान साल 1960 में उन्हें फिल्मालय बैनर की फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। साल 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निर्मित फिल्म ‘आरती’ के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नहीं हो सके। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) को साल 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘निशान’ में काम करने का मौका मिला।

साल 1960 से साल 1968 तक संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने ‘स्मगलर’, ‘पति-पत्नी’, ‘हुस्न और इश्क’, ‘बादल’, ‘नौनिहाल’, और ‘गुनहगार’ जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। साल 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘शिकार’ में वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेंद्र पर केंद्रित थी फिर भी संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) धर्मेंद्र जैसे अभिनेता की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें ‘सहायक अभिनेता’ का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। साल 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘संघर्ष’ में उनके सामने हिंदी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे, लेकिन संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) ने अपनी छोटी सी भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूट ली। इसके बाद ‘आशीर्वाद’, ‘राजा और रंक’, ‘सत्य काम’ और ‘अनोखी रात’ जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिए संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गए, जहां वह फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे।

इतिहास में आज का दिन – 06 नवंबर

साल 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘खिलौना’ की जबरदस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) ने बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना ली। साल 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘दस्तक’ में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

Sanjeev Kumar

साल 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘कोशिश’ में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। ‘कोशिश’ में गूंगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाए। ‘कोशिश’ में संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) अपने लड़के की शादी एक गूंगी लड़की से करना चाहते हैं और उनका लड़का शादी के लिए राजी नहीं होता है। तब वह अपनी मृत पत्नी की दीवार पर लटकी फोटो को उतार लेते हैं। उनकी आंखों में विषाद की गहरी छाया और चेहरे पर क्रोध होता है। इस दृश्य के जरिए उन्होंने बिना बोले ही अपने मन की सारी बात दर्शकों तक बड़े ही सरल अंदाज में पहुंचा दी थी । इस फिल्म के लिए उन्हें दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।

‘खिलौना’, ‘दस्तक’ और ‘कोशिश’ जैसी फिल्मों की कामयाबी से संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) शोहरत की बुलंदियों पर जा बैठे। ऐसी स्थिति जब किसी अभिनेता के सामने आती है तो वह मनमानी करने लगता है और फ्रेम दर फ्रेम छा जाने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है, जल्द ही वह किसी खास इमेज में भी बंध जाता है, लेकिन संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) कभी भी किसी खास इमेज में नहीं बंधे।  इसलिए अपनी फिल्मों की कामयाबी के बाद भी उन्होंने फिल्म ‘परिचय’ में एक छोटी सी भूमिका स्वीकार की और उसमें भी वह दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे। इस बीच ‘सीता और गीता’, ‘अनामिका’ और ‘मनचली’ जैसी फिल्मों में अपने रूमानी अंदाज के जरिए जवां दिलों की धड़कन भी बने। साल 1974 में प्रदर्शित फिल्म ‘नया दिन नई रात’ में संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म में उन्होंने नौ अलग-अलग भूमिकाओं में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। यूं तो ये फिल्म उनके हर किरदार की अलग खासियत की वजह से जानी जाती है लेकिन इस फिल्म में उनके एक हिजड़े का किरदार, आज भी फिल्मी दर्शकों के मस्तिष्क पर छा जाता है। फिल्म ‘कोशिश’ और ‘परिचय’ की सफलता के बाद गुलजार संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) के पसंदीदा निर्देशक बन गए। बाद में संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) ने गुलजार के निर्देशन में ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘नमकीन’, और ‘अंगूर’ जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया।

Sanjeev Kumar

साल 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘अंगूर’ में संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) की दोहरी भूमिका शायद ही कोई भूल पाए। अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में साल 1975 में प्रदर्शित रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ में वह फिल्म अभिनेत्री जया भादुरी के ससुर की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके। हालांकि संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) ने फिल्म ‘शोले’ के पहले जया भादुरी के साथ ‘कोशिश’ और ‘अनामिका’ में नायक की भूमिका निभाई थी। साल 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में उन्हें महान निर्देशक सत्यजीत रे के साथ काम करने का मौका मिला। इस फिल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का मन मोहे रखा।

संजीव कपूर को मिले सम्मान की चर्चा की जाए तो वह दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए हैं। साल 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘आंधी’ के लिए सबसे पहले उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद साल 1976 में भी वह फिल्म ‘अर्जुन पंडित’ में बेमिसाल अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजे गए।

6 नवंबर 1985 को संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) को दिल का गंभीर दौरा पड़ा और इस दुनिया से उन्होंने हमेशा के लिए विदाई ले ली

 

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