जयंती विशेष: आंदोलनों की जान होती थीं रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं, नेहरू पर खूब साधते थे निशाना

Ramdhari Singh Dinkar Jayanti: दिनकर का जन्म 23 सितंबर, 1908 को बिहार के बेगूसराय में हुआ था। वे सरकार के खिलाफ बोलने से हिचकते नहीं थे।

Ramdhari Singh Dinkar

दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) राज्यसभा के लिए मनोनीत हुए थे। पंडित नेहरू ने उनको मनोनीत किया था। लेकिन दिनकर की खासियत थी कि वे सरकार के खिलाफ भी बोलने से हिचकते नहीं थे। कई मौकों पर दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से नेहरू पर निशाना साधा।

आज यानी 23 सितंबर को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की जयंती है। इस मौके पर पूरा देश उनको नमन कर रहा है। पीएम मोदी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। पीएम मोदी ने कहा, ‘राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी कालजयी कविताएं साहित्यप्रेमियों को ही नहीं, बल्कि समस्त देशवासियों को निरंतर प्रेरित करती रहेंगी।’

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर, 1908 को बिहार के बेगूसराय के सिमरिया में हुआ था। उनके साहित्य में विद्रोह, क्रांति, श्रृंगार और प्रेम सभी का समावेश रहा। वह हर विधा में खुद को ढालने की कला जानते थे, यही दिनकर की खासियत थी।

पंडित नेहरू की खुलकर आलोचना करते थे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

दिनकर राज्यसभा के लिए मनोनीत हुए थे। पंडित नेहरू ने ही उनको मनोनीत किया था। लेकिन दिनकर की खासियत थी कि वे सरकार के खिलाफ बोलने से हिचकते नहीं थे। कई मौकों पर दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से नेहरू पर भी निशाना साधा।

भारत-चीन युद्ध के बाद तो दिनकर ने खुलकर पंडित नेहरू की आलोचना की थी। हालांकि वैचारिक मतभेद होने के बावजूद दिनकर ने कभी भी भाषा की मर्यादा को नहीं खोया। दिनकर की कविताएं सीधा सरकार और उसकी गलत नीतियों पर प्रहार करती थीं।

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जेपी के आंदोलन में भी दिनकर की कविताओं का बहुत प्रयोग किया जाता था। दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने जनता के सामने दिनकर की पंक्ति ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ बोलकर ही विद्रोह का बिगुल फूंका था।

कविता के जरिए करते थे अंग्रेजों पर हमला, 4 सालों में 22 बार हुआ था ट्रांसफर

दिनकर ने पटना यूनिवर्सिटी से बीए ऑनर्स किया था। इसके बाद वह एक स्कूल में प्रिंसिपल बन गए थे। कुछ समय बाद बिहार सरकार के कहने पर उन्होंने सब रजिस्ट्रार का पद संभाला। 9 सालों तक वह इसी पद पर काम करते रहे।

वह अंग्रेज सरकार के खिलाफ खूब लिखा करते थे, इस वजह से अंग्रेज उनसे नाराज हो गए। 4 सालों में दिनकर का 22 बार ट्रांसफर किया गया था, लेकिन दिनकर ने अपने स्वभाव और स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं किया। रेणुका और हुंकार जैसी रचनाएं इस बात की गवाही देती हैं।

…जब दिनकर ने नेहरू को कहा- राजनीति जब-जब लड़खड़ाई है, साहित्य ने ही उसे संभाला है

दिनकर के बारे में एक बात और बहुत प्रसिद्ध है। वह चीन से मिली हार के बाद अपनी ही सरकार की कमियों पर खुलकर बोलते थे। वह पंडित नेहरू की नीतियों की आलोचना करने से भी नहीं हिचकते थे।

एक बार एक कवि सम्मेलन के दौरान पंडित नेहरू लड़खड़ा गए तो दिनकर ने ही उन्हें संभाला था, इसके बदले में नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा..पर दिनकर ने जो जवाब दिया, वो आज भी इतिहास में दर्ज है।

दिनकर ने कहा, ‘इसमें धन्यवाद कि क्या आवश्यकता! वैसे भी जब-जब राजनीति लड़खड़ाई है, साहित्य ने ही उसे संभाला है।’

दिनकर ने ताउम्र हिंदी की सेवा की। हिंदी में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें साहित्य अकादमी और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। 24 अप्रैल 1974 दिनकर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।

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