संसद ने नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) को मंजूरी दे दी, जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी यह विधेयक पारित हो गया है।
राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह विधेयक (Citizenship Amendment Bill) लाखों-करोड़ों शरणार्थियों को यातनापूर्ण नरक जैसे जीवन से मुक्ति दिलाने का साधन बनने जा रहा है जो लोग हमारे देश में आए, उन्हें नागरिकता मिलेगी। यह तीनों देशों के अंदर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए है, जो घुसपैठिए नहीं, शरणार्थी हैं। गृह मंत्री ने बताया कि 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी। 2011 में 23 प्रतिशत से कम होकर 3.7 प्रतिशत हो गई। बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22 प्रतिशत थी, जो 2011 में कम होकर 7.8 प्रतिशत हो गई।
कुछ अखबार और लोग बहुत बड़ी भ्रांति फैला रहे हैं कि ये बिल मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है।
मगर मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस बिल से भारत के नागरिक मुसलमान का कुछ लेना देना नहीं है उनका इस बिल में कोई उल्लेख नहीं हैं।
वो भारत के नागरिक हैं और रहेंगे। pic.twitter.com/oAMZhfHOZY
— Amit Shah (@AmitShah) December 11, 2019
शाह ने कहा कि भारत में 1951 में 84 प्रतिशत हिंदू थे, जो 2011 में कम होकर 79 फीसद रह गए, वहीं मुसलमान 1951 में 9.8 प्रतिशत थे जो 2011 में 14.8 प्रतिशत हो गए। उन्होंने कहा कि इसलिए यह कहना गलत है कि भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है। गृह मंत्री ने साफ किया कि इस देश के किसी मुसलमान का इस विधेयक से कोई वास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक (Citizenship Amendment Bill) नागिरकता लेने के लिए नहीं, नागरिकता देने के लिए है। शाह ने कहा कि शिवसेना ने लोकसभा में इस विधेयक को समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की जनता जानना चाहती है कि एक रात में ऐसा क्या हुआ कि शिवसेना को इस विधेयक पर अपना रुख बदलना पड़ा?
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यक रहते थे उनकी आबादी में निरंतर कमी हुयी।
कहाँ गए ये लोग?
या तो वो मार दिए गए या धर्म परिवर्तन हो गया या वो शरणार्थी बनकर अपने धर्म और सम्मान को बचाने के लिए भारत आ गए।
ये बिल उन सभी लोगों को उनके अधिकार देने का बिल है। pic.twitter.com/GlrMpkNscl
— Amit Shah (@AmitShah) December 11, 2019
इतिहास में आज का दिन – 12 दिसंबर
असम की चिंताओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि असम समझौते के उपबंध छह का अमल नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि असम में पन्द्रह साल कांग्रेस सरकार रही, वहां के प्रतिनिधि देश के दस साल तक प्रधानमंत्री रहे। किंतु इस उपबंध को अमल में नहीं लाया गया। किंतु नरेन्द्र मोदी सरकार ने इसके लिए समिति गठित की है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं के बयान और पाकिस्तान के बयान कई बार घुल-मिल जाते हैं।
विधेयक को विपक्ष ने संविधान विरुद्ध करार दिया
राज्यसभा में विपक्ष ने कैब (Citizenship Amendment Bill) को समानता के अधिकार सहित संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध करार देते हुए दावा किया कि यह सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं पाएगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने उच्च सदन में इस विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए इस विधेयक को मोदी सरकार का ‘‘हिन्दुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाने’ वाला कदम ठहराते हुए दावा किया कि यह प्रस्तावित कानून न्यायालय के कानूनी परीक्षण में नहीं टिक पाएगा।
कांग्रेस के आनंद शर्मा ने भाजपा के घोषणा पत्र का हिस्सा होने के कारण विधेयक को लागू करने की प्रतिबद्धता को ‘‘राजहठ’ करार देते हुए कहा, ‘किसी दल का घोषणा पत्र संविधान से नहीं टकरा सकता, ना ही उसके ऊपर जा सकता है। लेकिन हम सभी ने संविधान की शपथ ली है, इसलिए हमारे लिए पार्टी का घोषणा पत्र नहीं संविधान सवरेपरि है।’’ सपा के जावेद अली ने इस विधेयक (Citizenship Amendment Bill) में 31 दिसंबर, 2014 की तय समयावधि को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने सरकार से पूछा कि 31 दिसंबर, 2014 के बाद ऐसा क्या हो गया कि इन तीनों पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक प्रताड़ना बंद हो गई।
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