राही मासूम रज़ा जयंती: कलयुग के महाभारत को जीवंत करने वाले रज़ा को कल्लू काका से मिली थी कहानी लिखने की प्रेरणा

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में 1 सितंबर 1925 को जन्मे डॉ राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Reza) ने महाभारत की रचना कर कालजयी कीर्तिमानों का वह किला तैयार किया, जिसे आज भी भेदना असंभव है।

Rahi Masoom Reza राही मासूम रज़ा

Rahi Masoom Reza Birth Anniversary II राही मासूम रज़ा जयंती

हिन्दी-उपन्यास-जगत में राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Reza) का प्रवेश एक सांस्कृतिक घटना-जैसा ही था। ‘आधा गांव’ अपने-आपमें मात्र एक उपन्यास ही नहीं, सौन्दर्य का पूरा प्रतिमान था। राही ने इस प्रतिमान को उस मेहनतकश अवाम की इच्छाओं और आकांक्षाओं को मथकर निकाला था, जिसे इस महादेश की जन-विरोधी व्यवस्था ने कितने ही आधारों पर विभाजित कर रखा है।

नहीं रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, सेना के अस्पताल में ली आखिरी सांस

राही (Rahi Masoom Reza) का कवि-हृदय व्यवस्था द्वारा लादे गए झूठे जनतंत्र की विभीषिकाओं को उजागर करने में अत्यन्त तत्पर, संवेदनशील और आक्रोश से भरा हुआ रहा। आक्रोश और संवेदना की यह तरलता यहां धुर गम्भीर राजनीतिक सवालों को पेश करती है, जिनकी आंच में सारा हिन्दुस्तान पिघल रहा है। राष्ट्र की अखण्डता और एकता, जातिवाद की भयानक दमघोंटू परम्पराएं, साम्प्रदायिकता का हलाहल, एक-से- एक भीषण सत्य, चुस्त शैली और धारदार भाषा में लिपटा चला आता है और हमें घेर लेता है।

राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Reza) का जन्म 1 सितम्बर, 1925 को उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर में अपने नाना के घर हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाजीपुर में ही हुई। रज़ा को 11 साल की उम्र में लाइलाज बीमारी टीबी हो गई। उस दौर में टीबी का कोई इलाज नहीं था। इसी बीच रज़ा ने घर में रखी किताबों को ही अपना दोस्त बना लिया और एक-एक करके सभी किताबों को पढ़ डाला। बीमारी रज़ा का दिल बहलाने के लिए उनके परिवार ने कल्लू काका को नियुक्त किया। कल्लू काका तरह-तरह की कहानियां सुनाने में उस्ताद थे। बचपन में कल्लू काका की कहानियों का ही असर हुआ कि बाद में राही मासूम रज़ा की कलम ने कहानियों का ढेर लगा दिया। उन्होंने खुद ये बात मानी है कि अगर कल्लू काका नहीं होते तो वो कई कोई कहानी नहीं लिख पाते।

इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। रज़ा ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से ही ‘उर्दू साहित्य के भारतीय व्यक्तित्व’ पर पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की।

राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Reza) ने पढ़ाई समाप्त करने के बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में बतौर अध्यापक अपने करियर की शुरुआत की। वहां पर वो कई वर्षों तक उर्दू-साहित्य पढ़ाते रहे। बाद में फिल्म-लेखन के लिए बम्बई चले गए। बंबई पहुंचने के बाद उन्होंने जिंदगी जीने की जी-तोड़ कोशिशें की। बंबई के शुरुआती संघर्ष में उन्हें आंशिक सफलता ही हाथ ली। इस दौरान राही मासूम रज़ा फिल्मों में लिखने के साथ-साथ हिन्दी-उर्दू में समान रूप से क्रिएटिव राइटिंग करते रहे।

राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Reza) की कलम ने महाभारत को अमर किया

फिल्म-लेखन को राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Reza) अपने दौर के बाकी लेखकों की तरह ‘घटिया काम’ नहीं, बल्कि ‘सेमी क्रिएटिव’ काम मानते थे। बी. आर. चोपड़ा के निर्देशन में बनी दूरदर्शन की ऐतिहासिक धारावाहिक ‘महाभारत’ के पटकथा और संवाद-लेखक के रूप में समूचे हिंदुस्तान में उन्हें एक अलग पहचान मिली। राही मासूम रज़ा एक ऐसे कवि-कथाकार थे, जिनके लिए भारतीयता हमेशा आदमीयत का पर्याय रही।

राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Reza) ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन किताबें लिखीं, उनमें से आधा गांव, टोपी शुक्ला, हिम्मत जौनपुरी, ओस की बूंद, दिल एक सादा काग़ज़, कटरा बी आज़ूर्, असन्तोष के दिन, नीम का पेड़ जैसे किताबें आज भी बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं। इसके अलावा उन्होंने हिंदी-उर्दू भाषा में कई उपन्यास और कविता संग्रह का भी लेखन किया। क़यामत (हिन्दी उपन्यास); मुहब्बत के सिवा (उर्दू उपन्यास), मैं एक फेरीवाला (हिन्दी कविता-संग्रह), अजनबी शहर : अजनबी रास्ते (उर्दू कविता-संग्रह), अट्ठारह सौ सत्तावन (हिन्दी-उर्दू महाकाव्य) रज़ा की लेखनी की बानगी भर है।

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें