राजनीतिक क्षितिज के जगमगाते सितारे थे प्रणब दा, बचपन में सभी उन्हें पोल्टू कहकर बुलाते थे

सातवें और आठवें दशक में प्रणब (Pranab Mukherjee) ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (1975) तथा भारतीय एक्जिम बैंक के साथ ही राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (1981-82) की स्थापना में भूमिका निभाई।

Pranab Mukherjee प्रणब मुखर्जी

Pranab Mukherjee passed away. प्रणब मुखर्जी का निधन

चार दशक से भी ज्यादा समय तक राजनीति में सक्रिय रहे प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) को उनके तेज दिमाग और शानदार याददाश्त की वजह से कांग्रेस का करिश्माई चाणक्य माना जाता रहा है। 84 वर्षीय मुखर्जी को चलती-फिरती एनसाइक्लोपीडिया, कांग्रेस का इतिहासकार, संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ और संसद के कायदे-कानूनों का पालन करने वाले नेता के तौर पर जाना गया। वे भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति रहे, जिसके पास सक्रिय राजनीति का लंबा अनुभव था।

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जन्म

प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) स्वतंत्रता सेनानी कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के पुत्र थे। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में छोटे से गांव मराठी में, 11 दिसंबर, 1935 को उनका जन्म हुआ। उनके पिता कांग्रेस नेता के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण कई बार जेल गए। कामदा किंकर अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952-64) के सदस्य और जिला कांग्रेस समिति, बीरभूम (पश्चिमबंगाल) के अध्यक्ष रहे। ग्रामीण बंगाल के बीरभूम में पले-बढ़े मुखर्जी अपने उपनाम पोल्टू उपनाम से भी जाने जाते थे।

परिवार

मुखर्जी (Pranab Mukherjee) का विवाह रवींद्र संगीत की निष्णात गायिका और कलाकार शुभ्रा मुखर्जी से हुआ था। शुभ्रा मुखर्जी का 18 अगस्त 2015 को निधन हो गया था। उनके दो पुत्र अभिजीत मुखर्जी, इंद्रजीत मुखर्जी और एक पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी हैं। अभिजीत मुखर्जी दो बार के लोकसभा सांसद रहे हैं जबकि शर्मिष्ठा कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं।

शिक्षा

प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गृह जिले बीरभूम में ही की। बाद में वे कोलकाता चले गए और वहां से उन्होंने राजनीति शास्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल की।

करियर

1963 में प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) के करियर की शुरुआत कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट-जनरल (पोस्ट और टेलीग्राफ) के कार्यालय में एक अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में हुई। इसके बाद उन्होंने अपने ही कॉलेज विद्यानगर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाया। राजनीति में प्रवेश करने से पहले देश डाक (मातृभूमि की पुकार) मैगजीन में एक पत्रकार के रूप में भी काम किया। बाद में 1969 में वे राजनीति में आए और राष्ट्रपति पद तक पहुंचे।

राजनीति में एंट्री

प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) को राजनीति में लाने का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जाता है। वर्ष 1973-74 में इंदिरा ने उन्हें उद्योग, जहाजरानी एवं परिवहन, इस्पात एवं उद्योग मंत्री तथा वित्त राज्य मंत्री बनाया। 1982 में वे इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में भारत के वित्त मंत्री बने और 1980 से 1985 तक राज्य सभा में सदन के नेता रहे।

संसदीय जीवन

प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) 1969 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए। वे पांच बार संसद के उच्च सदन के सदस्य रहे। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल कर वे संसद के निचले सदन में पहुंचे। मुखर्जी 23 साल तक पार्टी की सर्वोच्च नीति-निर्धारक संस्था कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रहे। वे 8 साल तक लोकसभा में सदन के नेता रहे।

पदभार

1991 से 1996 तक प्रणब (Pranab Mukherjee) योजना आयोग के उपाध्यक्ष, 1993 से 1995 तक वाणिज्य मंत्री, 1995 से 1996 तक विदेश मंत्री, 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री और 2006 से 2009 तक विदेश मंत्री रहे। वे 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे। 2012 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। मनमोहन सरकार में प्रणब मुखर्जी के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे 2004 से 2012 के बीच प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, मेट्रो रेल आदि की स्थापना जैसे विभिन्न मुद्दों पर गठित 95 से अधिक मंत्री समूहों के अध्यक्ष रहे।

उपलब्धियां

सातवें और आठवें दशक में प्रणब (Pranab Mukherjee) ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (1975) तथा भारतीय एक्जिम बैंक के साथ ही राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (1981-82) की स्थापना में भूमिका निभाई। मुखर्जी ने 1991 में केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे का जो फार्मूला तैयार किया उसे आज भी गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के नाम से जाना जाता है। न्यूयार्क से प्रकाशित होने वाले जर्नल ‘ यूरो मनी’ द्वारा आयोजित सर्वे में उन्हें 1984 में विश्व के सर्वोत्तम पांच वित्त मंत्रियों में शुमार किया गया था। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के लिए जर्नल ऑफ रिकार्ड, ‘एमर्जिंग मार्केट्स’ ने उन्हें 2010 में एशिया के लिए ‘वर्ष का वित्त मंत्री’ घोषित किया गया था।

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