विज्ञान के ‘गांधी’ थे आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय: भारत में रसासन उद्योग की नींव और देश की पहली दवा कंपनी इन्होंने लगाई

सन् 1920 में प्रफुल्लचंद्र राय (Prafulla Chandra Ray)  इण्डियन साइंस कांग्रेस के सभापति की। आपको C.I.E. की उपाधि भी मिली और विदेशी सरकार ने आपको चुने गए।

Prafulla Chandra Ray

Prafulla Chandra Ray Birth Anniversary

भारतीय रसायनज्ञ आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय (Prafulla Chandra Ray) का 2 अगस्त 1861 में ररौली गांव (बांग्लादेश) में हुआ था। इनकी शिक्षा कलकत्ता और एडिनबर विश्वविद्यालय में हुई। सन् 1887 में इन्होंने रसायन में डी.एस.सी. परीक्षा पास की। सन् 1889 में प्रफुल्लचंद्र राय प्रेसिडेन्सी कॉलेज, कलकत्ता में असिस्टेंट प्रोफेसर के साधारण पद पर नियुक्त हुए।

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डॉ प्रफुल्लचंद्र राय (Prafulla Chandra Ray)  को केवल वैज्ञानिक कहना उचित न होगा। उन्हें इस बात से बड़ी पीड़ा अनुभव हुई कि भारत के लोग आवश्यक औषधियों के लिए भी विदेशों, विशेषकर इंग्लैंड पर आश्रित थे। उन्होंने देखा कि कल-कारखानों, उद्योग-धंधों से रसायन-विद्या का गहरा संबंध है। वे यह देखकर भी दुखी थे कि बंगाली नवयुवक विश्वविद्यालय की डिग्रियां लेकर नौकरी की तलाश में दर-दर भटकते फिरते हैं। व्यापार और उद्योग-धंधों की तरफ उनका ध्यान बिलकुल नहीं जाता। वे औद्योगिक प्रतिष्ठानों और कारखानों की स्थापना और विकास के लिए भी बराबर उत्साही व प्रयत्नशील रहे।

भारत में केमिस्ट्री के जनक हैं डॉ प्रफुल्लचंद्र राय (Prafulla Chandra Ray)

डॉ प्रफुल्लचंद्र राय (Prafulla Chandra Ray)  ने ऐसी चीजें तैयार करने का फैसला किया, जिनकी मांग काफी होती है और बाजार में जिनकी बिक्री जल्दी हो सकती है। उन्होंने ऐसी. रासायनिक चीजें बनाने का निश्चय किया जो दवाओं के काम आ सकें। इसलिए उन्होंने औषधी-निर्माण का कार्यक्रम हाथ में लिया और आठ सौ रुपए की पूंजी से अपनी प्रयोगशाला में कार्य करना प्रारंभ किया। अपनी योजना को साकार देखने के उद्देश्य से वे अविवाहित रहे और उन्होंने अपनी मासिक आय का अधिकांश भाग इसके निमित्त होम कर दिया। उन्होंने अपने घर पर पशुओं की हड्डियां जलाकर दिमागी ताकत बढ़ाने वाले रासायनिक तत्त्व ‘फॉसफेट ऑफ कैल्शियम का निर्माण किया। उन्होंने अपने घर पर जो कारखाना बनाया था, वह धीरे धीरे फलने-फूलने लगा तथा 1900 ई. के लगभग एक बड़ा भारी कारखाना बन गया, जो बंगाल कैमिकल्स एंड फार्मेस्युटिकल वर्क्स के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। उसे उन्होंने सन् 1902 में एक लिमिटेड संस्थान में परिवर्तित कर दिया, जब उन्होंने अपने हिस्सों के लिए एक ट्रस्ट मंडल का गठन अपने जन्म-स्थान, खुलना जिले में एक विद्यालय का संचालन करने के लिए तथा अन्य लोक-कल्याणकारी कार्यों के लिए किया।

‘मरक्यूरस नाइट्राइट’, जो पारे का भौगिक है, विश्व में पहले-पहल इन्होंने ही तैयार किया। प्रफुल्लचंद्र राय (Prafulla Chandra Ray) ने अमोनिया, जिंक, कैडमियम, कैल्शियम, स्ट्रांशियम, बोरियम आदि के नाइट्रेटों के संबंध में अनेक महत्वपूर्ण प्रयोग किये। इन्होंने ही विश्व प्रसिद्ध ‘हिंदू रसायन का इतिहास’ नामक ग्रंथ की भी रचना की।

सन् 1920 में प्रफुल्लचंद्र राय (Prafulla Chandra Ray)  इण्डियन साइंस कांग्रेस के सभापति की। आपको C.I.E. की उपाधि भी मिली और विदेशी सरकार ने आपको चुने गए। सन् 1924 में इनको इण्डियन मेडिकल सोसाइटी की स्थापना ‘नाइट’ बनाकर ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया।

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