लॉकडाउन से हुआ नदियों का पुनर्जन्म, फैक्ट्रियों के बंद होने से स्वच्छ हुईं नदियां

24 मार्च को 21 दिन के लॉकडाउन (Lockdown) की घोषणा की थी‚ तब से देश की अर्थव्यवस्था का पहिया थमा हुआ है। उद्योगों में काम बंद है और लोग भी अपने घरों में बंद हैं।

Lockdown

लॉकडाउन (Lockdown) के कारण कोविड–19 से लड़ने में निश्चित तौर पर कुछ हद तक सफलता मिली है‚ लेकिन उससे ज्यादा हमारे वातावरण और नदियों की स्वच्छता पर ज्यादा सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण इस तरह काफी कम हो गया है और हमारी नदियां पानी से लबालब भरी हैं। कोरोना महामारी को रोकने के लिए 24 मार्च को 21 दिन के लॉकडाउन (Lockdown) की घोषणा की थी‚ तब से देश की अर्थव्यवस्था का पहिया थमा हुआ है। उद्योगों में काम बंद है और लोग भी अपने घरों में बंद हैं। इसका असर यह हुआ कि देश के वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बेहद कम हो गई है। जल प्रदूषण में भी कमी आई है।

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सबसे अच्छी बात है कि हमारी नदियों में पानी की मात्रा पिछले 10 सालों की तुलना में काफी अधिक है औद्योगिक गतिविधियां बंद होने के कारण पानी साफ भी है। लॉकडाउन (Lockdown) के बाद दो अप्रैल को आए आंकड़ों के मुताबिक गंगा नदी में 15.8 बीसीएम पानी उपलब्ध है‚ जो कि नदी की कुल क्षमता का 52.6 फीसदी है। पिछले साल इसी समय गंगा नदी में 8.6 बीसीएम पानी था‚ जो कुल क्षमता का 28.7 फीसदी पानी रहता था। 

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इसी तरह से नर्मदा में इस वक्त 10.4 बीसीएम पानी उपलब्ध है‚ जो कुल क्षमता का 46.5 फीसदी है‚ जबकि पिछले साल इसी समय 31 फीसदी पानी था और 10 साल में यहां 26.4  प्रतिशत पानी उपलब्ध था।

तापी नदी में वर्तमान में 66 फीसदी पानी उपलब्ध है‚ जबकि इस समय पिछले साल 16 फीसदी पानी उपलब्ध था। माही में 46 फीसदी पानी उपलब्ध है‚ जबकि पिछले साल 37 फीसदी पानी था। साबरमती में अभी 46 फीसदी पानी उपलब्ध है‚ जबकि पिछले साल इसी समय केवल 11 फीसदी पानी उपलब्ध था।

गोदावरी में अभी उसकी कुल क्षमता का 53 प्रतिशत पानी उपलब्ध है‚ जबकि पिछले साल वहां इसी समय केवल 24 फीसदी पानी उपलब्ध था। कृष्णा नदी में अभी 33 फीसदी पानी है‚ वहां भी पिछले साल केवल 19 फीसदी पानी उपलब्ध था।

महानदी में वर्तमान में कुल क्षमता का 70 फीसदी पानी उपलब्ध है‚ जबकि पिछले साल 44 फीसदी पानी उपलब्ध था। कावेरी में अभी 64 फीसदी पानी उपलब्ध है‚ जबकि पिछले साल इस समय केवल 23 फीसदी पानी उपलब्ध था।

लॉकडाउन के कारण बंद पड़े कल-कारखानों के कारण नदियों में होने वाला प्रदूषण का स्तर भी ना के बराबर है। यही कारण है कि पिछले कई दशकों से काले नाले की तरह दिखने वाली यमुना का जल शुद्ध और निर्मल दिखाई दे रहा है। गंगा नदी का भी कुछ यही हाल है। कानपूर के आगे जाने के बाद गंगा में जो प्रदूषण का स्तर दिखाई देता था वो अब बहुत कम रह गया है। देश के बाकी नदियों का भी अमूमन यही हाल है।

इसी तरह से वायु प्रदूषण में भी भारी गिरावट आई है। उद्योग-धंधे बंद है और सड़के सूनी पड़ी है। लॉकडाउन (Lockdown) के कारण देश में पहली बार ऐसा मौका आया है जब किसी भी शहर के नाम पर लाल रंग के बॉक्स में ‘वेरी पुअर’ या ‘सीवियर’ नहीं लिखा गया है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 104 शहरों में से केवल थोड़ा प्रदूषण है और वह पुअर कैटेगरी में रखा गया है। 20 शहर ऐसे हैं‚ जिन्हें मॉडरेट श्रेणी में रखा गया है। इन शहरों में दिल्ली और लखनऊ भी शामिल है।

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p style=”text-align: justify;”>बाकी शहर गुड और सेटिस्फेक्ट्री श्रेणी में रखे गए हैं। सबसे अच्छी श्रेणी गुड होती है। 16 शहरों को गुड कैटेगरी में रखा गया है‚ जिनमें पंजाब और दक्षिण भारत के ज्यादातर शहर शामिल हैं।

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