अंग्रेजी हुकूमत ने किस गद्दार की मदद से भारत में जमाया था कब्जा? यहां जानें

नाना की मौत के बाद सिराजुद्दौला को नवाब बनाया गया था। उस वक्त उनकी उम्र काफी कम थी जिसकी वजह से उनके कई रिश्तेदार इस बात से खफा थे।

Plassey war

Plassey war: अंग्रेजों ने भारत में एक ऐसे शख्स के तलाश शुरू की थी जो उनकी साजिश का हिस्सा बन सकें। उस वक्त अंग्रेजी सेना के सेनापति रॉबर्ट क्लाइव थे।

भारत में अंग्रेजों ने 200 सालों तक राज किया। जिसके चलते अंग्रेजी हुकूमत ने पूरे मुल्क को कई सालों तक अपना गुलाम बनाकर रखा। 2 जुलाई 1757 को भारत में एक ऐसी घटना घटी थी जो आज इतिहास के पन्नों में भी दर्ज है। दरअसल हम बात कर रहे हैं नवाब सिराजुद्दौला की। जिन्हें एक गद्दार सेनापति की धोखाधड़ी की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी।

नवाब का पूरा नाम मिर्ज़ा मुहम्मद सिराजुद्दौला (Mirza Muhammad Siraj-ud-Daulah) था। उनका जन्म सन् 1733 में हुआ था। जब नवाब की मौत हुई तब वह महज 24 साल के थे। नवाब ने अपनी मौत से साल भर पहले ही अपने नाना की मौत के बाद बंगाल की गद्दी संभाली थी और उसी वक्त अंग्रेजों ने उपमहाद्वीप में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की थी।

नवाब की जान जाने के बाद ही भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेजी शासन की नींव रखी गई थी। नवाब सिराजुद्दौला को आखिरी आजाद नवाब कहा जाता था।

नाना की मौत के बाद सिराजुद्दौला को नवाब बनाया गया था। उस वक्त उनकी उम्र काफी कम थी जिसकी वजह से उनके कई रिश्तेदार इस बात से खफा थे, और इस बात से सबसे ज्यादा नवाब की खाला घसीटी बेगम नाराज थीं। बता दें कि उस वक्त नवाब ने बरसों से बंगाल के सेनापति रहे मीर जाफर (Mir Jafar)  की जगह मीर मदान को तरजीह दी। जिसकी वजह से मीर जाफर भी नवाब से काफी नाराज हो गए थे।

उस दौरान अंग्रेजों ने भारत में एक ऐसे शख्स के तलाश शुरू की थी जो उनकी साजिश का हिस्सा बन सकें। उस वक्त अंग्रेजी सेना के सेनापति रॉबर्ट क्लाइव थे। इसीलिए सेनापति रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल में अपने कुछ जासूस भेजे। जिसके बाद उन्हें मीर जाफर (Mir Jafar) के बारे में पता चला कि वो बंगाल का नवाब बनने का सपना संजोए हुआ था। क्लाइव ने बिना किसी देरी के मीर जाफर (Mir Jafar) से संपर्क किया। उसके बाद अंग्रेजों की साजिश परवान चढ़ने लगी थी।

एक समय आया जब अंग्रेजी हुकूमत ने बंगाल पर हमला कर दिया। इस लड़ाई में सिराजुद्दौला अपनी पूरी फौज को अंग्रेजों के खिलाफ नहीं उतार सकते थे। क्योंकि उन्हें उत्तर से अफगानी शासक अहमद शाह दुर्रानी और पश्चिम से राठों का खतरा हमेशा बना रहता था। इसीलिए अपनी फौज के एक हिस्से को लेकर नवाब प्लासी पहुंचे थे। बता दें कि इतिहास में यह लड़ाई प्लासी लड़ाई (Plassey war) के नाम से दर्ज है।

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नवाब ने प्लासी (Plassey) पहुंचने के बाद मुर्शिदाबाद (Murshidabad) से 27 मील दूर डेरा डाला। फिर 23 जून को हुई एक मुठभेड़ में नवाब के विश्वासपात्र मीर मदान की मौत हो गई। जिसके बाद नवाब ने सलाह के लिए मीर जाफर को एक पैगाम भेजा। मीर जाफर ने नवाब को सलाह दी कि इस युद्ध को रोक दिया जाए। नवाब से बस यहीं गलती हो गई कि उन्होंने मीर जाफर की सलाह को मान लिया और उसी समय लड़ाई को रोक दिया।

लड़ाई रुकने के बाद जब नवाब अपनी फौज के साथ वापस अपने डेरे पर जा रहे थे, तभी मीर जाफर ने रॉबर्ट क्लाइव को सारी स्थिति की जानकारी दे दी। जिसके बाद रॉबर्ट क्लाइव ने अपनी पूरी सेना के साथ नवाब और उनकी फौज पर हमला बोल दिया। अचानक हुए हमले से नवाब की सेना बुरी तरह से बिखर गई। जिससे क्लाइव ने इस लड़ाई को जीत लिया। उस दौरान नवाब को अपनी जान बचाने के लिए वहां से निकल जाना ही बेहतर लगा। क्लाइव के लड़ाई जीतने के बाद मीर जाफर उनसे जाकर मिले। और अंग्रेजों के साथ हुए समझौते के मुताबिक मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया। और इसी तरह से सत्ता अंग्रेजों के हाथ लग चुकी थी।

प्लासी की लड़ाई से अपनी जान बचाकर निकले नवाब सिराजुद्दौला को मीर जाफर के सिपाहियों ने पटना में पकड़ लिया। फिर उन्हे मुर्शिदाबाद (Murshidabad) लाया गया। जिसके बाद मीर जाफर के बेटे मीर मीरन ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि वो नवाब सिराजुददौला को जान से मार दें।

2 जुलाई 1757 यह वो तारीख है जब नवाब सिराजुद्दौला को नमक हराम ड्योढ़ी नाम की जगह पर फांसी पर लटकाया गया था। इतना करने से भी जब उनका मन नही भरा तो उन्होने नवाब की लाश को हाथी पर चढ़ाकर पूरे मुर्शिदाबाद (Murshidabad)  शहर में परेड भी कराई। इस तरह गद्दारी कर मीर जाफर ने सत्ता की बाज़ी तो जीत ली थी। लेकिन इतिहास के पन्नों में आज उसका नाम विश्वासद्याती के तौर पर दर्ज हो गया।

 

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