आधुनिक राजनीति के जनक और प्रेरक महापुरुष थे पंडित मदनमोहन मालवीय

Madan Mohan Malaviya

Pandit Madan Mohan Malaviya Birth Anniversary : मानव जीवन में संस्कारों का बहुत बड़ा महत्त्व है। संस्कारों के द्वारा सद्गुणों का विकास करना तथा समाजोपयोगी बनना है। संस्कार का अर्थ होता है उसे सजाना, संवारना, उच्च और स्वच्छ बनाना। उन्हीं संस्कार में पण्डित मदनमोहन मालवीय जी पले थे।

Madan Mohan Malaviya

ऐसे संस्कारों से ही महामना मदनमोहन मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya)  अपने त्याग, धर्मरक्षा, भक्ति, सात्विकता, पवित्रता, धर्मनिष्ठा, आत्मत्याग आदि सद्गुणों के तो साक्षात् अवतार ही थे। मालवीय जी समाज के प्रति और देश को आजाद कराने में अनेक कष्ट सहन करते हुए अपने कर्तव्य से कभी विमुख नहीं हुए। मालवीय जी की हार्दिक इच्छा थी कि वह भारतीय संस्कृति, हिंदू-मुस्लिम एकता और सभी प्राणियों पर दया करें।

यद्यपि मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya)  आज विद्यमान नहीं हैं, परंतु उनकी कीर्ति, उनके द्वारा रोपित पादप, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, आज भी वट वृक्ष का रूप धारण कर समस्त संसार में शिक्षा के रूप में प्रख्यात हैं। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त करते हैं, धर्मध्वजी मालवीय जी प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनके पद-चिह्नों पर चलने की प्रेरणा लेते हैं।

पंडित मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malaviya)  का जन्म 25 दिसंबर 1861 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में संस्कारित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पंडित वैजनाथ व्यास और मोना देवी के घर में वे पांचवी संतान के रूप में आए। उनके पूर्वज मध्यप्रदेश के मालवा के थे और संस्कृत के विद्वान थे। उनके पिता पंडित वैजनाथ व्यास भी संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे। जीवन यापन के लिए भागवत का वाचन करते थे। परिजन के मालवा से आकर यहां बसने पर ही वे मालवीय कहलाए।

पंडित जी (Madan Mohan Malaviya)  का अक्षर ज्ञान 5 वर्ष की अवस्था में आरंभ हुआ पुणे बनाम उन्हें हरदेव धर्म ज्ञान उपदेश पाठशाला में भेजा गया। यहीं से उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्हें विद्या वर्धिनी सभा में दाखिल कराया गया पश्चात इलाहाबाद जिला स्कूल में। यहां से ही पंडित जी कविताएं लिखने लगे। उन्होंने अपना नाम भी रखा था मकरंद। उनकी कुछ कविताएं अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई। पंडित जी ने अपनी मैट्रिक परीक्षा म्योर सेंट्रल कॉलेज से  उत्तीर्ण की, आजकल  इसका नाम इलाहाबाद विश्वविद्यालय है। कोलकाता से बीए करने के लिए मदद की दरकार थी और पंडित जी का परिवार भारी आर्थिक संकट झेल रहा था उन्हें हैरिसन कॉलेज के प्रिंसिपल ने मासिक छात्रवृत्ति  मुहैया कराई थी।

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स्वर्गीय पंडित मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malaviya)  केवल एक व्यक्ति ही नहीं अपितु विषय में अनेक संस्थाएं भी थे। ऐसे संस्था रूपी महापुरुष का जीवन चरित्र बता पाना तो साधारण सी बात है और ना ही बहुत सरल। फिर भी इस दिशा में प्रयास किया गया है। उनका व्यक्तित्व अपने ढंग का अनूठा ही था था। वे जैसे धवल वस्त्र धारी थे वैसा ही उनका हृदय भी पवित्र था। उनको कभी किसी ने द्वेष और ईर्ष्या के वश में आकर काम करते हुए नहीं देखा। गांधी जी ने उनको सदा ही अपना बड़ा भाई माना और उनके परामर्श का उन्होंने सदा सम्मान किया। मालवीय जी नैतिकता के पुजारी थे। वास्तविकता तो यह है कि उनकी नैतिकता नहीं देश वासियों के हृदय में उनको श्रेष्ठतम स्थान प्रदान किया। वे देश के उन थोड़े से गिने-चुने महापुरुषों में से थे जिन्होंने देश क्यों का पथ प्रदर्शन किया और जिनको देश सदा स्मरण करता रहेगा।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना में मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya)  का उद्देश्य भारतीयों को भारतीयता की शिक्षा देना और भारतीय संस्कृति की अभिवृद्धि करना था। उनके सम्मुख एक ही लक्ष्य था आधुनिक युग के विज्ञान और टेक्नोलॉजी तथा औद्योगिक आदि को प्राचीन भारतीय संस्कृति के साथ जोड़ना।

भारत के तत्कालीन राजनीति को विशिष्ट दिशा में डालने में मालवीय जी का बहुत बड़ा हाथ रहा है। मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya)  का अपनी प्राचीन संस्कृति के प्रति विशेष आकर्षण था। अपनी संस्कृति की अभिवृद्धि के लिए वे सदा अपने शील रहे। मालवीय जी न किसी भाषा के विरोधी थे और न किसी मत अथवा संप्रदाय के। उनकी विशेषताओं का ही थोड़ा बहुत चित्रण हम लोगों ने पढ़ा और सुना है। वे किसी का विरोध किए अपना कार्य स्वयं करते थे।

मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) ना केवल स्वयं सम्मान से जिए अभी तो उन्होंने अपने देशवासियों को सम्मानित जीवन की कला सिखाई। पत्रकार के रूप में उन्होंने जो गरिमा अर्जित की वकील के रूप में भी उसी गरिमा को बनाये रखा तथा राजनीति जो वारंगना का एक रूप मानी जाती है मैं भी वे जल में कमल के समान निर्लिप्त भाव से कार्य करते हुए अपने उद्देश्य की पूर्ति करते रहे।

मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya)  ने कभी स्वार्थ अथवा अपने परिवार आदि के लिए अपने नेतृत्व और वकालत का दुरुपयोग नहीं किया। वे यदि चाहते तो अपनी वकालत से ही भारत के धन कुबेरों में से एक हो सकते थे। उनका जो परिवार तिल-तिल और कण-कण के लिए संघर्षरत रहा वह संपदा में लोट-पोट हो सकता था। किंतु अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अपनी चलती हुई वकालत को ठुकराया और कर्म क्षेत्र में उतरे। ऐसे मालवीय जी का जीवन हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है।

ईश्वरभक्ति और देशभक्ति पं. मदन मोहन मालवीय जी (Madan Mohan Malaviya) के जीवन के दो मूलमंत्र थे। इन दोनों का उत्कृष्ट संश्लेषण, ईश्वर-भक्ति का देशभक्ति में अवतरण तथा देशभक्ति की ईश्वरभक्ति में परिपक्वता उनके व्यक्तित्व के विशिष्ट गुण थे। उनकी धारणा थी कि मनुष्य के पशुत्व को ईश्वरत्व में परिणत करना ही धर्म है। मनुष्यत्व का विकास ही ईश्वरत्व और ईश्वर है तथा निष्काम भाव से प्राणिमात्र की सेवा ही ईश्वर की सच्ची आराधना है।

वे सार्वजनिक कार्यों के लिए जीवन भर साधन जुटाते रहे और ‘भिक्षुकों में राजकुमार’ कहलाए। वे महान् देशभक्त, सात्त्विक जीवन जीनेवाले मनीषी, जनसाधारण के सेवक, करुणा, सद्भावना और दया की मूर्ति, विदग्ध और उच्चकोटि के वक्ता, प्राणिमात्र से प्रेम करनेवाले, शील के पर्याय, ललितकलाओं के प्रेमी और आहार-विहार में सरलता एवं सात्त्विकता के प्रतीक॒ थे।

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