परिवार ने डायन कहकर घर से निकाला था, सरकार ने दिया ‘पद्मश्री’ सम्मान, जानें झारखंड की इस बहादुर महिला की कहानी

इस बार पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में कई बड़े-बड़े नाम हैं। लेकिन इस लिस्ट में झारखंड से एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता का नाम भी शामिल है, जो बहुत बड़ा नाम तो नहीं है, पर उनका काम बहुत बड़ा है।

Chhutni Mahto

Chhutni Mahto

झारखंड (Jharkhand) की सामाजिक कार्यकर्ता छुटनी महतो (Chhutni Mahto) को पद्मश्री (Padma Shri) सम्मान से नवाजा गया है।

इस बार पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में कई बड़े-बड़े नाम हैं। लेकिन इस लिस्ट में झारखंड से एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता का नाम भी शामिल है, जो बहुत बड़ा नाम तो नहीं है, पर उनका काम बहुत बड़ा है। खास बात ये है कि कभी समाज ने इस महिला को डायन बताकर उस पर अत्याचार किए थे और समाज से उसका बहिष्कार कर दिया था।

लेकिन इसी महिला को अब सरकार ने पद्मश्री (Padma Shri) सम्मान से सम्मानित किया है। झारखंड (Jharkhand) की सामाजिक कार्यकर्ता छुटनी महतो (Chhutni Mahto) को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है, 25 साल पहले उन्हें डायन कह कर काफी प्रताड़ित किया गया था। यहां तक क‍ि उन्हें जान से मारने की कोशिश तक की गई, गांव से भी निकाल दिया गया था।

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झारखंड के सरायकेला जिले के बिरबांस की रहने वाली छुटनी महतो डायन कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं। वह अब तक सैंकड़ों महिलाओं को इस कुप्रथा से बचा चुकी हैं। छुटनी महतो (Chhutni Mahto) 60 साल की हैं और 90 महिलाओं का एक संगठन चलाती हैं। बता दें कि इनके संगठन की सभी महिलाओं को भी डायन बताकर प्रताड़ित किया गया था।

छुटनी महतो (Chhutni Mahto) को एक बार उनके गांव के लोगों ने डायन बताकर घर से निकाल दिया था। महज तीसरी कक्षा तक पढ़ी छुटनी देवी की शादी 1978 में गम्हरिया थाना क्षेत्र के महतानडीह में हुई थी। शादी के 16 साल बाद 1995 में एक तांत्रिक के कहने पर उन्हें गांव भर में डायन मान लिया गया था। उन्हें जान से मारने की साजिश भी रची गई।

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खबर मिलते ही छुटनी रातोरात किसी तरह अपने चार बच्चों के साथ जान बचाकर गांव से भागीं। लेकिन इतनी प्रताड़ना झेलकर छुटनी महतो चुप नहीं बैठी, और ना ही अपने आप को घर की चारदीवारी में कैद करके रखा। छुटनी के पति ने भी उनका साथ नहीं दिया था। ऐसे मुश्किल समय में छुटनी महतो को अपने 4 बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे रहना पड़ा था।

हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और साथ ही यह जिद भी ठान ली कि वह समाज से महिला को डायन बताकर प्रताड़ित करने की कुप्रथा को भी खत्म करेंगी। उन्‍होंने सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड के घोर नक्सल बीरबांस गांव में रहकर डायन प्रथा के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का प्रयास शुरू किया।

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डायन प्रथा की शिकार सैकड़ों महिलाओं को अपने घर रखकर न सिर्फ खिलाया पिलाया बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ भी बनाया। उनकी ताकत और हिम्मत बनीं। नक्सल प्रभावित इलाके में संगठन बनाकर महिलाओं को जोड़ा। छुटनी महतो (Chhutni Mahto) को आज भी इस बात पर काफी गुस्सा और नाराजगी है।

वह कहती हैं, “अगर मैं डायन होती तो उन अत्याचारियों को खत्म कर देती लेकिन ऐसा कुछ नहीं है।” उन्होंने बताया कि “ओझा के कहने पर ग्रामीणों ने ऐसा जुल्म किया, जिसकी कल्पना भी कोई सभ्य समाज नहीं कर सकता। नारी को सम्मान दिलाना ही मेरा उद्देश्य है और मरते दम तक यह संघर्ष जारी रहेगा।”

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साल 2000 से वह डायन बिसाही से प्रताड़ित महिलाओं के बीच जाकर काम करना शुरू किया। अब तक वह डायन बिसाही से प्रताड़ित 125 महिलाओं को न्याय दिलाकर उनका पुनर्वास करवा चुकी हैं। इनमें चाईबासा के अलावा पूर्वी सिंहभूम और चतरा जिले से संबंधित मामले भी हैं। अभी वो फ्री लीगल एड की सदस्य भी हैं। पद्मश्री सम्मान मिलने की जानकारी उनके बेटे ने उन्हें दी।

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बता दें कि इस बार भारत सरकार ने 119 लोगों को पद्म पुरस्कार दिया है। इनमें से 7 लोगों को पद्म विभूषण, 10 को पद्म भूषण और 102 को पद्मश्री से सम्मानित हुए।

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