बचपन में ही उठा ले गए थे नक्सली, जवान बेटों की लाश देख पहचान तक नहीं पाए परिजन

इस रियल कहानी का असल किरदार जब मर जाता है तब सामने आती है उसके बचपन की वो कहानी जो एकदम हिंदी फिल्मों की तरह लगती है।

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सालों पहले नक्सलियों ले जिन दो बच्चों का अगवा किया था उन्हें पुलिस मुठभेड़ में अपनी जान गंवानी पड़ी।

बॉलीवुड की कई फिल्मों में आपने देखा होगा कि फिल्म की शुरुआत में कुछ बदमाश फिल्म के हीरो को बचपन में ही जबरदस्ती उठा कर ले जाते हैं। इसके बाद यह बच्चा बदमाशों के साथ रहकर बदमाश बन जाता है या फिर फिल्म की कहानी के मुताबिक कुछ और बनता है। लेकिन आज हम यहां फिल्म की किसी कहानी का जिक्र नहीं कर रहे बल्कि एक सच्ची कहानी का जिक्र कर रहे हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि इस रियल कहानी का असल किरदार जब मर जाता है तब सामने आती है उसके बचपन की वो कहानी जो एकदम हिंदी फिल्मों की तरह लगती है।

इसी साल 13 जून, 2019 को कांकेर के ताड़ोकी इलाके के छोटे मुरनार और मालापारा के बाच घने जंगलों में पुलिस के साथ मुठभेड़ में 4 नक्सली ढेर हो जाते हैं। पुलिस मृत नक्सलियों की पहचान करती है और नियम के मुताबिक उनके मृत शरीर को उनके परिजनों को सौंपने का फैसला करती है। मरने वाले नक्सलियों में छत्तीसगढ़ के कांकेर के आमाबेड़ा क्षेत्र के मानकोट और खड़ाका गांव के रहने वाले दीपक मंडावी और रतिराम हुपेंडी भी शामिल हैं। जब इनके घरवालों को खबर मिलती है कि यह दोनों पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए हैं तो परिजनों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ता है। लेकिन परिजनों के आंसुओं के बीच मरने वालों को लेकर कई सवाल भी उस वक्त घरवालों के दिल-ओ-दिमाग में चल रहे होते हैं। दरअसल इन्हीं सवालों के साथ यह रियल कहानी शुरू होती है।

अपने बड़े भाई रतिराम का शव लेने के लिए मानकोट से कांकेर थाना पहुंचे रुपेश कुमार हुपेंडी ने नक्सलियों द्वारा उनके भाई के अपहरण के बारे में बात करते हुए बताया कि उस समय वह इतना छोटा था कि उसे अपने भाई का चेहरा भी ठीक से याद नहीं है। रुपेश कुमार हुपेंडी के साथ खड़का से आए अंजोर सिंह ने बताया कि दीपक मंडावी उसका भांजा था। बीमारी के चलते माता-पिता की मौत हो जाने के बाद पांच साल की उम्र से ही दीपक उसके साथ रहने लगा था। जब वह 12 साल का था, तब नक्सली दीपक को अपने साथ उठाकर ले गए थे। उस वक्त से इन लोगों ने उसका चेहरा तक नहीं देखा था और ना ही उसके बारे में इन्हें कोई जानकारी मिल सकी थी।

किडनैपिंग के बाद दीपक और रतिराम कभी वापस नहीं आए और आज सालों बाद उनकी लाशें घर पहुंचीं। रतिराम का शव लेने गए उसके मामा सुखियार सिंह के अनुसार, रतिराम लगभग 13 साल का था, जब नक्सली उसे अपने साथ ले गए थे। इसके बाद रतिराम कभी गांव में लौटकर नहीं आया और न ही उसके बारे में कभी कुछ पता चल पाया। सालों बाद अचानक आमाबेड़ा थाना से सूचना मिली कि मुठभेड़ में रतिराम मारा गया है, आकर उसका शव ले जाओ। गांव वालों के मुताबिक, कई साल पहले जब दीपक और रतिराम को नक्सली उन्हें अपने साथ जबरन ले गए थे, उस वक्त दोनों बच्चे थे। इसके बाद से दोनों न अपने गांव में कभी लौटकर आए और न ही उनकी कभी कोई खबर आई।

हालांकि, नक्सलियों की संगति में दोनों अब खूंखार नक्सली बन चुके थे। खड़ाका का रहने वाला दीपक मंडावी उर्फ पीलाराम अब 21 साल का हो गया था। वह किसकोड़ो एरिया कमिटी के कोरर-बुधियारमारी एलजीएस कमांडर बन गया था। उस पर प्रशासन ने पांच लाख रुपये का इनाम रखा था। मानकोट का रहने वाला रतिराम हुपेंडी किसकोड़ो एलजीएस का सदस्य था। उसके सिर पर एक लाख रुपये का इनाम था। बता दें कि 16 जून को इनके परिजन उनका शव लेने कांकेर थाने पर पहुंचे थे तब इस कहानी का खुलासा हुआ।

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