कोरोना के कहर से ऐसे बच निकले नक्सली, देश के कई हिस्सों में कर रहे पांव पसारने की कोशिश

नक्सली (Naxalites) अन्य तरीकों से संगठन को मजबूत करने में लगे हुए हैं। वे देश के दूसरे हिस्सों में अपने पैर फैलाने की कोशिश में हैं।

Chhattisgarh: 13 Naxalites arrested from three separate incidents in Bijapur

फाइल फोटो

तकनीक के मोर्चे पर नक्सली सुरक्षाबलों के मुकाबले अभी पीछे हैं। यह सरकार और सुरक्षाबलों के लिए बढ़त की तरह है। लेकिन नक्सली (Naxalites) अन्य तरीकों से संगठन को मजबूत करने में लगे हुए हैं।

जब कोरोना (Coronavirus) से भाकपा माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के सदस्य हरिभूषण उर्फ विनोद की मौत की खबर आई और साथ ही सैकड़ों नक्सलियों (Naxalites) के गंभीर रूप से बीमार होने की बात भी सामने आई तो लगा कि नक्सली संगठन (Naxal Organization) की जड़ अब पूरी तरह से हिल गई है।

लेकिन इसके बाद ही नक्सल प्रभावित इलाकों (Naxal Area) से खबरें आने लगीं कि नक्सली (Naxalites) अपने लिए कोरोना की दवाओं और टीके का इंतजाम कर रहे हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, शहरी नेटवर्क और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को डरा-धमकाकर नक्सलियों ने दवा और कोरोना का टीका (Corona Vaccine) हासिल किया। यहां तक की कुछ नक्सल ग्रस्त इलाकों में नक्सलियों द्वारा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से दवा और टीका लूटने की भी बात भी सामने आई।

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वैसे तो लाल आतंक का गढ़ कहे जाने वाले बस्तर में पुलिस ने बीमार नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करने की लगातार कोशिश कर रही है। सरेंडर करने वाले नक्सलियों का इलाज भी कराया जा रहा है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। पर ऐसा खबरें भी सामने आ रही हैं कि कोरोना से हुई लगभग दर्जन भर नक्सलियों की मौत के बावजूद वे अपने कैडरों के आत्मसमर्पण को रोकने में कामयाब हो रहे हैं।

हालांकि, तकनीक के मोर्चे पर नक्सली सुरक्षाबलों के मुकाबले अभी पीछे हैं। यह सरकार और सुरक्षाबलों के लिए बढ़त की तरह है। लेकिन नक्सली (Naxalites) अन्य तरीकों से संगठन को मजबूत करने में लगे हुए हैं। वे देश के दूसरे हिस्सों में अपने पैर फैलाने की कोशिश में हैं। बस्तर, कांकेर के रास्ते नक्सली मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के जंगलों में अपना वर्चस्व मजबूत कर रहे हैं।

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इतना ही नहीं, नक्सलियों (Naxalites) ने बीते कुछ सालों में एमएमसी यानी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जोन नाम से अपनी नई कमेटी बना कर अपना विस्तार शुरू किया है। बीते कुछ दिनों में कान्हा नेशनल पार्क से लगे हुए इलाकों में नक्सली मुठभेड़ हुई हैं। साथ ही भोपाल तक नक्सलियों को हथियार सप्लाई करने वाले गिरोह का भी पर्दाफाश हुआ है।

बता दें कि छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले को इस साल पहली बार नक्सल प्रभावित जिला घोषित किया गया है। गृह मंत्रालय की सूची में छत्तीसगढ़ के बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, नारायणपुर, राजनांदगांव और सुकमा जिले देश के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिले बने हुए हैं।

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इसके अलावा आंध्र प्रदेश का विशाखापत्तनम, बिहार का गया, जमुई और लखीसराय, झारखंड का चतरा, गिरिडीह, गुमला, खूंटी, लातेहार, लोहरदगा, सरायकेला-खरसवां और पश्चिमी सिंहभूम, ओडिशा का कंधमाल, मलकानगिरी और कालाहांडी, मध्य प्रदेश का बालाघाट और तेलंगाना का भद्राद्री-कोठागुडेम अब भी सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिला बना हुआ है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने छह राज्यों के आठ जिलों को अब ‘डिस्ट्रिक्ट ऑफ कंसर्न’ बताया है। इनमें छत्तीसगढ़ के तीन जिले कबीरधाम, कोंडागांव और मुंगेली शामिल हैं। अन्य जिलों में बिहार का औरंगाबाद, झारखंड का गढ़वा, केरल का वायनाड, मध्य प्रदेश का मंडला और ओडिशा का कोरापुट जिला शामिल है।

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बीते 5 सालों में नक्सली हिंसा (Naxal Violence) के आंकड़ों को देखें तो इनमें कमी जरूर नजर आती है। लेकिन गृह मंत्रालय की इस सूची से जाहिर है कि नक्सलियों (Naxalites) को उखाड़ फेंकने में कामयाबी तो मिल रही है, लेकिन नक्सलवाद (Naxalism) के खिलाफ जंग का अंजाम अभी भी बाकी है।

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